बाधाओं को पार करते हुए
- डॉ. रत्ना वर्मा
उदंती के प्रकाशन की रुपरेखा जब बन रही थी तब पत्रिका की विषयवस्तु के बारे में मैंने बहुत लम्बी चौड़ी रुपरेखा नहीं बनाई थी और न ही कुछ वादा किया था, कम शब्दों में इतना ही कहा था कि- पत्रिका मानव और समाज को समझने की एक सीधी सच्ची कोशिश होगी। पत्रिका में समाज के विभिन्न मुद्दों जिनमें राजनीतिक, सामाजिक, औद्योगिक एवं आर्थिक विषयों से संबंधित सम- सामयिक आलेखों का समावेश तो होता ही रहा है साथ ही भारत की संस्कृति, परंपरा, लोककला, पर्यटन एवं पर्यावरण जैसे विभिन्न विषयों को भी प्रमुखता से शामिल किया जाता रहा है।
आरंभ के अंकों में इसमें साहित्य की सभी विधाओं को शामिल नहीं किया गया था। कविता, गीत, ग़ज़ल, लघुकथाएँ, व्यंग्य के साथ कहानी को भी उदंती का हिस्सा बना लिया गया। उदंती के प्रत्येक अंक पर पाठकों की प्रतिक्रिया और रचनाकारों से मिलने वाले सुझाव और सलाह पर समय -समय पर पत्रिका की विषयवस्तु में बदलाव किए जाते रहे हैं।
कालजयी कहानियों का प्रकाशन ही कुछ इसी तरह के सलाह व सुझाव के बाद आरंभ हुआ। फिर बाद में और भी विभिन्न विषयों पर अनेक स्तंभों की शुरूआत हुई। जैसे 21 वी सदी के व्यंग्यकार, प्रेरक कथा, यादगार कहानियाँ, मिसाल, मुझे भी आता है गुस्सा, आदि... धीरे धीरे विभिन्न विषयों पर विशेषांक भी निकलने लगे जिनमें दीपावली, होली, नवरात्रि, जैसे पर्व त्योहारों के अलावा पर्यावरण, पर्यटन, प्रदूषण जैसे सामाजिक जनजागरण और जनजीवन से जुड़े मुद्दे।
पिछले कुछ माह से कुछ विशेषांकों की तैयारी की चर्चा के दौरान यह भी तय किया गया कि क्यों न उदंती में अब तक प्रकाशित कुछ विशेष विषयों को एक ही अंक में संग्रहीत कर लिया जाए। इसी सोच के तहत कालजयी कहानियों का यह विशेष अंक आपके हाथों में है। उदंती में अब तक प्रकाशित महान रचनाकारों की कुछ यादगार कहानियों को एक ही अंक में पिरोने का हमारा यह प्रयास आपको अवश्य पसंद आएगा।
आर्थिक व्यवधान और अन्य कई कारणों से उदंती का नियमित प्रकाशन इधर कुछ माह से नहीं हो पा रहा था। उदंती के पाठकों के लगातार मिल रहे पत्र इस बात के गवाह हैं कि उन्हें उदंती की प्रतीक्षा रहती है। उम्मीद तो यही है कि अब इसके प्रकाशन में आने वाली बाधाएँ दूर होंगी और हम अपने पाठकों तक नियमित इसके अंक पँहुचा पाएँगे।
विश्वास है हमेशा की तरह आप सबका सहयोग और प्रोत्साहन मिलता रहेगा।
- डॉ. रत्ना वर्मा
उदंती के प्रकाशन की रुपरेखा जब बन रही थी तब पत्रिका की विषयवस्तु के बारे में मैंने बहुत लम्बी चौड़ी रुपरेखा नहीं बनाई थी और न ही कुछ वादा किया था, कम शब्दों में इतना ही कहा था कि- पत्रिका मानव और समाज को समझने की एक सीधी सच्ची कोशिश होगी। पत्रिका में समाज के विभिन्न मुद्दों जिनमें राजनीतिक, सामाजिक, औद्योगिक एवं आर्थिक विषयों से संबंधित सम- सामयिक आलेखों का समावेश तो होता ही रहा है साथ ही भारत की संस्कृति, परंपरा, लोककला, पर्यटन एवं पर्यावरण जैसे विभिन्न विषयों को भी प्रमुखता से शामिल किया जाता रहा है।
आरंभ के अंकों में इसमें साहित्य की सभी विधाओं को शामिल नहीं किया गया था। कविता, गीत, ग़ज़ल, लघुकथाएँ, व्यंग्य के साथ कहानी को भी उदंती का हिस्सा बना लिया गया। उदंती के प्रत्येक अंक पर पाठकों की प्रतिक्रिया और रचनाकारों से मिलने वाले सुझाव और सलाह पर समय -समय पर पत्रिका की विषयवस्तु में बदलाव किए जाते रहे हैं।
कालजयी कहानियों का प्रकाशन ही कुछ इसी तरह के सलाह व सुझाव के बाद आरंभ हुआ। फिर बाद में और भी विभिन्न विषयों पर अनेक स्तंभों की शुरूआत हुई। जैसे 21 वी सदी के व्यंग्यकार, प्रेरक कथा, यादगार कहानियाँ, मिसाल, मुझे भी आता है गुस्सा, आदि... धीरे धीरे विभिन्न विषयों पर विशेषांक भी निकलने लगे जिनमें दीपावली, होली, नवरात्रि, जैसे पर्व त्योहारों के अलावा पर्यावरण, पर्यटन, प्रदूषण जैसे सामाजिक जनजागरण और जनजीवन से जुड़े मुद्दे।
पिछले कुछ माह से कुछ विशेषांकों की तैयारी की चर्चा के दौरान यह भी तय किया गया कि क्यों न उदंती में अब तक प्रकाशित कुछ विशेष विषयों को एक ही अंक में संग्रहीत कर लिया जाए। इसी सोच के तहत कालजयी कहानियों का यह विशेष अंक आपके हाथों में है। उदंती में अब तक प्रकाशित महान रचनाकारों की कुछ यादगार कहानियों को एक ही अंक में पिरोने का हमारा यह प्रयास आपको अवश्य पसंद आएगा।
आर्थिक व्यवधान और अन्य कई कारणों से उदंती का नियमित प्रकाशन इधर कुछ माह से नहीं हो पा रहा था। उदंती के पाठकों के लगातार मिल रहे पत्र इस बात के गवाह हैं कि उन्हें उदंती की प्रतीक्षा रहती है। उम्मीद तो यही है कि अब इसके प्रकाशन में आने वाली बाधाएँ दूर होंगी और हम अपने पाठकों तक नियमित इसके अंक पँहुचा पाएँगे।
विश्वास है हमेशा की तरह आप सबका सहयोग और प्रोत्साहन मिलता रहेगा।
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