संकट के भूरे बादल
- प्रो. राधाकांत चतुर्वेदी
एशिया के 13 महानगरों जैसे मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, बेजिंग, शंघाई, काहिरा, बैंकाक इत्यादि पर तो इन संकट के बादलों का इतना घना जमावड़ा देखा जा रहा है कि इससे सूर्य का प्रकाश भी 25 प्रतिशत तक बाधित हो जाता है।
ये घातक बादल सिर्फ एशिया के लिए ही संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न करते हैं। वास्तविक में तो हवा के बहाव में ये बादल तीन चार दिनों में एशिया जैसा विशाल महाद्वीप लांघकर कभी-कभी अन्य महाद्वीपों पर संकट बरसाने पहुंच जाते हैं। यह भूरे बादल उत्तर और दक्षिण अमरीका, योरप और दक्षिण अफ्रीका के ऊपर मंडराते देखे जाते हैं।
संयुक्त राष्टर द्वारा विश्व के कुछ प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिकों के शोध परिणामों पर आधारित एक रिपोर्ट पिछले दिनों जारी की गई है जिसमें दिए हुए तथ्य हम भारतीयों के लिए रोंगटे खड़े करने वाले हैं।
देखा गया है कि पूर्व में ईरान की खाड़ी से लेकर शेष पूरे एशिया पर गहरे भूरे रंग के घने बादल छाये रहते हैं। ये बादल लकड़ी जलाने से निकले धुएं के साथ फैक्टरियों से निकले तमाम तरह के हानिकारक रासायनिक कणों से मिले धुएं के मिलने से बनते हैं। इनसे पूरे विश्व के विशेषतया एशिया के देशों के पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इन बादलों की मोटाई तीन किलोमीटर तक होती है। अपनी विशाल जनसंख्या के कारण भारत और चीन इस आकाशीय आपदा से सबसे ज्यादा खतरे में हैं।
एशिया के 13 महानगरों जैसे मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, बेजिंग, शंघाई, काहिरा, बैंकाक इत्यादि पर तो इन संकट के बादलों का इतना घना जमावड़ा देखा जा रहा है कि इससे सूर्य का प्रकाश भी 25 प्रतिशत तक बाधित हो जाता है।
इस तरह के बादलों से अनेक तरह की प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियां उत्पन्न होती है। विश्वास किया जाता है कि इसी का परिणाम है कि भारत में मानसून के वर्षाकाल में कमी आई है और धान, गेहूं और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा है। इस संकटपूर्ण बादलों में कुछ ऐसे कण होते हैं जो सूर्य के प्रकाश को सोख लेते हैं और वायुमंडल का तापमान बढ़ाते हैं। इससे हिमालय के ग्लेशियर, (बर्फ की नदियां) जो कि एशिया की प्रमुख नदियों के स्त्रोत हैं, तेजी से पिघलने लगी हैं।
चीन की विज्ञान अकादमी के अनुसार 1950 से अब तक हिमालय के ग्लेशियर क्षेत्र में 5 प्रतिशत की कमी हो चुकी है और सन् 2050 तक इसमें 75 प्रतिशत तक की कमी होने की आशंका है। यह बहुत ही भयावह स्थिति होगी। इससे भारत में ही नहीं बल्कि आसपास के अनेक देशों में पानी का अकाल पड़ जाएगा।
ऐसा नहीं है कि ये घातक बादल सिर्फ एशिया के लिए ही संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न करते हैं। वास्तविक में तो हवा के बहाव में ये बादल तीन चार दिनों में एशिया जैसा विशाल महाद्वीप लांघकर कभी-कभी अन्य महाद्वीपों पर संकट बरसाने पहुंच जाते हैं। यह भूरे बादल उत्तर और दक्षिण अमरीका, योरप और दक्षिण अफ्रीका के ऊपर मंडराते देखे जाते हैं।
संयुक्त राष्टर संघ द्वारा प्रायोजित वैज्ञानिकों के अंर्तराष्टरीय समूह के सात वर्षों के विस्तृत शोध के उपरोक्त निष्कर्षों से यही चेतावनी मिल रही है कि पर्यावरण का प्रदूषण एक विश्वव्यापी विकराल संकट बन चुका है जिससे मानव समाज के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है।
इस संकट से उभरने के लिए संयुक्त राष्टर संघ, सभी देशों की सरकारों, उद्योगों और फैक्टरियां चलाने वाले औद्योगिक समूहों को इस संकटपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए युद्धस्तर पर कारगर कदम उठाने के लिए कह ही रही है, परंतु इस चेतावनी से हम सभी को भी व्यक्तिगत स्तर पर भी इस बात का एहसास होना चाहिए कि अब हम ऐसे युग में पहुंच गए हैं कि पर्यावरण के प्रदूषण के कारण हमारा अस्तित्व ही संकटग्रस्त हो गया है। अतएव हम सभी को निजी स्तर पर भी पर्यावरण को प्रदूषण से बचाए रखने के लिए सक्रिय रहना चाहिए। क्योंकि पर्यावरण की सुरक्षा सर्वोच्च मानवीय धर्म है।
- प्रो. राधाकांत चतुर्वेदी
एशिया के 13 महानगरों जैसे मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, बेजिंग, शंघाई, काहिरा, बैंकाक इत्यादि पर तो इन संकट के बादलों का इतना घना जमावड़ा देखा जा रहा है कि इससे सूर्य का प्रकाश भी 25 प्रतिशत तक बाधित हो जाता है।
ये घातक बादल सिर्फ एशिया के लिए ही संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न करते हैं। वास्तविक में तो हवा के बहाव में ये बादल तीन चार दिनों में एशिया जैसा विशाल महाद्वीप लांघकर कभी-कभी अन्य महाद्वीपों पर संकट बरसाने पहुंच जाते हैं। यह भूरे बादल उत्तर और दक्षिण अमरीका, योरप और दक्षिण अफ्रीका के ऊपर मंडराते देखे जाते हैं।
संयुक्त राष्टर द्वारा विश्व के कुछ प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिकों के शोध परिणामों पर आधारित एक रिपोर्ट पिछले दिनों जारी की गई है जिसमें दिए हुए तथ्य हम भारतीयों के लिए रोंगटे खड़े करने वाले हैं।
देखा गया है कि पूर्व में ईरान की खाड़ी से लेकर शेष पूरे एशिया पर गहरे भूरे रंग के घने बादल छाये रहते हैं। ये बादल लकड़ी जलाने से निकले धुएं के साथ फैक्टरियों से निकले तमाम तरह के हानिकारक रासायनिक कणों से मिले धुएं के मिलने से बनते हैं। इनसे पूरे विश्व के विशेषतया एशिया के देशों के पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इन बादलों की मोटाई तीन किलोमीटर तक होती है। अपनी विशाल जनसंख्या के कारण भारत और चीन इस आकाशीय आपदा से सबसे ज्यादा खतरे में हैं।
एशिया के 13 महानगरों जैसे मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, बेजिंग, शंघाई, काहिरा, बैंकाक इत्यादि पर तो इन संकट के बादलों का इतना घना जमावड़ा देखा जा रहा है कि इससे सूर्य का प्रकाश भी 25 प्रतिशत तक बाधित हो जाता है।
इस तरह के बादलों से अनेक तरह की प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियां उत्पन्न होती है। विश्वास किया जाता है कि इसी का परिणाम है कि भारत में मानसून के वर्षाकाल में कमी आई है और धान, गेहूं और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा है। इस संकटपूर्ण बादलों में कुछ ऐसे कण होते हैं जो सूर्य के प्रकाश को सोख लेते हैं और वायुमंडल का तापमान बढ़ाते हैं। इससे हिमालय के ग्लेशियर, (बर्फ की नदियां) जो कि एशिया की प्रमुख नदियों के स्त्रोत हैं, तेजी से पिघलने लगी हैं।
चीन की विज्ञान अकादमी के अनुसार 1950 से अब तक हिमालय के ग्लेशियर क्षेत्र में 5 प्रतिशत की कमी हो चुकी है और सन् 2050 तक इसमें 75 प्रतिशत तक की कमी होने की आशंका है। यह बहुत ही भयावह स्थिति होगी। इससे भारत में ही नहीं बल्कि आसपास के अनेक देशों में पानी का अकाल पड़ जाएगा।
इसी अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है इस प्रदूषण जनित बादलों में कुछ ऐसे विषैले रासायनिक कण होते है जिनसे मानव तथा अन्य सभी जीव जन्तुओं और वनस्पति पर इसका घातक प्रभाव पड़ता है। मानव को श्वास प्रणाली संबंधित बीमारियों से भारत और चीन में प्रत्येक वर्ष लगभग साढ़े तीन लाख मनुष्यों की अकाल मृत्यु होती है।
संयुक्त राष्टर संघ द्वारा प्रायोजित वैज्ञानिकों के अंर्तराष्टरीय समूह के सात वर्षों के विस्तृत शोध के उपरोक्त निष्कर्षों से यही चेतावनी मिल रही है कि पर्यावरण का प्रदूषण एक विश्वव्यापी विकराल संकट बन चुका है जिससे मानव समाज के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है।
इस संकट से उभरने के लिए संयुक्त राष्टर संघ, सभी देशों की सरकारों, उद्योगों और फैक्टरियां चलाने वाले औद्योगिक समूहों को इस संकटपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए युद्धस्तर पर कारगर कदम उठाने के लिए कह ही रही है, परंतु इस चेतावनी से हम सभी को भी व्यक्तिगत स्तर पर भी इस बात का एहसास होना चाहिए कि अब हम ऐसे युग में पहुंच गए हैं कि पर्यावरण के प्रदूषण के कारण हमारा अस्तित्व ही संकटग्रस्त हो गया है। अतएव हम सभी को निजी स्तर पर भी पर्यावरण को प्रदूषण से बचाए रखने के लिए सक्रिय रहना चाहिए। क्योंकि पर्यावरण की सुरक्षा सर्वोच्च मानवीय धर्म है।
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