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Mar 21, 2009

लोक- संगीत

कबीर को गाते हैं पाँच भाई
बेहद के मैदान में रहा कबीरा सोय
- रमेश शर्मा

आज के दौर में कबीर ही सबसे ज्यादा मौजूं लगते हैं। चारों तरफ धर्म और जातीयता का विषाद है, ऐसे ऊंच-नीच, भेदभाव के माहौल में कबीर के दोहे ही रास्ता बता सकते हैं।

लोक कलाकारों से समृद्ध छत्तीसगढ़ की पहचान देश-दुनिया में पंडवानी की मशहूर गायिका तीजन बाई के कारण तो है ही, भारती बंधुओं ने भी कबीर की रचनाओं को भजन में ढालकर एक अलग पहचान कायम कर ली है। भारती बंधु- अर्थात् पांच भाई, एक साथ एक स्वर में, एक मंच पर बैठकर जब कबीर को गाते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

सबसे बड़े भाई स्वामी जीसीडी भारती वैसे तो रायपुर नगर निगम में सरकारी नौकरी में हैं लेकिन दफ्तर के बाद उनका पूरा समय रियाज में ही बीतता है। उनका पूरा परिवार कबीरमय है।

कबीर ही क्यों? पूछने पर स्वामी भारती कहते हैं कि आज के दौर में कबीर ही सबसे ज्यादा मौजूं लगते हैं। चारों तरफ धर्म और जातीयता का विषाद है, ऐसे ऊंच-नीच, भेदभाव के माहौल में कबीर के दोहे ही रास्ता बता सकते हैं।

कबीर कहते हैं-

राम रहीमा एक है, नाम धराई दोई
आपस में दोऊ लरि-लरि मुए,
मरम न जाने कोई।

कबीर की सभी रचनाओं में समाज के लिए कोई न कोई शिक्षा जरूर है और आज सैकड़ों साल बाद भी कबीर का महत्व कम नहीं हुआ है इसीलिए हमने कबीर को अपने जीवन का अभीष्ट बना लिया है।

माता सत्यभामा और पिता स्वामी विद्याधर गैना भारती से सभी भारती बंधुओं को प्रेरणा मिली। दरअसल भारती बंधु परिवार में कई पीढिय़ों से भजन गायकी की परंपरा रही है जिसे सहेजने और संगठित करने की प्रेरणा स्वामी जीसीडी भारती ने ग्रहण की और आज वे प्राय: सभी बड़े आयोजनों में शिरकत करने लगे हैं। दिल्ली में त्रिवेणी कला सभागार हो या एनसीआईटी या एनआईटी का कार्यक्रम, भारती बंधु हमेशा बुलाए और सुने जाते हैं, भारती बंधु का अंदाजे-बयां भी गजब है। महफिल की शुरुआत में उनकी गिरीश पंकज द्वारा रचित यह लाइनें हिट रहती हैं-

गिरती है दीवार धीरे-धीरे,
जोर लगाओ यार धीरे-धीरे,
मिलने जुलने में कसर न छोडऩा,
हो जाएगा प्यार धीरे-धीरे।

वैसे कबीर को गाते हुए भारती बंधु इन पंक्तियों का जिक्र जरूर करते हैं-

हद छांडि़ बेहद गया रहा निरंतर होय
बेहद के मैदान में रहा कबीरा सोय।

तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने छत्तीसगढ़ के भारती बंधुओं को 16 जिलों में कबीर गायन के लिए अनुबंधित किया था। अब तक वे पूरे भारतवर्ष में साढ़े पांच हजार से भी अधिक कार्यक्रम दे चुके हैं और 25 हजार स्कूली तथा विश्वविद्यालयीन स्तर के विद्यार्थी उनको सुन चुके हैं।

भारती जी ने बताया कि वे छत्तीसगढ़ की कबीर गायन की इस परंपरा को संरक्षित रखने की दिशा में भी प्रयासरत हैं। अपने परिवार के बच्चों को वे प्रशिक्षण तो दे ही रहे साथ ही बाहर से भी कुछ बच्चे उनके पास सीखने आते हैं।

छत्तीसगढ़ के लिए यह गर्व की बात है कि अभी हाल ही में भारती बंधुओं ने आगरा के विश्वप्रसिद्ध ताज महोत्वसव से अपनी गायन प्रतिभा का लोहा मनवा कर प्रदेश का गौरव बढ़ाया है। भारती बंधु छत्तीसगढ़ की ओर से भाग लेने वाले पहले ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने ताज फेस्टिवल में शिरकत की है।


इनकी अद्भूत कबीर शैली से प्रसन्न होकर मशहूर आलोचन डा. नामवार सिंह भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। अशोक वाजपेयी ने तो यहां तक कहा था कि कबीर की मस्ती और फक्कड़पन के बिना सच्चा गायन संभव नहीं। सचमुच भारती बंधु को देखकर अलमस्त फकीर याद आ जाते हैं। तन पर सफेद कुरता और लुंगी, सिर पर हिमाचली टोपी सादगी के साथ जब स्वर लहरियां जुड़ती हैं तो महौल कबीरमय हो उठता है। वे जैसा गाते हैं वैसे ही रहते हैं। रायपुर में मरवाड़ी श्मशान घाट के ठीक सामने भारती बंधु का निवास है। जीसीडी भारती से छोटे विवेकानंद तबले पर संगत देते हैं। अनादि ईश्वर सहायक हैं। अरविंदानंद मंजीरा बजाते हैं और सत्यानंद ढोलक संभालते हैं। भारती बंधु रचना का चयन सधे हुए तरीके से करते हैं। स्वामी जीसीडी भारती मंच पर जब तान छेड़ते हैं-

कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर,
जो पर पीर न जानई, वो काफिर बेपीर।

तो श्रोता मगन हो जाते हैं। फिर धीरे-धीरे श्रोता कबीर में डूबते चले जाते हैं। भारती बंधुओं को अब तक कोई बड़ा पुरस्कार नहीं मिला है। वे कहते हैं-हमें बड़े-बड़े बुद्धिजीवी आशीर्वाद देते हैं और हजारों श्रोता कबीर को सुनकर परमानंद प्राप्त करते हैं, यही हमारा सबसे बड़ा पुरस्कार है। हम लोग जिंदगी भर कबीर को गाते रहेंगे। हम लोग रीमिक्स या पॉप नहीं गाना चाहते हैं। कबीर को गाना ही पुण्य कमाना है। भारती बंधुओं की शैली में कव्वाली का रस है। हारमोनियम, तबला ढोलक और वाद्ययंत्रों के साथ में वे रोज तीन घंटे रियाज करते हैं।

भारती बंधु गायन कला की जिस सूफीयाना परंपरा का प्रतिनिधित्व करते है वह इस अंचल की खास पहचान बन गई है। यह पहचान एक दिन में नहीं बनती है। इसके लिए घंटों रियाज करना पड़ता है। मिले सुर मेरा तुम्हारा की तर्ज पर पूरी माला गूंथनी पड़ती है।

भारती बंधु को मैंने पहली बार 2002 में आईआईटी, सभागार नई दिल्ली में सुना था। कबीर तो वैसी ही दिमागों में हलचल मचा देते हैं लेकिन सरस गायन के जरिए अंतर्मन को भी प्रभावित किया। संगीत की यह खासियत है कि देश, समाज, भाषा और अपरिचय की सारी दीवारें तोड़ कर श्रोता के दिलों में उतर जाता है।

भाषाओं का एक दायरा हो सकता है और रचनाएं किसी देश-काल खंड में कैद हो सकती हैं लेकिन संगीत की स्वरलहरियां मुक्त गगन को छूती हैं। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों और भजनों की व्यापक जनश्रुति परंपरा है जो अलिखित है तथा सदियों से एक कंठ से दूसरे कंठ में प्रवाहित हो रही है। भारती बंधु इस परंपरा को समृद्ध कर रहे हैं। कला राजाश्रयी होने पर ही फलती-फूलती है, ऐसा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में लोकरंग की छटाएं बिखेरने वाले कलाकारों को सतत संरक्षण के लिए सरकारी प्रोत्साहन और अनुसंधान के लिए भारत भवन (भोपाल) सरीखे अधिष्ठान की नितांत जरूरत है।

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