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Sep 23, 2009

किसानों के लिए खुशखबरी

मधुमक्खी से डरते हैं हाथी
अफ्रीकी किसानों ने हाथियों से अपनी जमीन और फसलों को बचाने के लिए क्या-क्या नहीं किया, कभी बाड़ बनाई, तो कभी तेज रोशनी दिखाई और यहां तक कि रबर से बने जूतों के तले तक जलाए लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए अभी तक प्रयासरत हैं। और इस प्रयास से एक सवाल पैदा हुआ है।
और तब कहीं जाकर अब इस सवाल का जवाब खोज निकाला गया है। ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में कार्यरत ल्यूसी किंग का कहना है कि मधुमक्खियों की भिनभिनाती आवाज से यह काम हो सकता है। किंग को किसी ने बताया था कि जहां मधुमक्खियों का छत्ता जहां होता है वहां हाथी कभी नहीं जाते हैं। उन्हें किसी ने यह भी बताया था कि एक बहुत बड़े हाथी को मधुमक्खी ने काट लिया था, तो वह पूरी तरह पगला गया था। किंग ने इस विचार को आजमाने पर विचार किया।
उन्होंने केन्या के बफेलो स्प्रिंग तथा सम्बुरो नेशनल रिजर्व में हाथियों के 17 झुण्डों को मधुमक्खी की आवाज की 4 मिनिट की रिकाडिंग सुनाई। इसके लिए किंग ने एक कृत्रिम पेड़ के तने में इस आवाज की रिकार्ड स्पीकर पर बजाई तो 17 में से 16 झुण्ड इस पेड़ से दूर ही रहे। कुछ झुण्ड तो इन आवाजों की जगह से 100मीटर की दूरी पर रुक गए। औसत दूरी 64 मीटर थी।
किंग कहती हैं कि मधुमक्खी की आवाज तो अच्छे से काम कर रही है, लेकिन इसको चलाने के लिए जो साधन लगते हैं वे महंगे हैं। उनका कहना है कि ज्यादा सस्ता तरीका यह होगा कि हाथियों को भगाने के लिए किसान अपने यहां सचमुच के मधुमक्खियों के छत्ते लगाएं। इससे वे हाथियों को तो भगा ही सकते हैं साथ ही शहद बेचकर अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा मधुमक्खियां परागण में भी मददगार होंगी। वे इस तरह के प्रयोग कर भी रही हैं। किसानों के लिए यह मीठे फायदे का सौदा रहेगा। यदि यह प्रयोग सफल होता है तब तो भारत में गांवों में उत्पात मचाने वाले हाथियों पर भी आसानी से काबू पाया जा सकेगा।
इसे कहते हैं सादगी
सादगी की मिसाल देते समय इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन को भी याद किया जाता है। वे प्रधानमंत्री होते हुए भी सादा जीवन जीना पसंद करते थे। एक बार एक समाचार पत्र के संपादक ने उनसे साक्षात्कार के लिए समय मांगा। प्रधानमंत्री ट्रेन से कहीं जा रहे थे उन्होंने संपादक को  स्टेशन पर ही बातचीत के लिए बुला लिया। संपादक स्टेशन पहुंचा और प्रथम श्रेणी के डिब्बे की ओर लपका। पर ग्लैडस्टोन वहां कहीं दिखाई नहीं दिए। तभी प्रथम श्रेणी के उस डिब्बे में बैठे एक युवक ने उनसे पूछा कि क्या आप प्रधानमंत्री की तलाश कर रहे हैं। उसके हां कहने पर युवक ने बताया कि वे तो द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में मिलेंगे।
संपादक द्वितीय श्रेणी में पहुंचा और ग्लैडस्टोन को वहां बैठे देख बोला आप देश के प्रधानमंत्री हैं फिर भी द्वितीय श्रेणी से सफर कर रहे हैं। यदि प्रथम श्रेणी में बैठे उस युवक ने आपके यहां बैठे होने की जानकारी नहीं दी होती तो मैं तो लौट ही जाता। यह सुनकर ग्लैडस्टोन बोले- अच्छा, आपको मेरे बेटे ने ही बताया होगा। यह सुनते ही संपादक तो और भी सकते में आ गया-  यह क्या माजरा है प्रधानमंत्री व्दितीय श्रेणी में और उनका बेटा प्रथम श्रेणी में। वह फिर कुछ सवाल करता कि प्रधानमंत्री तुरंत बोले- मित्र, हैरान न हों,  मैं एक किसान का बेटा हूं और वह एक प्रधानमंत्री का बेटा। मुझे द्वितीय श्रेणी की यात्रा सुविधाजनक लगती है और उसे प्रथम श्रेणी की।
क्या आज की दुनिया में ऐसी सादगी कहीं नजर आएगी। ग्लैडस्टोन की इसी सादगी ने ही उन्हें सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया था।

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