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Dec 25, 2010

राष्ट्रीय विरासत हाथी

- नवनीत कुमार गुप्ता
हाथी प्राचीन काल से ही हमारे धर्म, संस्कृति और इतिहास से जुड़ा जीव है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने गजराज यानी हाथी को भारत का राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया है। इससे पहले 13 अक्टूबर को राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थायी समिति की बैठक ने गजराज परियोजना पर गठित कार्यबल की सिफारिश के अनुरूप इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। हाथियों के संरक्षण के लिए बनाए गए कार्यबल की रिपोर्ट जारी करते हुए पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि हाथी 'युगों से हमारी धरोहर का हिस्सा रहे हैं। बाघों की तरह इनकी भी सुरक्षा करने की आवश्यकता है।'
राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थायी समिति ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की तर्ज पर राष्ट्रीय हाथी संरक्षण प्राधिकरण के गठन पर भी जोर दिया है। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में करीब 25,000 हाथी हैं जिनमें से करीब 3500 तो लोगों के अधीन हैं। पूरे एशिया महाद्वीप की हाथियों की आबादी का 60 प्रतिशत हमारे अपने देश में है।
धरती पर पाया जाने वाला सबसे विशाल जीव हाथी सदियों से मानव का पशु हमसफर रहा है। हाथी एक बुद्धिमान जानवर है और पूरे एशिया में इसकी बुद्धिमानी की कहानियां प्रचलित हैं। वैसे हाथी हमारे जीवन से जुड़ा है इसलिए इससे जुड़े मुहावरे और लोकोक्तियां समाज में बहुतायत से प्रचलित हैं।
धार्मिक ग्रंथों में हाथियों को लेकर अनेक आख्यान लिखे गए हैं जिनमें गज और ग्राह की कहानी सबसे प्रसिद्ध है। धन की देवी लक्ष्मी को भी हाथी प्रिय है। देवराज इंद्र एरावत नामक हाथी की सवारी करते हैं जो समुद्र मंथन से प्रकट हुआ था। प्रथम पूज्य देव गणेश का मुख हाथी का ही है। इसके अलावा भारतीय संस्कृति में हाथी को ऐश्वर्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। प्राचीन समय में सेना में हाथियों के संख्या के आधार पर ही युद्ध की हार- जीत तय होती थी।
महाभारत में भी अश्वत्थामा नामक हाथी की मौत युद्ध की एक निर्णायक घटना रही थी। इसके अलावा हमारे अनेक तीज- त्यौहारों का सम्बंध हाथी से रहा है। मैसूर के प्रसिद्ध दशहरे में हाथियों का अनोखा श्रंृगार देखते ही बनता है।
वैसे तो मानव के प्रति हाथी का व्यवहार मित्रवत रहा है। लेकिन कुछ दशकों से मानव के प्रति इसका गुस्सा बढ़ रहा है। भारत में पिछले तीन सालों में करीब 1100 लोगों को हाथी के गुस्से का शिकार होकर अपनी जान गंवानी पड़ी है।
सन 2007 से 2009 के बीच हाथियों ने 15,312 घरों को तहस- नहस किया है। इसी दौरान हाथियों द्वारा फसलों को उजाडऩे की 87,269 घटनाएं हुर्इं। यह विचारणीय तथ्य है कि आखिर सदियों से मानव का हमसफर रहे हाथी का मानव के प्रति रवैया क्यों बदला। लगता है कि इसके पीछे मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। असल में वन क्षेत्र में हो रही कमी और अवैध शिकार के कारण हाथी हिंसक हो जाते हैं। अब यह बात साफ हो गई है कि प्राकृतवासों से की जा रही छेड़छाड़ ने वन्य जीवों और मानव के बीच संघर्ष को बढ़ाया है।
उन्नीसवीं सदी के अंतिम चरण में भारतीय भू- भाग का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा वनाच्छादित था, जबकि स्वतंत्रता के समय केवल 22 प्रतिशत भू- भाग पर वन थे जो दिनों- दिन और कम होते गए। घटते वनों के चलते ये जीव आखिर जाएं तो जाएं कहां? वन्य जीवों के आवास स्थलों यानी वनों का क्षेत्रफल निरंतर कम हो रहा है। जिसके कारण हाथियों को पर्याप्त मात्रा में पानी और भोजन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में आवश्यकताएं उन्हें मानवीय बस्तियों और खेतों की ओर ले आती हैं।
हम जानते हैं कि वनों का विनाश, आवास स्थलों की कमी तथा अवैध शिकार से कुछ प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और कुछ विलुप्ति की कगार पर हैं।
हाथी भी इन मानवजनित समस्याओं का सामना कर रहे हैं। रेलगाडिय़ों से हाथियों की मौत की दुखद घटनाएं होती रहती हैं। कुछ महीनों पहले पश्चिम बंगाल में मालगाड़ी ने सात हाथियों को रौंद दिया था। इसके अलावा हाथियों का अवैध शिकार इनके अस्तित्व के लिए गंभीर समस्या है। 2 सितंबर को देहरादून पुलिस ने लाखों रुपए के हाथी दांतों के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया था।
सरकार ने हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित कर इस विशालकाय जीव के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। लेकिन जब तक हाथियों के निवास स्थानों यानी वनों में मानवीय गतिविधियां रुक नहीं जाएंगी तब तक इस जीव पर संकट मंडराता रहेगा। इसलिए आम आदमी को हाथियों के संरक्षण की लिए आगे आना होगा तभी इस जीव का अस्तित्व बना रहेगा। वर्ष 2010 को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर हमें हाथी समेत सभी वन्य जीवों के संरक्षण का संकल्प लेते हुए इस धरती को जीवनमय बनाए रखने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। (स्रोत फीचर्स)

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