उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Nov 25, 2016

पर्यावरण को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है

      पर्यावरण को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है
     कोई और इसे बचाने नहीं आगा
                         - वैभव अग्रवाल  
राबर्ट स्वान ने कभी कहा था कि हमारे ग्रह (पृथ्वी) को सबसे बड़ा खतरा, हमारी इस मानसिकता से है कि कोई और इसे बचा लेगा। ये कथन हमारे लिए चेतावनी के साथ साथ सलाह भी है कि हम सब मिल कर ही अपने ग्रह पृथ्वी को बचा सकते है। ये हम सब का दायित्व है कि पृथ्वी के वातावरण को बचाने में हम सब सहयोग दे, चाहे छोटा सहयोग या बड़ा। क्योंकि कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
जैसा सुकरात ने कहा है कि वो ही अमीर है जो प्रकृति के संसाधनों का कम से कम उपयोग करता हैअर्थात हमें अपनी आवश्यकता अनुसार ही प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। जैसे कि हम व्यर्थ में पेड़ ना काटें, जल व्यर्थ ना करें, वायु को कम से कम प्रदूषित करें, विद्युत् का उपयोग आवश्यकता अनुसार करे। वैसे भी कहा गया है कि प्रकृति हमार। हमारे प्राचीन ऋषि- मुनियों ने प्रकृति के महत्त्व को समझा था इसी लिए हमारे भारत में नदियों, वृक्षों, पर्वतों को देवता स्वरुप मानकर उनकी पूजा करते थे ताकि हम उन्हें गन्दा एवं अपवित्र ना करें।
आजकल हम देख रहे है कि पृथ्वी के संसाधनों का बहुत दुरुपयोग हो रहा है। आजकल दिखावे की प्रथा दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। जहाँ हम एक कार में  5-6 लोग जा सकते है ; वहीं पर हर आदमी शान के लिए अलग गाड़ी का प्रयोग कर रहा है। और तो और शहरों में लोग सैर के लिए भी शहर से दूर गाडिय़ों में जाते हैं ; क्योंकि अंधाधुँध आधुनिकरण ने शहरों में स्वच्छ वायु वाला स्थान ही नहीं छोड़ा। ज्यादा मोटर गाडिय़ों से सड़क पर यातायात अवरुद्ध हो जाता है और दुर्घटनाओं की संख्या में बहुत बढ़ोतरी हो रही हैं। पेट्रोल की खपत दिन- पर- दिन  बढ़ रही है जिससे वायू प्रदूषण बढ़ रहा है। पर्यावरण खऱाब हो रहा है जिसके कारण तरह तरह के रोग बढ़ रहे हैं ।
आजकल हम देख रहे है कि विवाह, जन्मदिन आदि समारोह में भी खाने कि बहुत ज्यादा बरबादी हो रही है। एक ही समारोह में 10-15 तरह के व्यंजन बनते है और अंतत: बहुत ज्यादा अन्न व्यर्थ जाता है। अन्न को उगाने में कितनी मेहनत, खाद, पानी, समय और बिजली आदि लगते हैं, तो किसान ही जानता है और हम उसको कितनी आसानी से बरबाद कर देते हैं। एक तरफ तो विश्व में अनेकों लोग भूख से मर रहे हैंं और एक तरफ अन्न की बरबादी बहुत ही तकलीफदेह है। भगवान कृष्ण ने भी दौपदी को अक्षय पात्र के एक चावल के दाने से अन्न का महत्त्व समझाया था। अत: हम सबको अन्न व्यर्थ ना करके उसका सदुपयोग करना चाहिए ; जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
अभी कुछ समय पहले भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत की योजना चलाई है। स्वच्छ भारत की योजना केवल सरकार के प्रयासों से सफल नहीं हो सकती। जब तक प्रत्येक नागरिक इसमें अपना सहयोग नहीं देगा तब तक ये योजना सफल नहीं हो सकती। स्वच्छता से ही हम पृथ्वी को बचा सकते है। स्वच्छता होगी तो कई बीमारियाँ तो वैसे ही समाप्त हो जाएगी जिन पर हमें और सरकार को बहुत सा धन खर्च करना पड़ता। वो ही धन अगर देश के विकास में लगे तो कितना अच्छा हो। सभी नीरोग जीवन जिएँ। स्वच्छता तब ही होगी , जब हम ठीक से कचरे का प्रबन्धन रेंगे। कम से कम कचरा पैदा करेंगे और उस कचरे का दोबारा अन्य कामों में प्रयोग करेगे। इससे हमारे पर्यावरण की सुरक्षा होगी और हमारी पृथ्वी सुन्दर होगी।
आजकल विभिन्न देशों में हथियारों की होड़ लगी हुई है। ऐसे ऐसे घातक हथियार विकसित किए जा रहे है जो पृथ्वी को नष्ट कर सकते है। एक तरफ तो हम दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावना तलाशते हुए घूम रहे हैं और दूसरी तरफ हम अपनी स्वर्ग से भी सुन्दर पृथ्वी को बरबाद करने पर तुले हुए हैं जो हम सबको जीवन देती है। ये कैसी विडम्बना है?
अभी पिछले दिनों देश में सूखे जैसे हालत हुए, हमने देखा कि महाराष्ट्र, बुंदेलखंड आदि जगहों पर लोगों के लिए पीने तक का पानी नहीं था और दूसरी तरफ हम पानी को व्यर्थ करते रहते हैं। ये हम सबका कर्तव्य है कि हम पानी का संरक्षण करे और उसका सदुपयोग करे;क्योकि जल ही जीवन है।
जैसे जैसे द्योगीकरण हो रहा है वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, नदियों का पानी दूषित हो रहा है, जंगल के जंगल काटे जा रहे है। जिससे पर्यावरण को भयंकर नुकसान हो रहा है। इसका एकमात्र विकल्प है कि हम ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाये।
अंधाधुध द्योगीकरण से विश्व का तापमान साल दर साल बढ़ रहा है जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे है। समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है जिससे कई द्वीप तो समुद्र में पहले ही  समा चुके है। कई जीव जंतु विलुप्त हो चुके हैं।
कुल मिलाकर देखा जाये तो स्थिति बहुत भयावह है।  अगर हम अभी भी सचेत नहीं हुए तो हमारा भविष्य अंधकारमय ही है। हम अपने ग्रह पृथ्वी को तब ही बचा सकेगे; जब हर व्यक्ति अपना कर्तव्य समझकर तथा छोटी- छोटी बातों पर ध्यान देकर प्रकृति के स्रोतों की रक्षा करेगा और उनका सदुपयोग करेगा। ऐसे समय में राबर्ट स्वान का ये कथन कि हमारे ग्रह (पृथ्वी) को सबसे बड़ा खतरा, हमारी इस मानसिकता से है कि कोई और इसे बचा लेगाबहुत सार्थक लगता है। हम सबको मिलजुल कर अपने ग्रह पृथ्वी को बचाना है कोई दूसरा इसे बचाने नहीं आयेगा।
सम्पर्क- 181/ lll स ला ई ट, लोंगोवाल जिला संगरूर, 148106, Email- aggarwalramnik@gmail.com

No comments: