लौट जाऊंगा
लौट जाऊंगा
- कमलेश्वर साहू
दिलों में दुश्मनों के घर बनाकर लौट जाऊंगा
हजारों ख्वाब आंखों में सजाकर लौट जाऊंगा
फरिश्तों से नहीं बनती मैं इंसां हूं मेरे मौला
तेरे जन्नत के दरवाजे पर आकर लौट जाऊंगा
यहां आया हूं तो कर्•ाा है दुनिया का मेरे सर पर
उधारी कुछ रखूंगा कुछ चुकाकर लौट जाऊंगा
मैं दुख को पालकर रखता हूं बच्चे की तरह दिल में
खुशी का क्या करूंगा सब लुटाकर लौट जाऊंगा
बिना मकसद के बरसों जी लिया तो फायदा क्या है
जियूंगा कम मगर कुछ तो बनाकर लौट जाऊंगा
गुलामी जिन्दगी भर की मिली जिनको विरासत में
हुनर आजाद होने का सिखाकर लौट जाऊंगा
पढ़ा सबका लिखा, लेखक नहीं इतना बड़ा लेकिन
किताबों में कहीं कुछ लिख-लिखाकर लौट जाऊंगा।
- कमलेश्वर साहू
दिलों में दुश्मनों के घर बनाकर लौट जाऊंगा
हजारों ख्वाब आंखों में सजाकर लौट जाऊंगा
फरिश्तों से नहीं बनती मैं इंसां हूं मेरे मौला
तेरे जन्नत के दरवाजे पर आकर लौट जाऊंगा
यहां आया हूं तो कर्•ाा है दुनिया का मेरे सर पर
उधारी कुछ रखूंगा कुछ चुकाकर लौट जाऊंगा
मैं दुख को पालकर रखता हूं बच्चे की तरह दिल में
खुशी का क्या करूंगा सब लुटाकर लौट जाऊंगा
बिना मकसद के बरसों जी लिया तो फायदा क्या है
जियूंगा कम मगर कुछ तो बनाकर लौट जाऊंगा
गुलामी जिन्दगी भर की मिली जिनको विरासत में
हुनर आजाद होने का सिखाकर लौट जाऊंगा
पढ़ा सबका लिखा, लेखक नहीं इतना बड़ा लेकिन
किताबों में कहीं कुछ लिख-लिखाकर लौट जाऊंगा।
Labels: कमलेश्वर साहू, ग़ज़ल
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