सावधान! मैं आत्मकथा लिख रहा हूँ
- रामेश्वर वैष्णव
तुम लोगों ने हकीकत को लिखा, मेरी कमजोरियों पर प्रकाश डाला तथा मेरी घोषित नीचता का संक्षेप में वर्णन किया, मैं तो कल्पनाशील व्यक्ति हूं मैं तुम्हारे चरित्र में ऐसी ऐसी कमजोरियां ढूंढ निकालूंगा जिसका तुम्हें भी पता नहीं है। मेरे पास शब्द भंडार है वो किस दिन काम आयेगा तुम्हारी मामूली चूक को भी नीचता सिद्ध करने में मेरा जवाब नहीं होगा। मैं तुम्हारी स्वाभाविक नीचता को इतने विस्तार से शब्दबद्ध करूंगा कि तुम्हारे खार खाये हुए पड़ोसी तुमसे करबद्ध प्रार्थना करेंगे कि बिना उनके सहयोग के तुम स्वेच्छा से स्वर्गीय हो जाओ।
दरअसल मैंने अपनी लेखनी का आज तक दुरुपयोग नहीं किया हालांकि तुम लोग इस बात को कभी नहीं मानोगे, क्योंकि मेरी उदारकुटिलता से परिचित हो। अब सोचता हूं थोड़ा-मोड़ा दुरुपयोग कर ही डालूं आज तक सदुपयोग करके तुम्हारा क्या उत्खनन कर लिया सो, आत्मकथा लिखना मेरी मजबूरी है। तुम्हारी दुष्टता का सविस्तार वर्णन मुझे आटोमेटिकली सज्जन पुरुष सिद्ध कर देगा, थोड़ा बहुत तो मैं वैसे भी हूं, मगर तुम्हारी तरह उसे मैग्नीफाइ करने की कला मुझमें नहीं है। तुम तो अपने भीतर हजारों गुण ढूंढ निकालते हो अपनी सज्जनता का इतनी निर्दयता से बखान करते हो कि लोग तुम्हें सज्जन स्वीकारने के लिए विवश हो जाते हैं। दरअसल तुम्हारी सारी उपलब्धियां लोगों को विवश करके ही हासिल हुई हैं। मैं तुम्हारी हकीकत इतनी सज्जनतापूर्वक सामने लाऊंगा कि लोग तुम्हें दुर्जन मानने के लिए सहर्ष विवश हो जायेंगे।
तुम कम्बख्तों ने अपने खड़तूस छाप कार्यक्रमों में मेरी भरपूर उपेक्षा की है, मैं ऐसा नहीं करुंगा, तुम लोगों को भव्यतम कार्यक्रम में सादर आमंत्रित करूंगा, सम्मानित करवाऊंगा और मेरे सम्मान में कुछ बोलने के लिए विवश करुंगा, लेकिन जब तुम बोलोगे तो लोग जान जायेंगे कि तुम अव्वल दर्जे के बेवकूफ हो। तुम अपनी ही हंसी उड़वाने केलिए मेरे द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में स्वतंत्र होगे। इस स्वतंत्रता का तुम जितना उपयोग करोगे उतना ही ज्यादा स्वयं को मेरा गुलाम घोषित करोगे। यह सारा आयटम मेरी आत्मकथा का विषय रहेगा। मेरे लाखों पाठक यही समझेंगे कि मैंने तुम्हें भरपूर सम्मान दिया मगर तुम लोग अपनी कुटिलता के कारण सरेआम वस्त्रविहीन हो जाओगो। मेरी आत्मकथा इतनी रोचक होगी कि लोग पढऩे के लिए मजबूर हो जाएंगे। पूरी पढऩे के बाद मेरी ऊटपटांग मान्यताओं को स्वीकारने लगेंगे और आखिर में तुम तमाम लोग मेरी उपेक्षा को अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल मानने लग जाओगे। यही तो मेरे लेखन की विशेषता है। एक बार जो मजबूर हुआ वो हमेशा मजबूर होने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। समीक्षक लिखेंगे कि मेरा लेखन समग्र तौर पर मुक्ति के लिए है, जबकि ऐसा लिखने के लिए वे स्वयं मजबूर होंगे। मैं अपने जीवन के रहस्यों को इतनी सफाई से खोलूंगा कि मेरे बारे में लोग निश्चित तौर पर कोई धारणा बना ही नहीं पायेंगे, तुम लोगों को हमेशा यह अफसोस रहेगा कि मुझे समझने में तुमने बड़ी गलती की, अरे मैं खुद को नहीं समझ पाया हूं तो तुम क्या खाक समझोगे।
मेरी आत्मकथा तुम लोगों के लिए तो खतरनाक होगी ही, उन लोगों के लिए भी खतरनाक होगी जिनसे मेरे संबंध मधुर रहे। महिलाएं कृपया गौर से पढें। मैं जानता हूं अपनी खूबसूरती के बल पर उन्होंने मुझे बौद्धिक नहीं रहने दिया, मुझसे लाभ उठाने के चक्कर में उन्होंने मुझे अक्सर घनचक्कर बनाए रखा। उन सभी बातों का खुलासा करने के लिए ही तो मैं आत्मकथा लिख रहा हूं। साहित्य के क्षेत्र में लोगों ने वाह-वाह कर बुद्धू बनाया, नौकरी में हांव-हांव कर बुद्धू बनाया और पारिवारिक जीवन में हवा- हवा कर बुद्धू बनाया अब मेरी बारी है, मैं आत्मकथा लिख कर यही काम करुंगा।
मेरे घोषित किस्म के दुश्मनों और अघोषित टाइप के दोस्तों ने मुझे हानि पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, अब वे स्वयं बाकी नहीं रह पायेंगे। लेखनी के दुरुपयोग का श्रेष्ठ उदाहरण होगी मेरी आत्मकथा। हालाकि जितने लोगों ने आत्मकथाएं लिखी हैं उनके बारे में भी ऐसा ही कुछ कहा जाता है। दरअसल आत्मकथा लेखन अपने खिलाफ फैलाए गए अफवाहों एवं साजिशों का बौद्धिक स्पष्टीकरण होता है।
संपर्क - 62/699 प्रोफेसर कॉलोनी, सेक्टर-1, सड़क-3, रायपुर- 492001 (छत्तीसगढ़) मोबाइल नं. 98274 79678
व्यंग्यकार के बारे में ...
रामेश्वर वैष्णव छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनों में लिखते हैं। वे गीत, गजल और व्यंग्य लिखते हैं। इन विधाओं पर उनके दस संग्रह छप चुके हैं। वे छत्तीसगढ़ी फिल्मों के गीतकार हैं और लगभग दस फिल्मों के लिए उन्होंने गीत लिखे हंै। वे लोकमंचों के लिए भी गीत लिखते हैं। उन्हें कुल जमा दस सम्मान मिल चुके हैं। साहित्य और लोकमंच की उनकी दीर्घ साधना को देखते हुए विगत दिनों दुर्ग में प्रतिष्ठित 'समाजरत्न' पतिराम साव सम्मान से अलंकृत किया गया। वे डाक तार विभाग के सेवानिवृत सहायक प्रबंधक हैं। दरअसल रामेश्वर वैष्णव मंचों के प्रसिद्ध हास्य कवि हैं जिसका प्रभाव उनकी व्यंग्य रचनाओं पर भी देखने को मिलता है। उनमें व्यंग्य के निर्वहन के लिए हास्य का आग्रह प्रबल है। वे अपनी रचनाओं में हास्य-विनोद के घोर पक्षधर जान पड़ते हैं। वे व्यवस्था की हास्यास्पद स्थितियों पर हास-परिहास करते हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी ही एक रचना 'सावधान! मैं आत्मकथा लिख रहा हूं।' इसके माध्यम से उन्होंने आत्म मुग्धता से भरे ऐसे अहमन्य व्यक्तित्वों का उपहास किया है जो दूसरों पर आरोप और आक्षेप लगाने की नीयत से अपनी आत्मकथाएं लिखते हैं।
- रामेश्वर वैष्णव
इसमें मैं अपने बारे में कम और तुम्हारे बारे में ज्यादा लिखूंगा क्योंकि यह मेरी आत्मकथा है। इतना ज्यादा लिखूंगा कि तुम्हारे शरीर पर वस्त्र, चरित्र में उज्वलता और व्यवहार में कुटिलता जरा भी नहीं बच पायेगी। तुम लोगों ने मुझे वस्त्रहीन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरे निष्कपट व्यवहार में हजारों छल छिद्र निकाले तथा मेरी तमाम सदाशयता को दुष्टता का पर्याय बताया, अब मेरी बारी है।
मेरे अशुभचिंतकों, छद्म दोस्तों एवं अन्य प्रकार के दुश्मनों। सावधान हो जाओ मैं आत्मकथा लिख रहा हूं इसमें मैं अपने बारे में कम और तुम्हारे बारे में ज्यादा लिखूंगा क्योंकि यह मेरी आत्मकथा है। इतना ज्यादा लिखूंगा कि तुम्हारे शरीर पर वस्त्र, चरित्र में उज्वलता और व्यवहार में कुटिलता जरा भी नहीं बच पायेगी। तुम लोगों ने मुझे वस्त्रहीन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरे निष्कपट व्यवहार में हजारों छल छिद्र निकाले तथा मेरी तमाम सदाशयता को दुष्टता का पर्याय बताया, अब मेरी बारी है।तुम लोगों ने हकीकत को लिखा, मेरी कमजोरियों पर प्रकाश डाला तथा मेरी घोषित नीचता का संक्षेप में वर्णन किया, मैं तो कल्पनाशील व्यक्ति हूं मैं तुम्हारे चरित्र में ऐसी ऐसी कमजोरियां ढूंढ निकालूंगा जिसका तुम्हें भी पता नहीं है। मेरे पास शब्द भंडार है वो किस दिन काम आयेगा तुम्हारी मामूली चूक को भी नीचता सिद्ध करने में मेरा जवाब नहीं होगा। मैं तुम्हारी स्वाभाविक नीचता को इतने विस्तार से शब्दबद्ध करूंगा कि तुम्हारे खार खाये हुए पड़ोसी तुमसे करबद्ध प्रार्थना करेंगे कि बिना उनके सहयोग के तुम स्वेच्छा से स्वर्गीय हो जाओ।
दरअसल मैंने अपनी लेखनी का आज तक दुरुपयोग नहीं किया हालांकि तुम लोग इस बात को कभी नहीं मानोगे, क्योंकि मेरी उदारकुटिलता से परिचित हो। अब सोचता हूं थोड़ा-मोड़ा दुरुपयोग कर ही डालूं आज तक सदुपयोग करके तुम्हारा क्या उत्खनन कर लिया सो, आत्मकथा लिखना मेरी मजबूरी है। तुम्हारी दुष्टता का सविस्तार वर्णन मुझे आटोमेटिकली सज्जन पुरुष सिद्ध कर देगा, थोड़ा बहुत तो मैं वैसे भी हूं, मगर तुम्हारी तरह उसे मैग्नीफाइ करने की कला मुझमें नहीं है। तुम तो अपने भीतर हजारों गुण ढूंढ निकालते हो अपनी सज्जनता का इतनी निर्दयता से बखान करते हो कि लोग तुम्हें सज्जन स्वीकारने के लिए विवश हो जाते हैं। दरअसल तुम्हारी सारी उपलब्धियां लोगों को विवश करके ही हासिल हुई हैं। मैं तुम्हारी हकीकत इतनी सज्जनतापूर्वक सामने लाऊंगा कि लोग तुम्हें दुर्जन मानने के लिए सहर्ष विवश हो जायेंगे।
तुम कम्बख्तों ने अपने खड़तूस छाप कार्यक्रमों में मेरी भरपूर उपेक्षा की है, मैं ऐसा नहीं करुंगा, तुम लोगों को भव्यतम कार्यक्रम में सादर आमंत्रित करूंगा, सम्मानित करवाऊंगा और मेरे सम्मान में कुछ बोलने के लिए विवश करुंगा, लेकिन जब तुम बोलोगे तो लोग जान जायेंगे कि तुम अव्वल दर्जे के बेवकूफ हो। तुम अपनी ही हंसी उड़वाने केलिए मेरे द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में स्वतंत्र होगे। इस स्वतंत्रता का तुम जितना उपयोग करोगे उतना ही ज्यादा स्वयं को मेरा गुलाम घोषित करोगे। यह सारा आयटम मेरी आत्मकथा का विषय रहेगा। मेरे लाखों पाठक यही समझेंगे कि मैंने तुम्हें भरपूर सम्मान दिया मगर तुम लोग अपनी कुटिलता के कारण सरेआम वस्त्रविहीन हो जाओगो। मेरी आत्मकथा इतनी रोचक होगी कि लोग पढऩे के लिए मजबूर हो जाएंगे। पूरी पढऩे के बाद मेरी ऊटपटांग मान्यताओं को स्वीकारने लगेंगे और आखिर में तुम तमाम लोग मेरी उपेक्षा को अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल मानने लग जाओगे। यही तो मेरे लेखन की विशेषता है। एक बार जो मजबूर हुआ वो हमेशा मजबूर होने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। समीक्षक लिखेंगे कि मेरा लेखन समग्र तौर पर मुक्ति के लिए है, जबकि ऐसा लिखने के लिए वे स्वयं मजबूर होंगे। मैं अपने जीवन के रहस्यों को इतनी सफाई से खोलूंगा कि मेरे बारे में लोग निश्चित तौर पर कोई धारणा बना ही नहीं पायेंगे, तुम लोगों को हमेशा यह अफसोस रहेगा कि मुझे समझने में तुमने बड़ी गलती की, अरे मैं खुद को नहीं समझ पाया हूं तो तुम क्या खाक समझोगे।
मेरी आत्मकथा तुम लोगों के लिए तो खतरनाक होगी ही, उन लोगों के लिए भी खतरनाक होगी जिनसे मेरे संबंध मधुर रहे। महिलाएं कृपया गौर से पढें। मैं जानता हूं अपनी खूबसूरती के बल पर उन्होंने मुझे बौद्धिक नहीं रहने दिया, मुझसे लाभ उठाने के चक्कर में उन्होंने मुझे अक्सर घनचक्कर बनाए रखा। उन सभी बातों का खुलासा करने के लिए ही तो मैं आत्मकथा लिख रहा हूं। साहित्य के क्षेत्र में लोगों ने वाह-वाह कर बुद्धू बनाया, नौकरी में हांव-हांव कर बुद्धू बनाया और पारिवारिक जीवन में हवा- हवा कर बुद्धू बनाया अब मेरी बारी है, मैं आत्मकथा लिख कर यही काम करुंगा।
मेरे घोषित किस्म के दुश्मनों और अघोषित टाइप के दोस्तों ने मुझे हानि पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, अब वे स्वयं बाकी नहीं रह पायेंगे। लेखनी के दुरुपयोग का श्रेष्ठ उदाहरण होगी मेरी आत्मकथा। हालाकि जितने लोगों ने आत्मकथाएं लिखी हैं उनके बारे में भी ऐसा ही कुछ कहा जाता है। दरअसल आत्मकथा लेखन अपने खिलाफ फैलाए गए अफवाहों एवं साजिशों का बौद्धिक स्पष्टीकरण होता है।
संपर्क - 62/699 प्रोफेसर कॉलोनी, सेक्टर-1, सड़क-3, रायपुर- 492001 (छत्तीसगढ़) मोबाइल नं. 98274 79678
व्यंग्यकार के बारे में ...
रामेश्वर वैष्णव छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनों में लिखते हैं। वे गीत, गजल और व्यंग्य लिखते हैं। इन विधाओं पर उनके दस संग्रह छप चुके हैं। वे छत्तीसगढ़ी फिल्मों के गीतकार हैं और लगभग दस फिल्मों के लिए उन्होंने गीत लिखे हंै। वे लोकमंचों के लिए भी गीत लिखते हैं। उन्हें कुल जमा दस सम्मान मिल चुके हैं। साहित्य और लोकमंच की उनकी दीर्घ साधना को देखते हुए विगत दिनों दुर्ग में प्रतिष्ठित 'समाजरत्न' पतिराम साव सम्मान से अलंकृत किया गया। वे डाक तार विभाग के सेवानिवृत सहायक प्रबंधक हैं। दरअसल रामेश्वर वैष्णव मंचों के प्रसिद्ध हास्य कवि हैं जिसका प्रभाव उनकी व्यंग्य रचनाओं पर भी देखने को मिलता है। उनमें व्यंग्य के निर्वहन के लिए हास्य का आग्रह प्रबल है। वे अपनी रचनाओं में हास्य-विनोद के घोर पक्षधर जान पड़ते हैं। वे व्यवस्था की हास्यास्पद स्थितियों पर हास-परिहास करते हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी ही एक रचना 'सावधान! मैं आत्मकथा लिख रहा हूं।' इसके माध्यम से उन्होंने आत्म मुग्धता से भरे ऐसे अहमन्य व्यक्तित्वों का उपहास किया है जो दूसरों पर आरोप और आक्षेप लगाने की नीयत से अपनी आत्मकथाएं लिखते हैं।
- विनोद साव
2 comments:
mai vaishanav ji ke lekhan me padya, chhattisgarhi me aur gadya ka hindi me likhe ka adhik ras le pata hu, yah meri seema hai, unaki nahi, is rachna ke liye bhi lagoo hai.
तनाव भरी जिंदगी मे हंसी के दो पल कितना सकून दे जाते हैं ..रामेश्वर जी के इस गुदगुदाने वाले व्यंग्य के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.
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