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Sep 26, 2013

उदंती.com सितम्बर- 2013

उदंती.com  सितम्बर- 2013

आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ या बोल लें; 

लेकिन जब तक उन पर अमल नहीं करते, 
उसका कोई फायदा नहीं है।
- गौतम बुद्ध

अनकही: बाबाओं का गोरखधंधा  - डॉ. रत्ना वर्मा


2 comments:

ऋता शेखर 'मधु' said...

सुंदर कलेवर में सजी सार्थक पत्रिका|

सहज साहित्य said...

पुण्य स्मरण: लाला जी के चले जाने का अर्थ -बहुत मार्मिक बन गया है।'हिन्दी दिवस: युवा वर्ग की चेतना बनाने का संघर्ष-सुधा ओम ढींगरा ने -विदेशी में हिन्दी के लिए किए जा रहे प्रयासों की सार्थक जानकारी दी है । डॉ ढींगरा स्वय भी इस पावन यज्ञ को आगे पढ़ा रही हैं। परदेशी राम वर्मा का यात्रा -संस्मरण बहुत रोचक है। अनकही में सम्पादक जी हर बार की तरह बहुत गहरी बातें कह गईं। बाबाओं पर भरोसा करना खुद को ठगे जाने के लिए प्रस्तुत करना है। चेलों और बाबाओं के कच्चे -चिट्ठे हर रोज एक नया शिगूफ़ा लेकर आ रहे हैं। पत्रिका की साज-सज्जा नयनाभिराम है। रामेश्वर काम्बोज ; दिल्ली