
इस झील में एक विस्मयकारी बात जो दिखाई देती है वह है वहां के तैरते हुए टापू। उस इलाके में एक जनजाति 'उरो' हुआ करती थी जो इन्काओं से भी पहले की थी। बाहरी आक्रमण से अपने आपको बचाने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका ढूँढ निकाला। इसके लिए सहायक हुई वहां झील के किनारे उगने वाली एक जलीय वनस्पति (रीड-मुश्कबेंत) avsscv अंग्रेजी में Scirpus totora कहा गया है। एक प्रकार से यह हमारे भर्रू वाला पौधा ही है जो लगभग 8/10 फीट तक ऊंचा होता है। अन्दर से पोला। समझने के लिए कह सकते हैं कि पतला सा बांस जिसे बेंत सरीखे मोड़ा भी जा सकता हो। इन लोगों ने इस तोतोरा को काट- काट कर एक के ऊपर एक जमाया जिससे एक बहुत ही मोटी परत या प्लेटफोर्म बन जाए। आपस में उन्हें जोड़ कर वाँछित लम्बा चौड़ा भी बना दिया। यह पानी पर तैरने लगी। इसे इतना बड़ा बना दिया कि उस पर अपनी एक झोपड़ी भी बना सकें। अब उनकी झोपड़ी पानी पर तैरने लगी। तोतोरा की एक खूबी यह भी है कि पानी में रहते हुए उनकी जड़ें निकल कर आपस में एक दूसरे को गूँथ भी लेती हैं। जब नीचे का भाग सडऩे लग जाता तो ऊपर से एक और परत तोतोरा की बिछा दी जाती। इस तरह यह प्लेटफोर्म कम से कम 30 वर्षों तक काम में आता है। वैसे वे लोग इन झोपडिय़ों में किनारे ही रहा करते थे और अपने प्लेटफोर्म को किनारे से बांधे रखते थे परन्तु जब भी उन्हें बाहरी लोगों के आक्रमण का डर सताता तो वे किनारा छोड़ कर झील में आगे निकल जाते थे जैसे हम अपनी नावों को करते हैं। हाँ ये लोग तोतोरा की डंठलों से अपने नाव का भी निर्माण करते हैं। समुद्र में जाने योग्य बड़े- बड़े नाव इस तोतोरा से बनाये जाने का भी उल्लेख मिलता है। तोतोरा केवल उरो लोगों की ही नहीं बल्कि झील के किनारे रहने वालों के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिस प्रकार बांस से हम दैनिक उपयोग की वस्तुएं, कलात्मक सामग्रियां आदि बनाते हैं, वैसे ही तोतोरा का भी प्रयोग होता है।
तोतोरा की एक खूबी यह भी है कि पानी में रहते हुए उनकी जड़ें निकल कर आपस में एक दूसरे को गूँथ भी लेती हैं। जब नीचे का भाग सडऩे लग जाता तो ऊपर से एक और परत तोतोरा की बिछा दी जाती।

इन लोगों की तैरती बस्तियों तक पहुँचने के लिए हमें पूनो जाना होगा जिसे टिटिकाका का प्रवेश द्वार कहते हैं। यहाँ से मोटर बोट मिलते हैं जिनमें आगे की यात्रा की जाती है। पूनो जाने के लिए पेरू की राजधानी लीमा से नियमित उड़ाने उपलब्ध हैं। पूनो के पास वाला हवाई अड्डा जुलियाका कहलाता है। अब जब पेरू जा ही रहे हैं तो वहां 'माचू पिच्चु' भी देख आना चाहिए। पहाड़ों पर 'इनका' लोगों के द्वारा बसाया गया प्राचीन नगर जो विश्व के सात नए आश्चर्यों में से एक है। यदि ऐसा कार्यक्रम बनता है तो लीमा से 'कुज्को' की उड़ान भरनी होगी। कुज्को से रेलगाड़ी चलती है और पूनो तक आती भी है। इस तरह एक पंथ दो काज। माचू पिच्चु भी देख लेंगे। आप धोखे में न रहे। हम यहाँ कभी नहीं गए परन्तु सपना तो देख ही सकते हैं।
संपर्क: 23, यशोदा परिसर, कोलार रोड, भोपाल (मप्र) मो. 09303106753
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