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Feb 17, 2010

साहित्यकार के हसीन सपने



- काशीपुरी कुंदन
जब से भिड़ाऊरामजी पद्मश्री से विभूषित हुए हैं मेरा मन पद्मश्री की दुनिया में ठीक उसी तरह भटक रहा है जैसे कुर्सी विहीन नेता कुर्सी के लिए। भिड़ाऊराम द्वारा उच्चारित अनमोल वाणी मेरे कानों में आज भी दादाजी की सीख की तरह गूंज रही है। यदि आप पद्मश्री या पुरस्कार के मुंतजिर हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है, पुरस्कार बिकता है, दूल्हे जैसा। जो भी पुरस्कार लेना चाहते हैं या जिसके काबिल अपने आपको समझते हैं उसकी प्राप्ति सीमा में घुसिए और उसका आनंद उठाइए।
धीरे- धीरे मेरा मन छुटका चोर की तरह, जो छोटी- छोटी चोरियों के हुनर जानने- आजमाने के बाद डाका डालने की कला में महारत हासिल कर लेता है, उसी प्रकार छोटे- छोटे पुरस्कार हड़पने के गुर जानने से लेकर बड़े से बड़े पुरस्कार हथियाने के हसीन ख्वाब देखने लगा। इस हसीन ख्वाब का आनंद शुरू- शुरू में मैं रात्रि में लेता था। कहते हैं जिस किसी शरीफजादा को इसका चस्का लग जाए तो यह ड्रग से भी खतरनाक लत साबित होती है। इसीलिए मैं आजकल केजुअल लीव लेकर खूबसूरत सपने देखता हूं। फिर भी मन नहीं भरता है।
इसी सिलसिले में दिन के बारह बजे मुगेंरीलाल के हसीन सपने की तरह हम भी देखने लगे कि राष्ट्रपति भवन का सील लगा हुआ लिफाफा लिए डाकिया मेरे द्वार खड़ा है। उसके हाथ से लिफाफा मैं झटक लेता हूं, आनन फानन में उसके अन्दर चमकदार कागज में मुद्रित इबारत बांचते ही मेरे मुंह से अनायास सीटी बजने लगता है। सुरीली सीटी को सुनकर मेरी श्रीमती की निद्रा भंग हो जाती है, निद्रा भंग होने पर वह ऐसे गुर्राती है जैसे कोई मंत्री संसद भंग हो जाने पर। लेकिन मेरे हाथों में शानदार चमकदार लिफाफा देखकर अपने क्रोध को जब्त कर मुझे बच्चों सा भुलावा देकर लिफाफा मेरे हाथों से झटक लेती है। चूंकि धोखे से प्राथमिक ंिवद्यालय की शोभा बढ़ा चुकी है अस्तु वह ऐसे खुश होती है जैसे किसी कंजूस को रास्ते में पड़ा पैसा मिल जाए या कोई दावत का न्यौता दे जाए। बेचारी ने बमुश्किल रात बिताई। इतनी खुशी उसे मुझसे शादी करने पर नहीं हुई थी। तड़के चार बजे इस धमाकेदार समाचार को पड़ोस में प्रसारित करने के लिए वायरलेस को भी पीछे छोड़ गई। बच्चे औकात से लम्बी फेहरिस्त बनाने में मशगूल हो गए। कुन्दनजी पद्मश्री से विभूषित होने वाले हैं। खबर दावानल की तरह मुहल्ले से होते हुए समूचे शहर में फैल गई। तमाम शुभाशुभचिंतकों की हम तेरे हैं तेरे ही रहेंगे की मुद्रा में मेरे घर के सामने लम्बी लाइन लगने लगी। अखबार वाले जो मेरी रचनाओं को कूड़ेदान को सादर समर्पित कर देते हैं वे मोटे अक्षरों में प्रख्यात व्यंग्यकार कुन्दनजी पुरस्कृत मुख्यपृष्ठ पर छापकर गौरवान्वित होने लगे। इन्टरव्यू के लिए पत्रकार दल पहुंचने लगे। मेरे चित्र कई पोज में उतारी जाने लगी।
सबसे अनोखी बात यह हुई -उधारी वालों के डर से मैं सन्यास लेने की मानसिकता बना चुका था वे मेरी खुशामद करने लगे। पुन: उधारी देने के लिए मेरे घर के चक्कर मारने लगे। श्रीमती ने भी वक्त हाथ से नहीं जाने दिया और इस प्रकार के जितने भी हितैषी, सेवा- भावी विचारधारा के प्राणी थे सबको उन्होंने जी भर के अवसर दिया। नतीजा सभी हितैषियों ने उपहारों से घर को लबालब भर दिया।
मुझे बाजे गाजे के साथ स्थानीय रेल्वे प्लेटफार्म पर राष्ट्रपति भवन यानी दिल्ली जाने के लिए छोड़ा गया। इतने आत्मीय स्वागत को देखकर मेरा मूड फिर से शादी करने का बन रहा था कि श्रीमतीजी ने आदतन आदेश दिया- सुनो जी पुरस्कार का धन प्राप्त होते ही तत्काल बैंक ड्राफ्ट भेज देना, आजकल हमारे देश में चोर- उचक्कों की कमी नहीं है कब किसको कंगाल बना दे, दूसरी बात साथ में रूपये लेकर इतनी लम्बी यात्रा करना भी विश्वसनीय नहीं रह गया है। रेलों, बसों का भी कोई भरोसा नहीं रहा, कब किस नदी में समा जाएं। भगवान करे ऐसी-वैसी बात न हो मगर भविष्य को कौन जानता है। दूसरी बात आजकल मुआवजे में भी दम नहीं रह गया है। हवाई यात्रा करते तो कुछ और बात थी। श्रीमतीजी की बातों से मेरा विश्वास पुख्ता हो चला था कि उसे मेरे पुरस्कृत होने या मुझे मान- सम्मान मिलने की खुशी नहीं थी वरन पुरस्कार की धन राशि प्राप्त होने पर थी, जिससे वह अपनी मनपंसद की वस्तुएं खरीद सके।
खैर साहब भारतीय रेल का सुख भोगते कभी प्रभु को याद करते और कभी हनुमान चालीसा पढ़ते हुए दिल्ली का सुहाना सफर तय करने लगे। स्टेशन के स्वास्थ्यवर्धक छोले-भटुरे गटकने के साथ ही मुफ्त में हिचकोले खाते, व्यायाम करते हम रेल परम्परानुसार सिर्फ तीन घंटे विलम्ब से दिल्ली प्लेटफार्म पर उतरने की गरज से सर्वसुविधा युक्त रेलगाड़ी को छोडऩे का मूड बनाने लगे। गजगामिनी सी रेगती हुई रेल प्लेटफार्म पर खड़ी हो गई। सहयात्रीगण एक- एक कर अतिक्रमण किए सीटों को छोडऩे लगे गोया अतिक्रमण हटाओ शुरू हो गया हो। हमने भी अपने समान की सुध ली कि हमारे होश उड़ गए, घिग्घी बंध गई, किस्मत फूटी निकली, उठाईगिरी से खानदानी ताल्लुकात रखने वाले जरूरतमंद चोर भाई ने मित्रो से काम चलाऊ सरकार की तरह उधार ली गई अटैची सहित कपड़े, बटुए राष्ट्रपति भवन का आमंत्रण पत्र आदि पर हाथ साफ कर दिया था। मेरे पास रेल पटरियों पर लेटकर राष्ट्रपति भवन जाने के बदले मुफ्त में स्वर्ग जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था परंतु एक टिकिट कलेक्टर यमराज की तरह सामने ही खड़ा था। लाख स्पष्टीकरण देने के बावजूद टी.टी.आई ने मेरी एक न सुनी और मुझे बिना टिकिट यात्रा करने के जुर्म में रेलयात्री से जेलयात्री होने का सुअवसर प्रदान कर दिया ।
सलाखों के बीच पद्मश्री से अंलकृत होने के हसीन सपने देखने के बदले हकीकत के आंसू बहाने लगा। दिमाग में अनेक विचार आने- जाने लगे, उसी तरह जैसे कर्ज लेने बाद नहीं पटाने पर कर्जदारों का आना-जाना जारी हो जाता है। कभी मन ही मन डाक वालों को कोसने लगता कि डाक परम्परानुसार डाक के डाकू इस लिफाफे को भी डकार गए होते तो आज चुल्लू भर पानी में डूबने की नौबत नहीं आती। दूसरी जब तक लार्ड डलहौजी के वंशज, साहित्य के मठाधीश व्यवस्था पर कुडंली मारे हुए बैठे रहेंगे तब तक प्रतिभाओं की हत्या होती रहेगी और हमारे जैसे प्रतिभा सम्पन्न निरीह साहित्यकार सिर्फ हसीन सपने देखते और बेचते रहेंगे जैसे पुख्ता विचार जोर मारने ही वाला था कि मेरे सात वर्षीय बालक ने यह कहते हुए मुझे जगा दिया कि पापा उठो फीस नहीं भरने के कारण मेरा नाम स्कूल से कट गया है।
संपर्क- मातृछाया, मेला मैदान राजिम,
जिला-रायपुर (छ.ग.) पिन -493885
मो.नं.-9893788109
व्यंग्यकार के बारे में ...
छत्तीसगढ़ में धमतरी और राजिम दो ऐसे कस्बे रहे हैं जहां साहित्यिक सरगरमियां खूब रही हैं। राजिम में पुरुषोत्तम अनासक्त जैसे व्यंग्य कथाओं के गंभीर लेखक हुए हैं। पिछले तीन दशकों से वहां काशीपुरी कुंदन सक्रिय हैं। जो अनासक्त के ठीक विपरीत ध्रुवांत के लेखक हैं। वे मंचों के प्रसिद्घ हास्य कवि हैं। साथ ही गद्य व्यंग्य भी वे लिखते हैं। अभी अभी उनका व्यंग्य संग्रह 'भ्रष्टाचार के शलाका पुरुष' छप कर आया है। काशीपुरी कुंदन की रचनाओं में 'विट' है। वे व्यंग्य के साथ हास्य को पिरोना जानते हैं। इसलिए उनकी व्यंग्य रचनाएं हास्य की तरफदारी करती हैं। यहां प्रस्तुत उनकी रचना 'साहित्यकार के हसीन सपने' उनकी लेखन प्रकृति का एक प्रमाण है। आज राजनेताओं की तरह साहित्यकार भी समीकरण बाज हो गए हैं और पुरस्कार हथियाने के लिए वे किस तरह के गणित बिठाते हैं और कैसे कैसे गठजोड़ करते हैं। कुछ ऐसी ही प्रवृत्तियों की ओर यहां लेखक का इशारा है।
- विनोद साव

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