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Oct 22, 2009

आपके पत्र / मेल बॉक्स

ई-मेल भी प्रकाशित करें
सितम्बर अंक मिला। अंक सदा की भांति अति सुंदर और उपयोगी बना है जिसमें आपका श्रम झलकता है। विविधरंगी उदंती मन को भा गई है। इसके प्रत्येक अंक का बेसब्री से इंतजार रहता है। सलाह है कि इसमें पत्र लेखकों के ई मेल पते भी यदि उपलब्ध हों तो अवश्य प्रकाशित किया करें।
- अविनाश वाचस्पति, नई दिल्ली, avinashvachaspati@gmail.com
जनता है भई सब जानती है
बढिय़ा अंक निकालने के लिए बधाई। अनकही/सादगी का व्यापार पढ़ा। दरअसल हमारे नेताओं की सादगी का मखौल इसलिए बनाया जा रहा है कि यह सादगी केवल दिखावा है। करोड़ों रुपये के जीवन में कुछ सौ रुपये की बचत बतला कर हमारे नेता जनता को उल्लू नहीं बना सकते। ये जनता है भई सब जानती है।
-चन्द्रमौलेशवर प्रसाद,cmpershad@gmail.com
विविधता से भरा अंक
 नया अंक काफी अच्छा लगा। आपने इसमें काफी विविधता और व्यापकता ला दी है। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
- डॉ. रमाकांत गुप्ता, मुंबई, drramakant@yahoo.com
ज्ञानवर्धक व रोचक
 पत्रिका प्राप्त हुई। बहुत अच्छी है। सभी विषयों पर इसमें चर्चा की गई है। अनकही में सादगी का व्यापार और व्यंग्य में निलम्बित डॉट काम ज्ञानवर्धक व रोचक है।
- अरून कुमार शिवपुरी, भोपाल
मैं अभी भी दूरदर्शन देखना पसंद करता हूं
दूरदर्शन के 50 बरस का सुनहरा सफर  में महत्वपूर्ण जानकारी  देने के लिये आपका आभार। इतने चैनलों की बाढ़ होने के बावजूद मैं अभी भी दूरदर्शन देखना पसंद करता हूं! सबसे कम उम्र की पोस्ट ग्रेजुएट .... में रश्मि स्वरूप का साक्षात्कार पढ़कर अच्छा लगा है। उदंती टीम व रश्मि जी को बधांईया और ढेरों मुबारकबाद!
- दीपक शर्मा, कुवैत, deepakrajim@gmail.com
विज्ञान संबंधी लेखों को अधिक स्थान दें
सितम्बर माह का अंक बहुत अच्छा है। इसमें पाठकों के जरूरत के अनुकूल सभी प्रकार की पठनीय एवं मनोरंजक सामग्री शामिल है। अनुपम मिश्र के लेख तालाब  में एक समुदाय द्वारा मिलजुल अपनी परंपराओं को संरक्षित रखने की बेहतर जानकारी दी गई है। पत्रिका में विज्ञान से संबंधित लेखों को अधिक स्थान दें।
- ब्रिजेन्द्र एस. श्रीवास्तव, brijshrivastava@rediffmail.com
प्रभावी रचनाएं
उदंती का नया अंक देखा हमेशा की तरह बहुत सुंदर है। गिरीश पंकज, अन्तोन चेखव, डॉ. रामाकान्त गुप्ता व देवी नागरानी सभी की रचनाएं प्रभावी है। उदंती टीम को धन्यवाद।
- जवाहर चौधरी, इंदौर, jc.indore@gmail.com
दोहरी मानसिकता
अभियान/ मुझे भी आता है गुस्सा में बेटी पुकारने में झिझक क्यों  में आपने बिल्कुल सही लिखा है।  आखिर बेटी को बेटा कहकर पुकारा जाए, तभी उसका मान बढ़े, वह घर का बेटा बनकर दिखाए, तभी जिम्मेदार हो, यह हमारी दोहरी मानसिकता को दर्शाता है। ऐसा करके हम एक बार फिर बेटी को नहीं बेटे को ही मान दे रहे हैं। असल में सारी लड़ाई तभी शुरू हो जाती है जब बराबरी की नौबत आती है, जो जैसा है वैसा रहे, सबको अपना-अपना हक मिले तो तुलना करने की जरुरत ही पड़ेगी।
- वर्षा निगम, दिल्ली, varshanigam@gmail.com

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