अपनी सोच बदल डालिए
- सुमन परगनिहा
- सुमन परगनिहा
आइए हम सब मिलकर कुछ सोचते हैं कि क्या किया जाए। क्यों न हम किसी का मुंह ताकने की बजाए खुद ही आगे आ कर इसके लिए एक प्रयास करें। सबसे पहले तो अपने घर से ही शुरु करें।
मैं जो यहां कहने जा रही हूं वह कोई नई समस्या या गुस्से का कोई नया कारण नहीं है। हो सकता है इसे पढ़ते ही आपको लगे ऊंहूं.... फिर वही पुराना राग।..... लेकिन रूकिए और जरा सोचिए क्या जब आप सड़क के किनारे पैदल चल रहे हों और सड़क संकरी हो तभी पीछे से तेज हार्न बजाती कोई गाड़ी आपसे और किनारे होने को कहे तो आप क्या करेंगे? क्योंकि आपके पास तब सड़क किनारे बिखरे कचरे और गंदगी के ढेर के ऊपर चलने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा। तब, तब तो आपको गुस्सा आएगा ना? और बरबस ही आप कह उठेंगे कि कचरा फेंकने के लिए क्या सड़क का किनारा ही बचा है।
जी हां यही है मेरे गुस्से का कारण। प्रश्न यह है कि सड़क किनारे कचरा कौन फेंकता है? आस- पास रहने वाले ही न। जवाब यह भी मिलता है कि अपने घरों का कचरा कहां जा कर फेंके। नगर निगम न तो कचरा उठाने का कोई प्रबंध करती और न ही कचरा फेंकने का। सफाई कर्मचारी आते है नाली का कचरा सड़क किनारे इकट्ठा करके चले जाते हैं कि इसे उठाने का काम हमारा नहीं है इसके लिए गाड़ी आएगी कहते हुए चले जाते हैं। यह बात भी सही है। तब क्या करें? हम तो हर साल जल, मल कर नियमित पटाते हैं, पर सफाई व्यवस्था को लेकर कभी भी संतोष जनक परिणाम नहीं निकलता।
पर कोई न कोई तो हल निकालना ही होगा न? आईए हम सब मिलकर कुछ सोचते हैं कि क्या किया जाए। क्यों न हम किसी का मुंह ताकने की बजाए खुद ही आगे आ कर इसके लिए एक प्रयास करें। सबसे पहले तो अपने घर से ही शुरु करें। आप प्रति वर्ष दीपावली में अपने घर की साफ- सफाई करते हैं पर घर से निकलने वाला कचरा कहां फेंक कर आते हैं सड़क के किनारे ना? यह सोचकर कि सड़क की सफाई का काम तो नगर निगम का है वह करवायेगी सड़क की सफाई। क्या आपकी यह सोच सही है? तो बस इसी सोच को बदल डालिए। आप घर बैठकर हमेशा सफाई के नाम पर इसको- उसको कोसते रहते हैं पर क्या आपने कभी अपनी कालोनी या मोहल्ले में रहने वालों के साथ मिल बैठकर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश की है। या कभी संबधित विभाग के अधिकारी से मिलकर इसका समाधान खोजने का प्रयास किया है। यदि नहीं तो इस दिशा में भी सोचिए, हो सकता है आपको समाधान मिल जाए।
आप कह सकते हैं कि अरे छोडिय़े यह सब कहने में बहुत अच्छा लगता है पर वास्तव में जब कुछ करने निकलो तो नतीजा कुछ नहीं निकलता। हां आप सही कह रहे हैं पर मुझे जरा यह तो बताइए क्या नतीजा चुपचाप बैठे रहने से निकल जाएगा। एक पहल तो कीजिए। भले ही गुस्सा दिखाकर। आपके इस गुस्से में कई लोगों का गुस्सा शामिल हो जाएगा तो कुछ तो हल निकलेगा।
तो आईए इस दीवाली में गुस्सा थूंक कर कोई समाधान निकालें और अपने घर के साथ- साथ अपने आस- पास के वातावरण को भी शुद्ध रखने का संकल्प लें।
आप कह सकते हैं कि अरे छोडिय़े यह सब कहने में बहुत अच्छा लगता है पर वास्तव में जब कुछ करने निकलो तो नतीजा कुछ नहीं निकलता। हां आप सही कह रहे हैं पर मुझे जरा यह तो बताइए क्या नतीजा चुपचाप बैठे रहने से निकल जाएगा। एक पहल तो कीजिए। भले ही गुस्सा दिखाकर। आपके इस गुस्से में कई लोगों का गुस्सा शामिल हो जाएगा तो कुछ तो हल निकलेगा।
तो आईए इस दीवाली में गुस्सा थूंक कर कोई समाधान निकालें और अपने घर के साथ- साथ अपने आस- पास के वातावरण को भी शुद्ध रखने का संकल्प लें।
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