विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
सलीके से पूरित संवाद जीवन में सफलता की कुंजी है। समझदार व्यक्ति
मूर्खतापूर्ण सवालों का चतुराई-भरा उत्तर देकर प्रश्नकर्ता को निरुत्तर कर देता है। और कई बार तो उपहास
का पात्र भी बना देता है। विपरीत परिस्थिति में भी सटीक संवाद व्यर्थ के विवाद को
न केवल टाल देता है, अपितु समाज में आपकी छवि को निर्विवाद
बनाने में सहायक सिद्ध होता है। बुद्धिमान व्यक्ति का सामयिक उत्तर क्रोधपूर्ण
वार्तालाप में अप्रिय प्रसंग का प्रवेश बाधित कर देता है।
इस मामले में महात्मा गाँधी का संवाद संप्रेषण सर्वोत्तम था। वे कभी भी मानसिक
संतुलन नहीं खोते थे और अपने तर्कपूर्ण उत्तर से सामनेवाले को कई बार झेंपने पर
मजबूर कर देते थे।
अंग्रेज गाँधीजी से बहुत चिढ़ते थे। एक बार पीटर नामक एक ऐसे ही सज्जन प्रोफेसर
विश्वविद्यालय के रेस्टोरेंट में भोजन कर रहे थे। उसी समय गाँधी भी अपनी ट्रे लेकर
उनकी बगल में जा बैठे।
पीटर ने अप्रसन्नतापूर्वक कहा – एक सूअर और पक्षी कभी भी साथ बैठकर खाना नहीं
खाते।
महात्मा गाँधी ने कहा – सत्य कहा आपने। पर मैं तो कुछ ही पलों में भोजन करके
उड़ जाऊँगा। और यह कहकर वे दूसरी टेबल पर जाकर बैठ गए।
पीटर का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वे तुरंत प्रतिशोध का दूसरा अवसर
ढूँढने में व्यस्त हो गए। लेकिन महात्मा वैसे ही पूरी तरह शांत भाव से भोजन करते
रहे।
पीटर ने संवाद के धनुष से दूसरा बाण छोड़ा – गाँधी समझो हम सड़क पर पैदल चल रहे
हैं और हमें अचानक दो पैकेट राह में पड़े मिल जाते हैं। एक पर लिखा है बुद्धि और
दूसरे पर पैसा। आप किसे लेना पसंद करेंगे।
बगैर एक पल गँवाए गाँधीजी का उत्तर था – वह पैकेट जिस पर पैसा लिखा है।
पीटर मुस्कुराकर बोले –अगर मैं आपकी जगह होता ,तो बुद्धि शब्द से अंकित पैकेट उठाता।
सही कहा आपने–गाँधीजी ने उत्तर दिया – आखिरकर आदमी वही तो उठाएगा जिसकी उसके
पास कमी है।
अब तो अति हो गई। प्रोफ़ेसर ने अगली चाल चली और परीक्षा स्थल पर गाँधीजी को उत्तर पुस्तिका देते समय पहले पन्ने
पर इडियट शब्द लिख दिया और मुस्कुराने लगे। गाँधीजी ने शांत भाव से उत्तर पुस्तिका
ग्रहण की तथा बैठ गए। कुछ पल बीत जाने पर वे अपनी जगह से उठे और प्रोफ़ेसर से कहा –
मिस्टर पीटर आपने मेरी उत्तर पुस्तिका पर अपने आटोग्राफ तो कर दिये लेकिन मुझे
ग्रेड देना भूल गए।
बात का सारांश मात्र यही है कि कुतर्की का वैसा ही उत्तर देना न केवल विवाद को
बढ़ाता है; अपितु अप्रिय स्थिति भी उत्पन्न कर सकता
है। शांतचित्त से बुद्धिमतापूर्ण उत्तर न केवल सामनेवाले को लज्जित कर सकता है, बल्कि समाज में आपकी प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि भी करता है। इसलिए ऐसी
स्थिति की उपस्थिति से सामना होने पर व्यर्थ के विवाद से बचते हुए जहाँ तक संभव हो
सार्थक एवं समझदारी से सामयिक उत्तर देने का यत्न करें। इससे आपकी मानसिक शांति भी
बनी रहेगी और समाज में प्रतिष्ठा भी।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति
निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो.09826042641, E-mail- v।joshi415@gmail.com
9 comments:
गांधी जी पर बहुत ही गहरा अध्ययन है आपका। जिन उद्धरणों से आपने अपनी बात कही है, मन में बस गई। बेहद प्रभावकारी आलेख। udanti.com साधुवाद।
गांधी जी पर बहुत ही गहरा अध्ययन है आपका। जिन उद्धरणों से आपने अपनी बात कही है, मन में बस गई। बेहद प्रभावकारी आलेख। udanti.com साधुवाद।
गाँधी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपने उनका एक अलग पक्ष को पुनः उजागर किया।
योगेश भाई, आपकी मेरे प्रति सद्भावना एवं स्नेह अद्भुत है. सो सादर
आ. जोशीजी, आप तो मेरे अग्रज हैं नेकी के. सो सादर
Kya bat khi Sir apne
Sadar Pranam
Sadar Abhivadan
Post a Comment