पिछले महीने 15 दिन तक उत्तराखंड की सुंदर वादियों के बीच रहने का मौका मिला। छत्तीसगढ़ की भयानक गर्मी से राहत तो मिली परंतु इस प्रदेश की नदियों पर बन रहे छोटे-बड़े बांधों के कारण यहां की नदियों के अस्तित्व पर संकट के घने बादलों का साया भी नजर आया। यह तो अकाट्य सत्य है कि पूरा देश पिछले कई बरसो से पानी की समस्या से दो- चार हो रहा है। ऐसे में उत्तराखंड की खूबसूरती के बीच मैं वहां की बर्फीली हवाओं से गुजरकर आ रही खतरे की घंटी को साफ-साफ सुन पा रही थी। जल विद्युत परियोजनाओं के कारण हो रहे नुकसान की स्पष्ट तस्वीर मेरे सामने थी क्योंकि गंगोत्री के हरे भरे और घने पेड़ों से अच्छादित पहाड़ों के जिन मार्गों से मैं पांच साल पहले गुजरी थी आज वहां कदम-कदम पर भारी विस्फोटों के कारण मानवकृत भूस्खलन, भू-धंसाव व भूकंप जैसे खतरे जहां-तहां नजर आ रहे थे।
यह भी जग जाहिर है कि उत्तराखंड की नदियां भारत की प्राणरेखा हैं, जो अनगिनत लोगों को जीवन देती हैं, लेकिन अब शायद हम ऐसा नहीं कह पाएंगे क्योंकि यहां की नदियां सूखने की कगार पर पहुंच गयी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगोत्री मार्ग पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के बाद उत्तरकाशी में गंगा कहीं-कहीं पर ही नजर आयेगी क्योंकि अधिकतर स्थानों पर गंगा विद्युत परियोजनाओं के कारण सुरंगों के अंदर से प्रवाहित होगी। मैं उन सुरंगों के किनारे से गुजरी हूं जिन्हें देखकर सोच रही थी कि ये मानव निर्मित सुरंगे जो प्रकृति से छेड़छेाड़ कर बनाई जा रहीं हैं, हमारा किस तरह भला कर पाएंगी। गंगा में अधिकांश भारतीयों की आस्था है और यह हमारी राष्ट्रीय नदी भी है, परंतु विकास के इस मॉडल से पहाड़ की नदीघाटी सभ्यता समाप्त हो जाएगी।
इसी तरह यमुना नदी पर भी कई बांध बनाने की योजना है इन बांधों के कारण यमुना के भी दर्शन लोगों को नहीं होंगे, क्योंकि यमुना की जलधारा भी इन बांधों के लिए बनने वाली सुरंगों में कैद हो जाएगी। उत्तराखंड के नगर चाहे नदी तट पर बसे हों, या पर्वतों के ऊंचे ढलानों पर, सभी इन नदियों के जल पर जीवित हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार इन नदियों के संरक्षण व संवर्धन के लिए समय रहते ठोस उपाय नहीं किए गए तो नदियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
यह तो सबको पता है कि पानी की समस्या साल भर रहती है। लेकिन गर्मी के मौसम में यह अधिक उभर कर सामने आती है। प्राकृतिक संसाधनों के भरपूर दोहन के भयंकर परिणाम हम इन दिनों देश के हर बड़े छोटे महानगरों में देख ही रहे हैं। अधिकांश महानगरों में पानी को लेकर आए दिन प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं। देश भर की नदियों का पानी पिछले कुछ सालों में इतना अधिक प्रदूषित हो गया है कि वह मनुष्य के लिए जहर जैसा बन
गया है। गंगा यमुना के प्रदूषित होते जल की बात को हमारी सरकार भी स्वीकार करती है। लेकिन यह भी सत्य है सरकारों के दृष्टिकोण के कारण विकसित हुई उपभोक्तावादी जीवन शैली ने जल का उपयोग व अधिकार भाव तो बढ़ाया है, लेकिन उसके लिए कत्र्तव्य निभाने की कोई जिम्मेदारी उन्हें महसूस नहीं होती। और यह जिम्मेदारी महसूस भी भला कैसे हो पाएगी क्योंकि उनकी आंखों का पानी ही मर गया है।
पानी को लेकर देश भर में बरसो- बरस कई विवाद चल रहे हैं, जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु में कृष्णा नदी को लेकर, भारत और बंगला देश में गंगाजल को लेकर तो भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के पानी को लेकर तथा पंजाब की रावी तथा चेनाब को लेकर भी पाकिस्तान को कई प्रकार समस्याएं हैं। आजादी के बाद सबसे पहले सिंधु नदी के पानी को लेकर विवाद आरंभ हुआ था। तथा नेपाल की नदी कोसी को लेकर बिहार में मचाया जाने वाली प्रयलंकारी तांडव हम सबको पता ही है। दरअसल सन् 2002 की बनी जलनीति में सरकार ने प्रकृति प्रदत्त पानी का मालिकाना हक कम्पनियों को दे दिया है- जो पानी के साझे हक को खत्म करके किसी एक व्यक्ति या कंपनी को मालिक बनाती है। यह नई जलनीति ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से और अधिक भयानक गुलामी के रास्ते खोलती है।
यहां इन सबकी चर्चा इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि इन सबसे पानी को लेकर होने वाली गंभीर समस्या का आभास होता है। प्रश्न यह उठता है कि जिसके बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती उस प्रश्न को हमारे देश को चलाने वाले, योजनाकार भला किस तरह अनदेखी करके चल सकते हैं। पानी को लेकर चिंतित कुछ संस्थाएं इस दिशा में लोगों को जागरुक करने की महती भूमिका निभा रही हैं पर भयानक रुप अख्तियार करती जा रही इस समस्या को लेकर हमारी सरकारें गंभीरता पूर्वक विचार क्यों नहीं करतीं। जिस देश में पीने का पानी भी यदि 21 दिन बाद मिलेगा उस देश के भविष्य की कल्पना सहज ही की जा सकती हैं। दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद जैसे बड़े औद्योगिक शहरों में कई बरसों से पीने का पानी खरीद कर ही पिया जा रहा है... इसके बाद भी हम अपने आप को अत्याधुनिक होने की बात बड़े गर्व से करते हैं। जिस देश की राजधानी में पीने के पानी के लिए त्राहि- त्राहि मची हो वहां हम ये कैसी आधुनिकता का डंका बजा रहे हैं।
सब बातों का एक ही सार है कि बिन पानी सब सून....
पानी हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व की चीज है। जिसकी यदि अभी से चिंता नहीं की गई तो जैसा कि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि अगला युद्ध पानी के लिए होगा, के लिए हम सबको तैयार रहना चाहिए। हम पानी के प्राकृतिक रुप को निर्बंध छोड़ देते है, जबकि इसके संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर योजना चलाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक घर के ऊपर जितना पानी गिरता है वह उस परिवार की वार्षिक जरूरत से पांच गुना तक अधिक होता है। छत के पानी को बटोर कर आसानी से साल भर के पेयजल की व्यवस्था हो सकती है।
हमारी सरकार को चाहिए कि वे अत्याधुनिक तकनीक के जरिए जल संग्रहण और उसके उचित उपयोग को अपने योजनाओं में उच्चतम प्राथमिकता दें।
- रत्ना वर्मा
यह भी जग जाहिर है कि उत्तराखंड की नदियां भारत की प्राणरेखा हैं, जो अनगिनत लोगों को जीवन देती हैं, लेकिन अब शायद हम ऐसा नहीं कह पाएंगे क्योंकि यहां की नदियां सूखने की कगार पर पहुंच गयी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगोत्री मार्ग पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के बाद उत्तरकाशी में गंगा कहीं-कहीं पर ही नजर आयेगी क्योंकि अधिकतर स्थानों पर गंगा विद्युत परियोजनाओं के कारण सुरंगों के अंदर से प्रवाहित होगी। मैं उन सुरंगों के किनारे से गुजरी हूं जिन्हें देखकर सोच रही थी कि ये मानव निर्मित सुरंगे जो प्रकृति से छेड़छेाड़ कर बनाई जा रहीं हैं, हमारा किस तरह भला कर पाएंगी। गंगा में अधिकांश भारतीयों की आस्था है और यह हमारी राष्ट्रीय नदी भी है, परंतु विकास के इस मॉडल से पहाड़ की नदीघाटी सभ्यता समाप्त हो जाएगी।
इसी तरह यमुना नदी पर भी कई बांध बनाने की योजना है इन बांधों के कारण यमुना के भी दर्शन लोगों को नहीं होंगे, क्योंकि यमुना की जलधारा भी इन बांधों के लिए बनने वाली सुरंगों में कैद हो जाएगी। उत्तराखंड के नगर चाहे नदी तट पर बसे हों, या पर्वतों के ऊंचे ढलानों पर, सभी इन नदियों के जल पर जीवित हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार इन नदियों के संरक्षण व संवर्धन के लिए समय रहते ठोस उपाय नहीं किए गए तो नदियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
यह तो सबको पता है कि पानी की समस्या साल भर रहती है। लेकिन गर्मी के मौसम में यह अधिक उभर कर सामने आती है। प्राकृतिक संसाधनों के भरपूर दोहन के भयंकर परिणाम हम इन दिनों देश के हर बड़े छोटे महानगरों में देख ही रहे हैं। अधिकांश महानगरों में पानी को लेकर आए दिन प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं। देश भर की नदियों का पानी पिछले कुछ सालों में इतना अधिक प्रदूषित हो गया है कि वह मनुष्य के लिए जहर जैसा बन
गया है। गंगा यमुना के प्रदूषित होते जल की बात को हमारी सरकार भी स्वीकार करती है। लेकिन यह भी सत्य है सरकारों के दृष्टिकोण के कारण विकसित हुई उपभोक्तावादी जीवन शैली ने जल का उपयोग व अधिकार भाव तो बढ़ाया है, लेकिन उसके लिए कत्र्तव्य निभाने की कोई जिम्मेदारी उन्हें महसूस नहीं होती। और यह जिम्मेदारी महसूस भी भला कैसे हो पाएगी क्योंकि उनकी आंखों का पानी ही मर गया है।
पानी को लेकर देश भर में बरसो- बरस कई विवाद चल रहे हैं, जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु में कृष्णा नदी को लेकर, भारत और बंगला देश में गंगाजल को लेकर तो भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के पानी को लेकर तथा पंजाब की रावी तथा चेनाब को लेकर भी पाकिस्तान को कई प्रकार समस्याएं हैं। आजादी के बाद सबसे पहले सिंधु नदी के पानी को लेकर विवाद आरंभ हुआ था। तथा नेपाल की नदी कोसी को लेकर बिहार में मचाया जाने वाली प्रयलंकारी तांडव हम सबको पता ही है। दरअसल सन् 2002 की बनी जलनीति में सरकार ने प्रकृति प्रदत्त पानी का मालिकाना हक कम्पनियों को दे दिया है- जो पानी के साझे हक को खत्म करके किसी एक व्यक्ति या कंपनी को मालिक बनाती है। यह नई जलनीति ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से और अधिक भयानक गुलामी के रास्ते खोलती है।
यहां इन सबकी चर्चा इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि इन सबसे पानी को लेकर होने वाली गंभीर समस्या का आभास होता है। प्रश्न यह उठता है कि जिसके बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती उस प्रश्न को हमारे देश को चलाने वाले, योजनाकार भला किस तरह अनदेखी करके चल सकते हैं। पानी को लेकर चिंतित कुछ संस्थाएं इस दिशा में लोगों को जागरुक करने की महती भूमिका निभा रही हैं पर भयानक रुप अख्तियार करती जा रही इस समस्या को लेकर हमारी सरकारें गंभीरता पूर्वक विचार क्यों नहीं करतीं। जिस देश में पीने का पानी भी यदि 21 दिन बाद मिलेगा उस देश के भविष्य की कल्पना सहज ही की जा सकती हैं। दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद जैसे बड़े औद्योगिक शहरों में कई बरसों से पीने का पानी खरीद कर ही पिया जा रहा है... इसके बाद भी हम अपने आप को अत्याधुनिक होने की बात बड़े गर्व से करते हैं। जिस देश की राजधानी में पीने के पानी के लिए त्राहि- त्राहि मची हो वहां हम ये कैसी आधुनिकता का डंका बजा रहे हैं।
सब बातों का एक ही सार है कि बिन पानी सब सून....
पानी हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व की चीज है। जिसकी यदि अभी से चिंता नहीं की गई तो जैसा कि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि अगला युद्ध पानी के लिए होगा, के लिए हम सबको तैयार रहना चाहिए। हम पानी के प्राकृतिक रुप को निर्बंध छोड़ देते है, जबकि इसके संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर योजना चलाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक घर के ऊपर जितना पानी गिरता है वह उस परिवार की वार्षिक जरूरत से पांच गुना तक अधिक होता है। छत के पानी को बटोर कर आसानी से साल भर के पेयजल की व्यवस्था हो सकती है।
हमारी सरकार को चाहिए कि वे अत्याधुनिक तकनीक के जरिए जल संग्रहण और उसके उचित उपयोग को अपने योजनाओं में उच्चतम प्राथमिकता दें।
- रत्ना वर्मा
2 comments:
Sampadakeeeey Manadal ko meri tammam shubhkamnayein jo ek star par racchit rachna aur in lekhakon se robaroo hone ka mauka diya
wishes
Devi Nangrani
... यह सच है कि पानी मनुष्य जीवन का महत्वपूर्ण पदार्थ है पानी के बिना जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है लेकिन क्या कहें कहीं पानी की अधिकता तो कहीं पानी की कमी समस्या बनी रहती है दोनो ही स्थिति मे जनजीवन प्रभावित होता है !!
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