उदंती.com, जनवरी-फरवरी 2010
वर्ष 2, संयुक्तांक 6-7
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धैर्य और परिश्रम से हम वह प्राप्त कर सकते हैं जो शक्ति और शीघ्रता से कभी नहीं।
- ला फान्टेन
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अनकही: रक्षक के वेश में भक्षक!
परंपरा : धरती की प्यास बुझाते हैं तालाब
- राहुल कुमार सिंह
संस्मरण : एक सच्चे संत की पुण्य स्मृति
- प्रताप सिंह राठौर
कविता: जिन्दगी की सुनहरी घड़ी
- बुधराम यादव
उत्सव : चली चली रे पतंग...- उदंती फीचर्स
अतिथि : जिनके लिए बस्तर के गांव स्वर्ग समान हैं
- हरिहर वैष्णव
प्रकृति : वसन्त बहार...- डॉ. गीता गुप्त
पर्यटन : बर्फीलीमेहमाननवाजी - बिमल श्रीवास्तव
स्वाद: भारतीय मसालों का जवाब नहीं/ जरा सोचें
धरोहर : बूंद नहीं तो समुद्र भी नहीं
जीवन शैली : जल बिच मीन पियासी रे
- अरुण कुमार शिवपुरी
वाह भई वाह
21वीं सदी के व्यंग्यकार / 10वीं कड़ी :
साहित्यकार के हसीन सपने - काशीपुरी कुंदन
कहानी: रामी - डॉ. दीप्ति गुप्ता
लघु कथाएं: कमल चोपड़ा
इस अंक के लेखक
आपके पत्र/ इन बाक्स
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