- प्रताप सिंह राठौर
कुछ चीजें कभी समझ में नहीं आती है। उन्हीं में से एक है हम भारतवासियों का सोने से प्रेम। इसी के कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। जबकि भारत में सोने का उत्पादन सदैव से ही नगण्य मात्रा में रहा है। इसके बावजूद भी आदिकाल से भारत विश्व में सबसे अधिक सोने का आयात करने के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी साधारण से साधारण भारतीय नर-नारी के जीवन में सोने के आभूषण, जीवन यापन की प्राथमिकताओं में सर्वोच्च स्थान रखते हैं। यह परंपरा आदिकाल से आज तक निरंतर चली आ रही है।
प्राचीन ग्रीक इतिहासकारों और चीनी यात्रियों ने अपने ग्रंथों में भारत में स्वर्ण के अकूत भंडार होने की चर्चा की है और भारत को सोने की चिड़िया नाम भी उन्हीं ने दे दिया था। इसी ख्याति से आकर्षित होकर विदेशियों ने सोना लूटने के लिए हमले किये। विदेशी लुटेरों की अंतिम कड़ी थे अंग्रेज जिन्होंने भारत को खूब कस कर लूटा।
इस सबके बावजूद भारतीयों का सोने से लगाव जरा भी कम नहीं हुआ। बीसवीं शताब्दी में सदियों से चली आ रही लूट खसोट के परिणामस्वरूप भारत विश्व के सबसे गरीब देशों में एक बन चुका था। इसके बाद भी भारत बीसवीं शताब्दी में भी विश्व में सबसे अधिक सोने को आयात करने वाला देश बना रहा।
अन्न-जल से भी अधिक प्रेम सोने से होना एक विचित्र स्थिति है जो किसी को भी भौंच का कर देगी। भारत में अपने शासन काल में अंग्रेज भी इस विसंगति से आश्चर्यचित थे।
भारत में प्राचीन काल से ही सोने को जमीन में गाड़कर रखने की प्रथा रही है। यह यथार्थ है कि भारतीय गांवों और नगरों में जमीन के नीचे विशाल मात्रा में सोना गड़ा हुआ है और इसमें से बड़ी मात्रा में ऐसा सोना है जिसे गाड़ने वाले अपने वारिसों को बिना बताये ही चल बसे हैं। शायद इसीलिए कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब देश में कहीं न कहीं गड़े हुए सोने के मिलने का समाचार न आता हो।
सोने को सुरक्षित रखने की प्रथा समाज के सभी वर्गों राजा से रंक तक प्रचलित थी। राजा- महराजा भी अपने खजाने को गुप्त ढंग से जमींदोज रखते थे। आपातकाल में जयपुर राजघराने के गुप्त खजाने का पता लगाने के लिए इंदिरा गांधी ने भी जयपुर के राजमहलों में विस्तृत खुदाई करवाई थी।
अंग्रेज भी भारतीयों के जमीन में खजाना गाड़कर रखने की इस प्रवृत्ति से परिचित थे और इनके बारे में काफी दिलचस्पी रखते थे। ऐसे में एक अंग्रेज अधिकारी की मुलाकात लाहौर में लाला मथुरा प्रसाद से हुई। लालाजी ने बताया कि भारतीयों की सोने के लिए अनबुझ प्यास का मुख्य कारण है कि बड़ी संख्या में लोग सोने को गुप्त रूप से जमीन में गाड़ने के बाद इस राज को दिल में छिपाये ही मर जाते हैं। इस सिलसिले में लाला मथुरा प्रसाद ने अंग्रेज अधिकारी को ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का एक किस्सा सुनाया- 1857 से कुछ वर्ष पहले सिंधिया की गद्दी डांवाडोल हो गई थी। लेकिन 1857 की जनक्रांति में सिंधिया ने अंग्रेजों का साथ दिया तो अंग्रेजों ने इनाम में सिंधिया को ग्वालियर की राजगद्दी तो दे दी परंतु ग्वालियर के किले पर अपना आधिपत्य बनाये रखा और ग्वालियर के किले को अंग्रेजों ने अपनी फौजी छावनी बना दी। यह स्थिति करीब 30 वर्षों तक बनी रही।
इन तीस वर्षों में ग्वालियर किले पर अंग्रेजों के कब्जे ने महाराजा सिंधिया की नींद हराम कर दी थी। लालाजी के अनुसार सिंधिया महाराज की बेचैनी का कारण था ग्वालियर किले में गुप्त तहखाने में रखा 60 करोड का खजाना, जिसके रास्ते का पता जानने वाले लोगों में से एक को छोंड कर बाकी सभी की मृत्यु हो चुकी थी। वह एकमात्र व्यक्ति भी काफी वृद्ध था और उसकी सांसे कभी भी रूक सकती थी। सिंधिया महाराजा को स्वयं भी इस गुप्त खजाने के रास्ते का पता नहीं था। योंकि इस खजाने को सिंधिया महाराजा के पूर्वजों ने छिपाया था।
सिंधिया महाराजा तीस वर्षों तक अंग्रेजों से किले को छोडने की याचना करते रहे। अंतत: अंग्रेज वाइस राय ने सिंधिया की प्रार्थना स्वीकार कर ली और किले से अंग्रेज फौज हटा ली। बस फिर या था आनन-फानन में सिंधिया महाराजा ने बनारस से राज मजदूर बुलवाये। इन कारीगरों को ग्वालियर स्टेशन से आंखों पर पट्टी बांध कर और अपने काम के बारे में ओंठ सिले रखने की कसम दिला कर बंद गाड़ियों में बैठाकर ग्वालियर किले में ले जाया गया। खजाने के तहखाने का स्थान जानने वाले वृद्ध के इशारे पर इन कारीगरों ने छेनी हथौडे से उस तहखाने का रास्ता खोला। इसके बाद इन कागीगरों को फिर से आंखों पर पट्टी बांधकर बंद गाड़ी में ग्वालियर स्टेशन पर लाया गया और इनाम देकर, बनारस के लिए ट्रेन में बैठा दिया गया। सिंधिया महाराज रातों रात अकूत धन के स्वामी बन गए।
लाला मथुरा प्रसाद ने बताया कि उनके पुरखे कई पीढ़ियों तक सिंधिया राजघराने के कोषाध्यक्ष रहे थे। लाला ने यह भी बताया कि उनके एक पुरखे बहुत बड़ी संपदा के साथ सिंधिया राजघराने की सेवा से निवृत्त हुए थे और उसमें से 15 करोड रूपए की कीमत का सोना वृंदावन के एक मंदिर के नीचे गुप्त तहखाने में दबा हुआ है।
इस कहानी में कितना सच है यह तो आज कहना मुश्किल है। परंतु यह सबको पता है कि भारतीयों का सोने से अटूट प्रेम आज भी बरकरार है और पिछले कुछ वर्षों में जिस एक चीज के दाम भारत में सबसे ज्यादा बढ़े हैं वह सोना ही है। भारतीयों के इस सोना प्रेम को देखकर हिन्दी फिल्म के इस महशहूर गीत ओ मेरे सोना रे, सोना रे, सोना, दे दूंगी जान जुदा मत होना...... को सुन कर यही लगता है कि यह तो भारत की आत्मा की आवाज है।
कुछ चीजें कभी समझ में नहीं आती है। उन्हीं में से एक है हम भारतवासियों का सोने से प्रेम। इसी के कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। जबकि भारत में सोने का उत्पादन सदैव से ही नगण्य मात्रा में रहा है। इसके बावजूद भी आदिकाल से भारत विश्व में सबसे अधिक सोने का आयात करने के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी साधारण से साधारण भारतीय नर-नारी के जीवन में सोने के आभूषण, जीवन यापन की प्राथमिकताओं में सर्वोच्च स्थान रखते हैं। यह परंपरा आदिकाल से आज तक निरंतर चली आ रही है।
प्राचीन ग्रीक इतिहासकारों और चीनी यात्रियों ने अपने ग्रंथों में भारत में स्वर्ण के अकूत भंडार होने की चर्चा की है और भारत को सोने की चिड़िया नाम भी उन्हीं ने दे दिया था। इसी ख्याति से आकर्षित होकर विदेशियों ने सोना लूटने के लिए हमले किये। विदेशी लुटेरों की अंतिम कड़ी थे अंग्रेज जिन्होंने भारत को खूब कस कर लूटा।
इस सबके बावजूद भारतीयों का सोने से लगाव जरा भी कम नहीं हुआ। बीसवीं शताब्दी में सदियों से चली आ रही लूट खसोट के परिणामस्वरूप भारत विश्व के सबसे गरीब देशों में एक बन चुका था। इसके बाद भी भारत बीसवीं शताब्दी में भी विश्व में सबसे अधिक सोने को आयात करने वाला देश बना रहा।
अन्न-जल से भी अधिक प्रेम सोने से होना एक विचित्र स्थिति है जो किसी को भी भौंच का कर देगी। भारत में अपने शासन काल में अंग्रेज भी इस विसंगति से आश्चर्यचित थे।
भारत में प्राचीन काल से ही सोने को जमीन में गाड़कर रखने की प्रथा रही है। यह यथार्थ है कि भारतीय गांवों और नगरों में जमीन के नीचे विशाल मात्रा में सोना गड़ा हुआ है और इसमें से बड़ी मात्रा में ऐसा सोना है जिसे गाड़ने वाले अपने वारिसों को बिना बताये ही चल बसे हैं। शायद इसीलिए कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब देश में कहीं न कहीं गड़े हुए सोने के मिलने का समाचार न आता हो।
सोने को सुरक्षित रखने की प्रथा समाज के सभी वर्गों राजा से रंक तक प्रचलित थी। राजा- महराजा भी अपने खजाने को गुप्त ढंग से जमींदोज रखते थे। आपातकाल में जयपुर राजघराने के गुप्त खजाने का पता लगाने के लिए इंदिरा गांधी ने भी जयपुर के राजमहलों में विस्तृत खुदाई करवाई थी।
अंग्रेज भी भारतीयों के जमीन में खजाना गाड़कर रखने की इस प्रवृत्ति से परिचित थे और इनके बारे में काफी दिलचस्पी रखते थे। ऐसे में एक अंग्रेज अधिकारी की मुलाकात लाहौर में लाला मथुरा प्रसाद से हुई। लालाजी ने बताया कि भारतीयों की सोने के लिए अनबुझ प्यास का मुख्य कारण है कि बड़ी संख्या में लोग सोने को गुप्त रूप से जमीन में गाड़ने के बाद इस राज को दिल में छिपाये ही मर जाते हैं। इस सिलसिले में लाला मथुरा प्रसाद ने अंग्रेज अधिकारी को ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का एक किस्सा सुनाया- 1857 से कुछ वर्ष पहले सिंधिया की गद्दी डांवाडोल हो गई थी। लेकिन 1857 की जनक्रांति में सिंधिया ने अंग्रेजों का साथ दिया तो अंग्रेजों ने इनाम में सिंधिया को ग्वालियर की राजगद्दी तो दे दी परंतु ग्वालियर के किले पर अपना आधिपत्य बनाये रखा और ग्वालियर के किले को अंग्रेजों ने अपनी फौजी छावनी बना दी। यह स्थिति करीब 30 वर्षों तक बनी रही।
इन तीस वर्षों में ग्वालियर किले पर अंग्रेजों के कब्जे ने महाराजा सिंधिया की नींद हराम कर दी थी। लालाजी के अनुसार सिंधिया महाराज की बेचैनी का कारण था ग्वालियर किले में गुप्त तहखाने में रखा 60 करोड का खजाना, जिसके रास्ते का पता जानने वाले लोगों में से एक को छोंड कर बाकी सभी की मृत्यु हो चुकी थी। वह एकमात्र व्यक्ति भी काफी वृद्ध था और उसकी सांसे कभी भी रूक सकती थी। सिंधिया महाराजा को स्वयं भी इस गुप्त खजाने के रास्ते का पता नहीं था। योंकि इस खजाने को सिंधिया महाराजा के पूर्वजों ने छिपाया था।
सिंधिया महाराजा तीस वर्षों तक अंग्रेजों से किले को छोडने की याचना करते रहे। अंतत: अंग्रेज वाइस राय ने सिंधिया की प्रार्थना स्वीकार कर ली और किले से अंग्रेज फौज हटा ली। बस फिर या था आनन-फानन में सिंधिया महाराजा ने बनारस से राज मजदूर बुलवाये। इन कारीगरों को ग्वालियर स्टेशन से आंखों पर पट्टी बांध कर और अपने काम के बारे में ओंठ सिले रखने की कसम दिला कर बंद गाड़ियों में बैठाकर ग्वालियर किले में ले जाया गया। खजाने के तहखाने का स्थान जानने वाले वृद्ध के इशारे पर इन कारीगरों ने छेनी हथौडे से उस तहखाने का रास्ता खोला। इसके बाद इन कागीगरों को फिर से आंखों पर पट्टी बांधकर बंद गाड़ी में ग्वालियर स्टेशन पर लाया गया और इनाम देकर, बनारस के लिए ट्रेन में बैठा दिया गया। सिंधिया महाराज रातों रात अकूत धन के स्वामी बन गए।
लाला मथुरा प्रसाद ने बताया कि उनके पुरखे कई पीढ़ियों तक सिंधिया राजघराने के कोषाध्यक्ष रहे थे। लाला ने यह भी बताया कि उनके एक पुरखे बहुत बड़ी संपदा के साथ सिंधिया राजघराने की सेवा से निवृत्त हुए थे और उसमें से 15 करोड रूपए की कीमत का सोना वृंदावन के एक मंदिर के नीचे गुप्त तहखाने में दबा हुआ है।
इस कहानी में कितना सच है यह तो आज कहना मुश्किल है। परंतु यह सबको पता है कि भारतीयों का सोने से अटूट प्रेम आज भी बरकरार है और पिछले कुछ वर्षों में जिस एक चीज के दाम भारत में सबसे ज्यादा बढ़े हैं वह सोना ही है। भारतीयों के इस सोना प्रेम को देखकर हिन्दी फिल्म के इस महशहूर गीत ओ मेरे सोना रे, सोना रे, सोना, दे दूंगी जान जुदा मत होना...... को सुन कर यही लगता है कि यह तो भारत की आत्मा की आवाज है।
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