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Aug 15, 2008

अनकही

विचारों की नदी
डॉ.रत्ना वर्मा
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पत्रिकाएँ नियमित अंतराल के साथ हर बार एक नया अंक प्रस्तुत करती हुई प्रवाहमान रहती हैं अत: पत्रिकाओं को रचनात्मक विचारों की नदी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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उदंती.com का पहला अंक आपके हाथ में है। इसे देखते ही पत्र पत्रिकाओं से सरोकार रखने वाले बहुतों के मन में यह सवाल जरूर उभरेगा कि लो एक और पत्रिका आ गईऔर यह भीकि पता नहीं इसमें ऐसा क्या नया या अलग होगा जो विशेष या पठनीय होगाआपका सवाल उठाना वाजिब हैक्योंकि पिछले कुछ समय से राष्टï्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर पत्र- पत्रिकाओं की बाढ़ सी आ गई है। इनमें से अधिकांश पत्रिकाएँ या तो बीच में ही दम तोड़ देती हैं या फिर अनियमित हो जाती हैं। जो एकाध बच रह जाती हैं उन्हें भी जिंदा रहने के लिए बहुतेरे पापड़ बेलने पड़ते हैं। ऐसी उफनती बाढ़ में उदंती. com ले कर उतरना बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी नाव को बिना पतवार के नदी में उतार देना और कहना कि आगे बढ़ो।

दरअसल पत्रकारिता की दुनिया में 25 वर्ष से अधिक समय गुजार लेने के बाद मेरे सामने भी एक सवाल उठा कि जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर ऐसा क्या रचनात्मक किया जाय जो जिंदा रहने के लिए आवश्यक तो हो हीसाथ ही कुछ मन माफिक काम भी हो जाए। कई वर्षों से एक सपना मन के किसी कोने में दफन थाउसे पूरा करने की हिम्मत अब जाकर आ पाई है। यह हिम्मत दी है मेरे उन शुभचिंतकों ने जो मेरे इस सपने में भागीदार रहे हैं और यह कहते हुए बढ़ावा देते रहे हैं कि दृढ़ निश्चय और सच्ची लगन हो तो सफलता अवश्य मिलती है।

इन सबके बावजूद जैसे ही पत्रिका के प्रकाशित होने की खबर लोगों तक पहुँची एक प्रश्नवाचक चिन्ह चेहरों पर उभरता नजर आया। कुछ ने कहा कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आसान नहीं है पत्रिका का प्रकाशन और उसे जिंदा रख पानातो किसी ने कहा आपकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगीतो कुछ ने यह कहते हुए शुभकामनाएँ प्रेषित की कि ऐसे समय में जबकि रचनात्मकता के लिए स्पेस खत्म हो रहा है आप नया क्या करेंगीऔर यह भी कियह है तो जोखिम भरा काम लेकिन इमानदार प्रयास सभी काम सफल करता हैआदि आदि... थोड़ी सी निराशा और बहुत सारी आशाओं ने मेरे मन के उस सपनीले कोने में चुपके से आकर कहा कि सुनो सबकी पर करो अपने मन की। सो मैंने मन की सुनी और इस समर में बिना पतवार की नाव लेकर कूद पड़ीइस विश्वास के साथ कि व्यवसायिकता के इस दौर में अब भी कुछ ऐसे सच्चेशुभचिंतक हैंजिनकी बदौलत दुनिया में अच्छाई जीवित हैअत: इस नैया को आगे बढ़ाने के लिएपतवार थामे कई हाथ अवश्य आगे आएँगे।

पत्रिका के शीर्षक को लेकर भी कई सवाल दागे गएकि क्या यह वेब पत्रिका होगी या कि सामाजिक सांस्कृतिकपर्यटनपर्यावरण अथवा किसी विशेष मुद्दे पर केन्द्रित होगीकम शब्दों में कहूँ तो यह पत्रिका मानव और समाज को समझने की एक सीधी सच्ची कोशिश होगीजो आप सब की सहभागिता के बगैर संभव नहीं है।

रही बात पत्रिका के नाम कीतो उदंती एक नदी का नाम है, जो ओडिशा के उत्तर-पश्चिमी छोर से बहती हुई छत्तीसगढ़ में प्रवेश करती है और यहाँ आकर महानदी से मिल जाती है। इसी नदी के नाम पर बना है छत्तीसगढ़ का उदंती अभ्यारण्य, जो छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित है। यह अभ्यारण्य असंख्य छोटी-  छोटी पहाड़ियों और मानव निर्मित तालाब से घिरा हुआ है। लुप्त होते जंगली भैसों की शरणस्थली होने के साथ ही इस अभ्यारण्य में पक्षियों की 120 से भी अधिक प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं।।

मानव सभ्यता एवं संस्कृति का उद्गम और विकास नदियों के तट पर ही हुआ है साथ ही नदी सदैव प्रवाहमान एवं गतिमय रहती है। पत्र- पत्रिकाएँ भी नियमित अंतराल के साथ हर बार एक नया अंक प्रस्तुत करती हुई प्रवाहमान रहती हैं अत: पत्रिकाओं को रचनात्मक विचारों की नदी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन्हीं जीवनदायिनी नदियों से प्रेरणा लेकर हम भी अपनी सांस्कृतिक- सामाजिक परंपराओं को बचाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।

इसी प्रवाह के साथ इंटरनेट ने भी हमारे जीवन में गहरे तक प्रवेश कर लिया हैउसने पूरी दुनिया को एक छत के नीचे ला खड़ा किया हैऔर हम एक ग्लोबल परिवार बन गए हैं अब तो इंटरनेट में हिन्दी व अन्य भाषाओं में काम करना आसान होते जा रहा है। पढऩे- लिखने वालों के लिए उसने अनेक नए रास्ते खोल दिए हैं। इसलिए पत्र- पत्रिकाएँ प्रकाशित होने के साथ- साथ इंटरनेट पर भी तुरंत ही आ जाती हैं और उसका दायराअपने शहर, प्रदेश फिर देश से निकल कर पूरी दुनिया तक फैल जाता है। अतः यह तो निश्चित ही है कि यह पत्रिका इंटरनेट पर भी उपलब्ध रहेगी।

कुल जमा यह कि जीवन को समग्र रूप से समृद्ध बनाने में सहायकसमाज के विभिन्न आयामों से जुड़े रचनात्मक विचारों पर आधारित सुरूचिपूर्ण और पठनीय पत्रिका पाठकों तक पहुँचेऐसा ही एक छोटा सा प्रयास है उदंती.com। इस प्रयास के प्रारंभ में ही छत्तीसगढ़ और देश भर से रचनाकारों ने सहयोग दे कर मेरा उत्साहवर्धन किया हैयह मेरे लिए अनमोल हैमैं सबकी सदा आभारी रहूँगी।

यह प्रथम अंक इस विश्वास के साथ आप सबको समर्पित है कि आपका सहयोग सदैव मिलता रहेगा। आप सबकी प्रतिक्रिया एवं सुझाव का हमेशा स्वागत है। 

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