हिंदी भाषा
सटीक तर्कों और तथ्यों वाला शानदार आलेख। लेखक को साधुवाद कि उन्होंने छत्तीसगढ़ी को पर्याप्त महत्व देते हुए हिंदी की अनिवार्यता को साबित किया। व्यावहारिक और भावनात्मक, दोनों पहलुओं से। यह ध्यान देने वाली बात है कि हिंदी और छत्तीसगढ़ी में कोई विरोध ही नहीं है। हर छत्तीसगढिय़ा हिंदी से भी बराबर प्रेम करता है और उतना ही मान (या कहें कि कहीं ज़्यादा) देता है। हिंदी भाषा से बढ़कर राष्ट्रभाषा है और छत्तीसगढ़ी हमारी अपनी बोली है। एक को पाने के लिए दूसरे को छोडऩे की कोई आवश्यकता नहीं है, और इसलिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है।
-विवेक गुप्ता, भोपाल, vivekbalkrishna@gmail.com
महंगाई भ्रष्टाचार का पौधा है
उदंती के पिछले दोनों अंक खास हैं। नवंबर अंक में लेव निकोलायेविच के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही महान लेखकों की दिनचर्या उर्जा और प्रेरणा देती है। महत्त्वाकांक्षी फूल बहुत ही सुंदर कहानी है। खलील जिब्रान जैसे दार्शनिक लेखक को बार -बार पढऩा अच्छा लगता है, जीवन यदु की ...पर मुझको खटना पड़ता है, कविता को मर-मर जीने में... बहुत अच्छी पंक्तियां। अनकही में भ्रष्टाचार और गरीबी का घातक गठबंधन बहुत ही विचारोत्तेजक लेख है - भ्रष्टाचार आज हर जगह व्याप्त है। छोटे से छोटा कर्मचारी हर बात के लिये पैसे की मांग करता है और हम भी अपना समय बरबाद न हो इसके लिए उसकी मांग पूरी करते हैं। आज भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। महंगाई भ्रष्टाचार का ही पौधा है। ... दिसंबर अंक में अनकही पढ़ कर यही कहूंगी कि जलसमस्या आज विकराल रुप धारण करने के कगार पर है । यदि हम अब भी नहीं चेते तो बड़ी देर हो जायेगी । केवल सरकार को ही नहीं हमें भी इस ओर कड़े कदम उठाने होंगे। कोंकण की खूबसूरत यात्रा वृत्तांत या फिर यूं कहें कि यात्रा करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
सुमीता केशवा, मुम्बई, sumitakeshwa@yahoo.com
सुंदर अंक
उदंती का दिसम्बर अंक पढ़ा। मन्टो की कहानी, दीपाली की लघुकथाएं, समोसा माट साब और मुक्तादास के बारे में एक सांस में ही पढ़ गया। सुंदर अंक के लिए बधाई स्वीकारें।
- राजेश उत्साही, बैंगलोर, utsahi@gmail.com
सड़क चिंतन
सुरेश कांत जी हमारे समय के महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं। उनकी शैली, जैसा कि आपने 21 वीं सदी के व्यंग्यकार में प्रकाशित सड़क चिंतन पर टिप्पणी करते हुए उनके व्यक्तित्व का आंकलन उन्हें बहुत सहज-सरल कहा है। यही विशेषता उन्हें अन्यों से अलग करती है ।
-जवाहर चौधरी, 16 कौशल्यापुरी, चितावद रोड, इन्दौर, jc.indore@gmail.com
कोकण यात्रा
प्रकृति मन को ताजगी और ऊर्जा से भर देते हैं। उदंती में आप समय समय पर हमें विभिन्न पर्यटन एवं पुरातत्व स्थलों के बारे में जानकारी देती हैं, जो पढऩे वालों को भी प्रकृति के करीब जाने और उन स्थलों की सैर के लिए उकसाते हैं। अभिषेक ओझा की पहाडिय़ों पर बसा कोंकण संस्मरण पढ़ते हुए यात्रा का अहसास तो हुआ ही साथ में दिये चित्रों से उन सुरम्य वादियों में घुमने की इच्छा और बलवती हो गई।
- लतिका शर्मा, दुर्ग
सटीक तर्कों और तथ्यों वाला शानदार आलेख। लेखक को साधुवाद कि उन्होंने छत्तीसगढ़ी को पर्याप्त महत्व देते हुए हिंदी की अनिवार्यता को साबित किया। व्यावहारिक और भावनात्मक, दोनों पहलुओं से। यह ध्यान देने वाली बात है कि हिंदी और छत्तीसगढ़ी में कोई विरोध ही नहीं है। हर छत्तीसगढिय़ा हिंदी से भी बराबर प्रेम करता है और उतना ही मान (या कहें कि कहीं ज़्यादा) देता है। हिंदी भाषा से बढ़कर राष्ट्रभाषा है और छत्तीसगढ़ी हमारी अपनी बोली है। एक को पाने के लिए दूसरे को छोडऩे की कोई आवश्यकता नहीं है, और इसलिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है।
-विवेक गुप्ता, भोपाल, vivekbalkrishna@gmail.com
महंगाई भ्रष्टाचार का पौधा है
उदंती के पिछले दोनों अंक खास हैं। नवंबर अंक में लेव निकोलायेविच के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही महान लेखकों की दिनचर्या उर्जा और प्रेरणा देती है। महत्त्वाकांक्षी फूल बहुत ही सुंदर कहानी है। खलील जिब्रान जैसे दार्शनिक लेखक को बार -बार पढऩा अच्छा लगता है, जीवन यदु की ...पर मुझको खटना पड़ता है, कविता को मर-मर जीने में... बहुत अच्छी पंक्तियां। अनकही में भ्रष्टाचार और गरीबी का घातक गठबंधन बहुत ही विचारोत्तेजक लेख है - भ्रष्टाचार आज हर जगह व्याप्त है। छोटे से छोटा कर्मचारी हर बात के लिये पैसे की मांग करता है और हम भी अपना समय बरबाद न हो इसके लिए उसकी मांग पूरी करते हैं। आज भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। महंगाई भ्रष्टाचार का ही पौधा है। ... दिसंबर अंक में अनकही पढ़ कर यही कहूंगी कि जलसमस्या आज विकराल रुप धारण करने के कगार पर है । यदि हम अब भी नहीं चेते तो बड़ी देर हो जायेगी । केवल सरकार को ही नहीं हमें भी इस ओर कड़े कदम उठाने होंगे। कोंकण की खूबसूरत यात्रा वृत्तांत या फिर यूं कहें कि यात्रा करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
सुमीता केशवा, मुम्बई, sumitakeshwa@yahoo.com
सुंदर अंक
उदंती का दिसम्बर अंक पढ़ा। मन्टो की कहानी, दीपाली की लघुकथाएं, समोसा माट साब और मुक्तादास के बारे में एक सांस में ही पढ़ गया। सुंदर अंक के लिए बधाई स्वीकारें।
- राजेश उत्साही, बैंगलोर, utsahi@gmail.com
सड़क चिंतन
सुरेश कांत जी हमारे समय के महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं। उनकी शैली, जैसा कि आपने 21 वीं सदी के व्यंग्यकार में प्रकाशित सड़क चिंतन पर टिप्पणी करते हुए उनके व्यक्तित्व का आंकलन उन्हें बहुत सहज-सरल कहा है। यही विशेषता उन्हें अन्यों से अलग करती है ।
-जवाहर चौधरी, 16 कौशल्यापुरी, चितावद रोड, इन्दौर, jc.indore@gmail.com
कोकण यात्रा
प्रकृति मन को ताजगी और ऊर्जा से भर देते हैं। उदंती में आप समय समय पर हमें विभिन्न पर्यटन एवं पुरातत्व स्थलों के बारे में जानकारी देती हैं, जो पढऩे वालों को भी प्रकृति के करीब जाने और उन स्थलों की सैर के लिए उकसाते हैं। अभिषेक ओझा की पहाडिय़ों पर बसा कोंकण संस्मरण पढ़ते हुए यात्रा का अहसास तो हुआ ही साथ में दिये चित्रों से उन सुरम्य वादियों में घुमने की इच्छा और बलवती हो गई।
- लतिका शर्मा, दुर्ग
No comments:
Post a Comment