छत्तीसगढ़ के पुरोधा
छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के इतिहास और उसके नवजागरण में उसकी भूमिका को सामने लाने के उद्देश्य से कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय तथा माधवराव सप्रे पत्रकारिता शोधपीठ की संयुक्त परिकल्पना में छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता- हमारे पुरोधा खण्ड- 1 का प्रकाशन संभव हो सका है। इसमें नई पीढ़ी को हमारे पुरोधा पत्रकारों के विषय में संक्षिप्त जानकारी के साथ उनके योगदान, उनका जीवनवृत्त एवं उनके कार्य को सम्मिलित किया गया है। प्रथम खंड में पंडित माधवराव सप्रे, पं. रविशंकर शुक्ल, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी, कुलदीप सहाय, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव केशव प्रसाद वर्मा, गंजानंद माधव मुक्तिबोध, पं. स्वराज्य प्रसाद द्विवेदी, चंदूलाल चंद्राकर, मायाराम सुरजन और हरि ठाकुर को शामिल किया गया है।
इस प्रकाशन का उद्देश्य भारतीय पत्रकारिता के संपूर्ण इतिहास में छत्तीसगढ़ के योगदान की मुक्कमल पहचान को रेखांकित करना है ताकि शोधार्थी उनके जीवन और कृतित्व पर शोध के लिए प्रेरित हो सकें। पत्रिका का संपादन माधवराव सप्रे पत्रकारिता शोधपीठ के अध्यक्ष परितोष चक्रवर्ती ने किया है।
स्वागत है मिजबान
किस्से- कहानी कहना और सुनना पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति की समृद्घशाली परम्परा रही है। अभी ज्यादा समय नहीं बीता है कि जब हमारे ग्रामीण अंचलों में सांझ ढलते ही गांव के किसी बुजुर्ग की चौपाल पर बैठकें जम जाया करती थीं और चल पड़ता किस्से और कहानियों का लम्बा दौर जिसमें पता ही नहीं चलता था कि आधी रात कब हो गई। लेकिन अब ये बातें स्मृतियां बनती जा रही हैं। इन स्मृतियों को संजोने का प्रयास एकलव्य संस्था द्वारा किया गया है, मिजबान के रूप में। मिजबान बुन्देलखंडी लोककथाओं का संकलन है जिसमें मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में प्रचलित बुन्देलखंडी लोककथाओं में से 12 कहानियों को चुना गया है। इन कहानियों में बहुत से स्वाद हैं और सभी पढऩे वाले को आकर्षित करते हैं। इन कहानियों को अतनु राय के चित्रों ने बेहद सजीव बना दिया है।
प्रकाशक- एकलव्य, मूल्य- 30 रुपए।
इस प्रकाशन का उद्देश्य भारतीय पत्रकारिता के संपूर्ण इतिहास में छत्तीसगढ़ के योगदान की मुक्कमल पहचान को रेखांकित करना है ताकि शोधार्थी उनके जीवन और कृतित्व पर शोध के लिए प्रेरित हो सकें। पत्रिका का संपादन माधवराव सप्रे पत्रकारिता शोधपीठ के अध्यक्ष परितोष चक्रवर्ती ने किया है।
स्वागत है मिजबान
किस्से- कहानी कहना और सुनना पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति की समृद्घशाली परम्परा रही है। अभी ज्यादा समय नहीं बीता है कि जब हमारे ग्रामीण अंचलों में सांझ ढलते ही गांव के किसी बुजुर्ग की चौपाल पर बैठकें जम जाया करती थीं और चल पड़ता किस्से और कहानियों का लम्बा दौर जिसमें पता ही नहीं चलता था कि आधी रात कब हो गई। लेकिन अब ये बातें स्मृतियां बनती जा रही हैं। इन स्मृतियों को संजोने का प्रयास एकलव्य संस्था द्वारा किया गया है, मिजबान के रूप में। मिजबान बुन्देलखंडी लोककथाओं का संकलन है जिसमें मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में प्रचलित बुन्देलखंडी लोककथाओं में से 12 कहानियों को चुना गया है। इन कहानियों में बहुत से स्वाद हैं और सभी पढऩे वाले को आकर्षित करते हैं। इन कहानियों को अतनु राय के चित्रों ने बेहद सजीव बना दिया है।
प्रकाशक- एकलव्य, मूल्य- 30 रुपए।
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