- रचना गौड़ 'भारती'
गांव में भी अब पढ़ी-लिखी बहुओं का आगमन होने लगा है। गांव के लोग शहरी लोगों से अपने आपको ज्यादा एडवांस यानि आधुनिक समझतें हैं। ऐसे ही किशोरीलाल जी के घर का माहौल था। नौकरी पर आते जाते सारे परिवार के सदस्य उनके आगे पीछे रहते कोई उनके जूते लाता कोई उनका गिलास, कोई दौड़कर गरमागरम चाय की प्याली।
बेटे की शादी के बाद नौकरी करती बहू घर में आई। सास की आशाएं, ननदों की उम्मीदें और पति धर्म का कत्र्तव्य सभी कुछ जुड़ा था उसके साथ। लिहाजा दफ्तर जाने से पूर्व सारे घर का काम करके जाती और लौटकर थकीहारी जैसे ही घर में घुसती उसके कानों में आवाज पड़ती 'आ गई बहू जल्दी करो खाना बनाने का समय होने वाला है।' परम्पराओं के वृक्ष के पत्ते मात्र ही आधुनिकता की हवा हिला पाई है जड़ें तो जहां की तहां ही हैं।
2. समाज सुधार
बशेशर-'उपकार कैसा? यह तो मेरा धर्म है कल से उसे यहां दो घण्टे के लिए भेज देना। मैं देखूंगा जो बन पड़ेगा करूंगा।
श्यामा की मां घर लौट आयी घर आकर खुशी खुशी श्यामा को अगले दिन बशेशर प्रसाद के घर खुद छोडऩे गई। बशेशर प्रसाद के पी.ए. ने उसका नाम नोटबुक में लिखा और उसे बशेशर के बेडरूम में ले गया। मां देखती रह गई कमरे का दरवाजा बन्द हो गया। बशेशर के समाज सुधार कार्य में एक और पुण्य कार्य जुड़ गया, तो क्या हुआ? शबरी भी तो झूठे बेर राम जी को खिलाती थी।
3. कुर्सी का नशा
अचानक फोन बजा-'हैलो! रमेश जी, पहचाना मुझे, आपका पुराना पड़ोसी अंकुर जैन बोल रहा हूं। यार! मेरा काम जल्दी करवा दो, फाइल आपके पास अटकी पड़ी है।'
रमेश ने जवाब दिया-'अरे भई! यहां काम के लिए हर व्यक्ति पहचान लेकर आ जाता है। हमारी परेशानी तो कोई समझता नहीं, सारा दिन लोगों को डील करते-करते दिमाग पक जाता है। आप समय का इंतजार करें अभी मैं व्यस्त हूं। फोन कट गया। माहौल खामोश था। परिस्थितियां वहीं थीं बस कुर्सी के आगे-पीछे के लोग परिवर्तित हो गए थे और कुर्सी का नशा ज्यों का त्यों बरकरार था।
1 comment:
आदरणीय रत्ना जी
नमस्ते. आपकी उदंती का नया अंक हासिल हुआ जिसके लिए आभारी हूँ, यहाँ परदेस में बैठकर देश के साथ जुड़े रहना एक सुखद आनुभूती है, रचना गौड़ जी के उत्तान सोच शब्दों के सहारे अपने आस पास के समाज का एक सही चिता खीच पाए हैं. बहुत ही बधाई के साथ
देवी नागरानी
आदरणीय रत्ना जी
नमस्ते. आपकी उदंती का नया अंक हासिल हुआ जिसके लिए आभारी हूँ, यहाँ परदेस में बैठकर देश के साथ जुड़े रहना एक सुखद आनुभूती है, रचना गौड़ जी के उत्तान सोच शब्दों के सहारे अपने आस पास के समाज का एक सही चिता खीच पाए हैं. बहुत ही बधाई के साथ
देवी नागरानी
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