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Aug 15, 2014

उदंती.com, अगस्त- 2014

वर्ष- 7, अंक- 1

सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनों को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। 
- श्री अरविंद

1 comment:

  1. आदरणीय रत्ना जी,
    हमेशा की तरह बेहतरीन अंक प्रस्तुत किया है | श्री गिरीश पंकज का लेख विचार प्रेरक है| पद्मा मिश्रा की कहानी अदभुत है |
    - पंकज त्रिवेदी
    संपादक,
    विश्वगाथा (त्रैमासिक हिन्दी प्रिंट पत्रिका)
    सुरेंद्रनगर-गुजरात

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