- संदीप राशिनकर
अभी हाल ही में हुए विश्व रंगमंच दिवस पर रंगमंच, रंगकर्म, मंचन को लेकर बहुत सारी जानकारियाँ मीडिया में छाई रही। मेरे जीवन में मेरी अल्प रंगकर्म सहभागिता में मौजूद अन्नू कपूर के साथ मेरे द्वारा चलित ट्रक की पिछली बॉडी पर किया गया नाटिका का मंचन एक अविस्मरणीय अनुभव है। आदरणीय अशोक बैनर्जी द्वारा साग्रह लिखवाया गया यह संस्मरण ‘कला वसुधा’ के एक संस्मरण विशेषांक में प्रकाशित हुआ है! आभार के साथ आज इसे आपसे साझा कर रहा हूँ...
बात सन 1972 की है और जगह है मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले का एक तहसील क्षेत्र नीमच! हम शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते थे। हमारे साथ ही एक सहपाठी हुआ करता था अनिल कपूर!
पढ़ाई के साथ उसे और मुझे भी विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों में ज्यादा दिलचस्पी हुआ करती थी। स्कूल की कला विषयक विभिन्न गतिविधियों में भाग लेना हमारा प्रिय शगल हुआ करता था।
नाट्यगृहों में नाट्य मंचन तो सर्वविदित सामान्य बात है ही; किन्तु उसे और लोकाभिमुख बनाने के उद्देश्य से नाटकों का मंचन लोगों के बीच नुक्कड़ों पर भी ‘नुक्कड़ नाटक’ के रूप में किया जाने लगा था। हालाँकि नाट्य गृह , नाट्य मंचन और नुक्कड़ नाटकों की दृष्टि से ही तहसील स्तर का नीमच जहाँ इतना प्रगतीशील न हो वहाँ चलीत नाट्य मंचन की कल्पना करना और उसे
साकार कर दिखाना वाकई एक अजूबे की तरह ही था। उन दिनों बांग्लादेश और शेख मुजीबुर्रहमान काफी चर्चा में थे। स्कूल के तत्कालीन प्रभारी शिक्षक जी ने तय किया कि इस वर्तमान महत्त्व के विषय पर न सिर्फ़ हमें नाट्य का मंचन करना है वरन इसका मंचन भी अभूतपूर्व अंदाज़ में करना है। बस फिर क्या था विषय को लेकर एक नाटिका ‘अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अधिकरण का फैसला’ की स्क्रिप्ट तैयार हुई। प्रस्तुति को ज्यादा लोकाभिमुख और नाविन्यपूर्ण बनाने की दृष्टि से तय किया गया कि इसका चलित मंचन किया जाए।मंचन को चलित बनाने की दृष्टि से एक ट्रक की पिछली बॉडी को सेट बनाते हुए सारी नाट्यानुरूप प्रॉपर्टी को वहाँ संयोजित कर सेट बनाया गया। कोर्ट में चलने वाली दलीलों और उसपर आधारित फैसले की विषयवस्तु की इस नाटिका में जिन दो वकीलों की मुख्य भूमिका थी उनमें एक था तत्कालीन अनिल कपूर (आज के लोकप्रिय अभिनेता एवं आर. जे. अन्नू कपूर ) और दूसरा याने मैं संदीप राशिनकर!
फिर दिनांक 26 जनवरी' 1972 का वह दिन आया जब सुबह दस बजे से दोपहर तीन-चार बजे तक नीमच के मार्गों पर मंथर गति से एक ट्रक चलता रहा और ट्रक की पिछली बॉडी पर बने अदालत के सेट पर निरन्तरता में मंचित होता रहा नाटक ‘अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अधिकरण का फैसला’! चलते ट्रक के पीछे उमड़ता रहा, चलता रहा दर्शकों का काफिला और देखता रहा, सराहता रहा ये अद्भुत मंचन! ट्रक की बॉडी पर ही जोर-शोर से चलती रही अन्नू की और मेरी दलीलें और देते रहे न्यायाधीश फैसला। वाकई नीमच जैसे तहसील स्तर के शहर में नाटिका का यह चलित मंचन हमारे लिए और लोगों के लिए अद्भुत ही नहीं अभूतपूर्व भी था। हमारे और सह कलाकारों के लिए यह एक ऐसा अनुभव रहा जो जीवन पर्यंत हमें रोमांचित करता रहेगा। आगे जाकर मैं इस बात से अनभिज्ञ ही रहता कि चलित नाट्य मंचन में स्कूली दिनों में वकील बन जिससे मै जिरह करता रहा, वह कोई और नहीं आज के लोकप्रिय अभिनेता अन्नू कपूर हैं, अगर सन 2000 के फरवरी में इंदौर में वह घटना न होती। पत्रिका ‘मनस्वी’ के संपादक मेरे मित्र मुरलीजी का मुझे फ़ोन आया कि क्या मैं नीमच में पढ़ा हुआ हूँ, या कि मेरे पिताजी श्री वसंत राशिनकर कभी नीमच की स्कूल में पढ़ाया करते थे? मेरे हाँ कहने पर वह कहने लगे कि अन्नू कपूर को भेंट की गई पत्रिका के इस अंक में प्रकाशित भाभीजी ( श्रीति राशिनकर) द्वारा शिव शाहिर बाबा साहेब पुरंदरे के साक्षात्कार के साथ छपे फोटो के साथ लिखे राशिनकर को देख अन्नूजी ने कहा ये नीमच से सम्बंधित हैं क्या, क्योंकि राशिनकर सर ने मुझे नीमच में पढ़ाया हुआ है और अगर ये वही हैं, तो मुझे उनसे मिलना है! यह सुनते ही मेरी स्मृतियों में स्कूली दिनों के नाटकों के सब फोटो घूम गए और उसमें अन्नू के साम्य वाले चेहरे याद आने लगे। घर पहुँचकर पुराने फोटो तलाशकर देखे, तो आश्चर्य मिश्रित उद्गार निकले- ‘अरे ये तो अन्नू कपूर ही है! सिर्फ़ अनिल और अन्नू की दुविधा, अन्नू के पिताजी से मिलने घर पर आने के बाद हुई बातचीत से दूर हुई! अन्नू ने बताया कि मैंने जब फिल्म इंडस्ट्री ज्वाइन की, तब वहाँ अनिल कपूर पहले से ही कार्यरत होने से मुझे मेरा नाम बदलना पड़ा और मैं अनिल से अन्नू हो गया ! उन दिनों किए हमारे नाटकों के फोटो देखकर न सिर्फ अन्नू रोमांचित हुए वरन् उनके साथ आए साथियों को भी उन्होंने वे फोटो बड़ी उत्सुकता से दिखाए। उन स्कूली दिनों में किए नाटकों के नाम भी मज़ेदार थे मसलन ‘होशियार’, ‘पागलों का गाँव’, ‘भूगोल का मास्टर’ इत्यादि!अनिल उर्फ़ अन्नू के साथ जिए वे सुनहरे लम्हें याद आ गए... और ऐसी ही सुनहरी व आत्मीय यादें ही तो हमारे जिंदगी की असली दौलत है!!
1 comment:
रोचक संस्मरण
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