कुदरती एयरकंडीशनर
- विकास तिवारी
म्युनिख में फ्राउएनहोफर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक हाईटेक बिल्डिंग मटैरियल तैयार किया है। ये असल में मोम की नन्हीं गिट्टियां हैं जो दीवारों में पैबस्त कर दी जाएं तो बन जाता है इको फ्रेंडली एयरकंडीशनर। इमारतों और मकानों के निर्माण में जो बात अब ध्यान दी जाने लगी है कि गर्मियों के मौसम में अंदर का तापमान कैसे ख़ुशनुमा रखा जाए। ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंताओं के बीच गर्मियों में मौसम में ऊंचे तापमान रिकॉर्ड किए जा रहे हैं और एसी की खपत बढ़ गई है लेकिन इस वजह से खतरा भी बढ़ गया है, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का।
पर्यावरण से जुड़ी इसी चिंता को दूर करने की दिशा में फ्राउएनहो$फर इन्स्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्ट्मस आईएसई में कार्यरत प्रोफेसर फोल्कर विटवर के दिमाग में यह विचार आया, जिनका मानना है कि कुदरत की शक्ति में ही बेहतर एयरकंडिशनिंग का विचार निहित है। खासकर सूरज की तपिश में। उन्हें दस साल से ज़्यादा समय के बाद इस सवाल का एक जवाब मिल ही गया कि आखिर रात के प्राकृतिक समय की ठंड को कैसे कैद किया जाए और बाद में इसका इस्तेमाल इमारत को गर्म रखने के लिए किया जाए।
अपने सहयोगी पीटर शौशिग के साथ प्रोफेसर विटवर ने लेटेंट हीट सेवर्स पर काम शुरू किया। इनका इस्तेमाल मोम, खासकर पैरेफिन के साथ किया जाता है। कमरे की असहनीय गर्मी को काबू में करने के लिए ये पदार्थ दीवारों में गर्मी को कैद कर लेते हैं और उसे इधर-उधर फैलने से रोकते हैं।
असल में ये काम भौतिकी के उस नियम के तहत होता है जैसा एक ग्लास में बर्र्फ के एक टुकड़े के पिघलते समय देखा जाता है। आइस क्यूब को जब गर्म किया जाता है तो वह पिघलने लगती है। लेकिन उसके आसपास का पानी तभी गर्म होता है जब बर्फ का आखिरी कण पिघल जाता है।
वैक्स के इन कैपश्यूलों को रात में ठंडा और सख्त होना होता है ताकि अगले दिन वे फिर से काम कर सकें। इसका मतलब ये हुआ कि ट्रॉपिकल इलाकों में ये बहुत कारगर नहीं हैं, जहां तापमान बहुत स्थिर रहता है। लेकिन वैज्ञानिक एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे हैं जहां कैपश्यूलों को दीवार पर पानी के छिड़काव से ठंडा रखा जा सकता है।
विटवर के अनुसार कैपश्यूलों का इस्तेमाल कूलिंग के दूसरे उद्देश्यों के लिए किया जाता है। उनका कहना है कि कई चादरों और डाइविंग पोशाकों में इसका इस्तेमाल होता है। आने वाले समय में इलेक्ट्रिक कारों में भी कूलिंग बैटरियों में इन कैपश्यूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है। मौसम के बढ़ते तापमान को देखते हुए यही उम्मीद की जानी चाहिए कि यह इको फ्रेंडली एयरकंडीशनर शीघ्र ही बाजार में आए ताकि गर्मी और प्रदूषण दोनों से हमें राहत मिले।
कुदरत की शक्ति में ही बेहतर एयरकंडिशनिंग का विचार निहित है। खासकर सूरज की तपिश में। उन्हें दस साल से ज़्यादा समय के बाद इस सवाल का एक जवाब मिल ही गया कि आखिर रात के प्राकृतिक समय की ठंड को कैसे कैद किया जाए और बाद में इसका इस्तेमाल इमारत को गर्म रखने के लिए किया जाए।
ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते दिन-ब-दिन बढ़ रही गर्मी के कारण आज पूरी दुनिया में एयरकंडीशनर की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। परंतु वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले एयरकंडीशनर भी प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले ही होते हैं। लेकिन हमें खुश इसलिए होना चाहिए क्योंकि जर्मनी के वैज्ञानिकों ने इको फ्रेंडली एयरकंडीशनर बनाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।म्युनिख में फ्राउएनहोफर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक हाईटेक बिल्डिंग मटैरियल तैयार किया है। ये असल में मोम की नन्हीं गिट्टियां हैं जो दीवारों में पैबस्त कर दी जाएं तो बन जाता है इको फ्रेंडली एयरकंडीशनर। इमारतों और मकानों के निर्माण में जो बात अब ध्यान दी जाने लगी है कि गर्मियों के मौसम में अंदर का तापमान कैसे ख़ुशनुमा रखा जाए। ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंताओं के बीच गर्मियों में मौसम में ऊंचे तापमान रिकॉर्ड किए जा रहे हैं और एसी की खपत बढ़ गई है लेकिन इस वजह से खतरा भी बढ़ गया है, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का।
पर्यावरण से जुड़ी इसी चिंता को दूर करने की दिशा में फ्राउएनहो$फर इन्स्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्ट्मस आईएसई में कार्यरत प्रोफेसर फोल्कर विटवर के दिमाग में यह विचार आया, जिनका मानना है कि कुदरत की शक्ति में ही बेहतर एयरकंडिशनिंग का विचार निहित है। खासकर सूरज की तपिश में। उन्हें दस साल से ज़्यादा समय के बाद इस सवाल का एक जवाब मिल ही गया कि आखिर रात के प्राकृतिक समय की ठंड को कैसे कैद किया जाए और बाद में इसका इस्तेमाल इमारत को गर्म रखने के लिए किया जाए।
अपने सहयोगी पीटर शौशिग के साथ प्रोफेसर विटवर ने लेटेंट हीट सेवर्स पर काम शुरू किया। इनका इस्तेमाल मोम, खासकर पैरेफिन के साथ किया जाता है। कमरे की असहनीय गर्मी को काबू में करने के लिए ये पदार्थ दीवारों में गर्मी को कैद कर लेते हैं और उसे इधर-उधर फैलने से रोकते हैं।
असल में ये काम भौतिकी के उस नियम के तहत होता है जैसा एक ग्लास में बर्र्फ के एक टुकड़े के पिघलते समय देखा जाता है। आइस क्यूब को जब गर्म किया जाता है तो वह पिघलने लगती है। लेकिन उसके आसपास का पानी तभी गर्म होता है जब बर्फ का आखिरी कण पिघल जाता है।
वैक्स के इन कैपश्यूलों को रात में ठंडा और सख्त होना होता है ताकि अगले दिन वे फिर से काम कर सकें। इसका मतलब ये हुआ कि ट्रॉपिकल इलाकों में ये बहुत कारगर नहीं हैं, जहां तापमान बहुत स्थिर रहता है। लेकिन वैज्ञानिक एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे हैं जहां कैपश्यूलों को दीवार पर पानी के छिड़काव से ठंडा रखा जा सकता है।
विटवर के अनुसार कैपश्यूलों का इस्तेमाल कूलिंग के दूसरे उद्देश्यों के लिए किया जाता है। उनका कहना है कि कई चादरों और डाइविंग पोशाकों में इसका इस्तेमाल होता है। आने वाले समय में इलेक्ट्रिक कारों में भी कूलिंग बैटरियों में इन कैपश्यूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है। मौसम के बढ़ते तापमान को देखते हुए यही उम्मीद की जानी चाहिए कि यह इको फ्रेंडली एयरकंडीशनर शीघ्र ही बाजार में आए ताकि गर्मी और प्रदूषण दोनों से हमें राहत मिले।
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