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Sep 26, 2013

त्रेतायुगीन जीवन मूल्यों के साथ फकीरी में मगन

त्रेतायुगीन जीवन मूल्यों के साथ 
फकीरी में मगन

बैइगा आदिवासी

- डॉ. परदेशी राम वर्मा

छत्तीसगढ़ का बारनवापारा अभयारण्य अपनी आंतरिक विशेषताओं के कारण सम्मोहित करता है। मैंने हर ऋतु में बारनवापारा को देखा है। 'प्रतिपल परिवर्तित प्रकृति वेश’  पंत जी की इस पंक्ति का मर्म समझना हो तो हर ऋतु में वहाँ जाना चाहिए। प्रकृति किस तरह भेष बदलकर दर्शकों को चकित करती है इसे केवल देखकर ही समझा जा सकता है। और तो और जंगली पशु और पक्षी भी ऋतुओं के साथ आपनी अदाओं में हेरफेर कर लेते हैं।

बारनवापारा का प्रवेश द्वारा है तुरतुरिया। तुरतुरिया में ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। इसी आश्रम में गर्भवती महारानी सीता ने अयोध्या से निष्कासित होने के बाद आश्रम पाया। और यहीं उन्होंने दृढ़तापूर्वक संकल्प लेकर समाधि ले ली। धरती से उपजी सीता अंतत: धरती से इस तरह अपनी गोद में ले लेने का आग्रह करती हैं।
यथाइहं राघवादन्यं मनसाडपि न चिंतये।
तथा में माधवी देवी विवरं दातुमर्हति।
मनसा कर्मण वाचा यथा राम समचंये।
तथा में माधवी देवी विवंर दातुमर्हति
यथैतत् सत्यमुक्तं मे वे रामात परं न च।
तथा में माधवी देवी विवंर दातुमर्हति।
उपर्युक्त श्लोक में सीता का यह आर्त्तनाद समाहित है जिसमें सीता माता ने कहा है कि मन से कभी राम के सिवाय अगर मैनें किसी दूसरे पुरुष का चिंतन नहीं किया तो हे धरती मैया तुम अपनी गोद में मुझे स्थान देना।
तुरतुरिया जाकर उपर्युक्त श्लोक में चित्रित आर्त्तनाद को महसूस किया जा सकता है।
आदिवासियों का अंचल है छत्तीसगढ़। आश्चर्य तो तब होता है जब सभ्यता के इस विस्फोट युग में भी हम अपने छत्तीसगढ़ में त्रेतायुगीन जीवन जीते हुए अपने आदिवासियों को देख पाते हैं।
श्रीराम और  सीता का सम्बन्ध छत्तीसगढ़ के वनवासियों के साथ कितना गहन था यह हम राम वनवारा और सीता के तुरतुरिया प्रवास की कथा से जानते हैं तो शबरी प्रसंग भी हमें बताता है कि राम-मय छत्तीसगढ़ की आस्था का रंग इतना गाढ़ा क्यों है। वनवासी राम छत्तीसगढ़ के भाँजे माता कौशल्या के बेटे रामसीता-पति राम के रूप में छत्तीसगढ़ ने अपने हृदय में श्रीराम को बसाया है। धरती पर जा समाई सीता के बिछोह में किस धरती पर सर पटक कर राम ने विलाप किया होगा।
छत्तीसगढ़ भाषा में रामाख्यान सुनकर लगता है कि श्रीराम का ननिहाल छत्तीसगढ़ सदा राम के साथ-साथ चला है।
इस हड़बड़ीअधीरता और अतृप्ति के युग में विलक्षण परितृप्तिधीरज और शांति का अर्थ जानना हो तो छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल की यात्रा करें।
विशेषकर कबीरधाम जिले के बैइगा आदिवासियों और अचानकमार तथा बारनवापारा सहित बस्तर और अंबिकापुर के कटकटाते जंगलों के भीतर बसे आदिवासियों से मिलें।
अगासदिया के दल के साथ मैंने इन क्षेत्रों की यात्रा का सुजोग जमाया। इन यात्राओं में कलाकार महेश वर्मासाहित्यकार लेखराम मढरियागायक राजेन्द्र साहूसमाजसेवी मालिक वर्मा एवं मनहरण साहू दल के सदस्य के रूप में साथ-साथ रहे।
कबीरधाम जिले के बैइगा आदिवासी और उनके गाँव
कवर्धा जिले में बैइगा आदिवासियों के लिए शासन ने अनुकरणीय काम कर दिखाया है। पर्यटक वहाँ जाकर महसूस करता है कि छत्तीसगढ़ सचमुच पाँच हजार वर्षो का इतिहास एक साथ समेटकर आगे बढ़ रहा है।
रायपुर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम है तो कवर्धा के सुदूर ग्राम सेन्दुरखार में ऋषियों के युग के घर और छप्पर वाली कुटियों की शृंखला भी है।
पचासों एकड़ खाली जमीन में एक तरफ छोटे-छोटे पहाड़दूसरी ओर बहती नदी के किनारे एक झोपड़ी में बैगा जवान और उनकी घरवाली अपने छोटे से बच्चे के साथ। कैसे सुबह का स्वागत वे करते हैंकिस तरह साँझ उनके आँगन में झुकती है और किस तरह रात भर घूमते वन पशुओं के साथ वे समन्वय बनाकर चैन की नींद लेते हैं यह सोचकर यात्री रोमांचित हो उठता है। अप्रैल के महीने में हम गए थे सेन्दुरखार बैइगा गाँव। चारों और महुआ से पटी धरती। घरों के आँगन में महुआ की ढेरियाँ। वन से काँवर में महुआ लेकर गाँव की ओर आता कँवरहा बैइगा जवान छोटी-छोटी सुन्दर साफ-सुथरी झोपडिय़ाँ। मिट्टी के मकान।
लकडिय़ों के सहारे पैरा के लिए बने बड़े मचान। सरकार द्वारा निर्मित शासकीय कार्यालयपाठशालाएँ। सोलर ऊर्जा के लिए समुचित व्यवस्था और पक्की सड़कें। छत्तीसगढ़ कितना सुन्दर है, यह जानना समझना देखना हो तो इन आदिवासी गाँवों में जरूर जाना चाहिए। ये गाँव अपनी पौराणिकता के साथ आधुनिकता को पाकर अब अँगड़ाई लेने लगे हैं। गाँवों से निकलकर बैइगा आदिवासी सुदूर जंगलों में एक एक घर बनाकर एकांत में जीने का सुख उठा रहे हैं। उन्हें कोलाहल पसंद नहीं है।
आदिवासी गाँवों में शासन की ओर से सुविधाएँ जुटाई  गई हैं फिर भी वे अपनी नैसर्गिक रूझान के कारण साधनहीनता को आमंत्रित कर जंगलों के भीतर चले जाते हैं। यह जो बैगाओं की जिद है उसे समझना कम कठिन नहीं है। कबीर ने ठीक ही कहा है...
जिसको कछू न चाहिए सो ही शाहंशाह
बैगा आदिवासियों के घरों को झाँक कर देखने पर अपरिग्रह और त्याग का अर्थ समझने में सहूलियत होती है। एक कथरीदो एक जरमन के बर्तनएक लाठीटोपलीसूपाकुल्हाड़ीगैंती और हँसियाबस इतना सामान। यहाँ शहरी लोगों के लिए शायर लिख-लिखकर अधमरा हो गया कि...
'आगाह अपनी मौत से कोई बसर नहीं,
सामान सौ बरस का हैपल की खबर नहीं।
शहरी आदमी सौ बरस का सामान कई पीढिय़ों के लिए जोडऩे में मरा जाता है। बैइगा आदिवासी अपने लिए जरूरी सामान को भी त्यागता फिरता है ; क्योंकि उसकी मान्यता है कि...
'मन में है संतोष तोसबसे आप अमीर,
लालच में सुलतान केकब बँध सके फकीर
'स्वर्ग-द्वार और वन का मायालोक
पुरी में समुद्र किनारे जहाँ लोग नहाते हैं उस स्थान का नाम स्वर्गद्वार है। मुझे बारनवापारा का तुरतुरिया वन-पोस्ट और कवर्धा जिले का पोड़ी ग्राम क्षेत्र स्वर्ग-द्वार लगता है।
कवर्धा जिले के स्वर्गोपम बैइगा गाँवों में जाने का रास्ता पोड़ी से होकर जाता है।
मार्ग इस तरह है...
पोड़ी से पाण्डातराईपंडरियापटौहाकुईकुकदुरपोलायपुटपुटाचाटा फिर दोलदोली। यह दोलदोली नहीं किनारे का अत्यंत सुन्दर गाँव है। ऐसे गाँवों के लिए कवियों ने मुग्ध होकर गीत रचे।
आमा अऊ लीम के छाँव रे,
नदिया के तीर मोर गाँव रे।
यहाँ मूलचंद बैइगा का घर है। श्रीमती लमनी बैइगिन के साथ वे यहाँ रहते हैं। इनका मूलगाँव सेजाहिड है। लमनी बैइगिन का मायका है। जकनाडिह। गाँवों के ये नाम सुनते हुए मुझे मेरे गाँव लिमतरा से अलग होकर बना गाँव सुरजीडिह याद हो आया। सुरजाबाई गौटनिन के नाम पर यह गाँव सुरजीडिह बसा दिया गया। मैदानी क्षेत्रों में गाँवों और वनग्रामों के नाम में यह समानता भर नहीं है। लगभग भाषाखानपानजीवनचर्यातीज-त्योहारमान्यतादेव-देवी पूजन पद्धतियों में भी छत्तीसगढ़ एक है। आर्य और अनार्य के नाम पर यह सांस्कृतिक विभाजन विद्वानों ने किया है। कुछ उच्च जातियों को छोड़कर समस्त छत्तीसगढ़ की पिछड़ी दलित वनवासी जातियों के बीच संस्कृति का एक ही सूत्र प्रवहमान है। इसे हम छत्तीसगढ़ के भीतर डुबकी लगाकर ही समझ पायेंगे। जो छत्तीसगढ़ के गाँवों में पिछड़ीदलित वनवासी समाज में जन्में उनका अपना छत्तीसगढ़ है। उच्च जातियों में जन्म लेकर भी जिन्होंने छत्तीसगढ़ की आत्मा को पहचाना वे भी उनके साथ समरस हैं। दुर्भाग्य की बात है कि जो छत्तीसगढ़ को समझने का धीरज भी नहीं साध पाते वे इस  पर दावे के साथ अपना मन्तव्य स्थापित करते हैं। तनाव ऐसी ही दुस्साहसिक स्थापनाओं के कारण पैदा होता है।  छत्तीसगढ़ के बाहर से आकर कुछ नामी गिरामी पत्रकारोंलेखकों ने भी अपनी कुंठा से अभिशापित कुटिल वृत्ति का डंका बजाया। लेकिन अब धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ सजग हो रहा है। वह अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान रहा है। कोदोधान की फसलें इस क्षेत्र में होती है। भद्दूटिकूलननिहाबाईइस तरह के नाम वाले लोग सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में मिलते हैं। ये लोग हमें पिपर टोला गाँव में मिले।
सेन्दुरखार कवर्धा से तो किलोमीटर दूर स्थित छत्तीसगढ़ का कश्मीर है। अम्बिकापुर क्षेत्र में जिस तरह पहाड़ों में विशाल मैदान हैंउसी तरह सेन्दुरखार पहाड़ की चोटी पर स्थित सुन्दर मैदानी क्षेत्र है। यहाँ अप्रैल के महीने में दिन को दो बजे हम पहुँचे। ठंडी हवा का झोका लगातार उसी तरह चलता रहा जिस तरह दिसंबर माह में हमारे  मैदानी क्षेत्रों में चलता है। सेन्दुरखर में 45 घर के बैइगा हैं। यहाँ की जनसंख्या 645 है। दस घर यादवों के इस घर मानिकपुरी परिवार का है। 60 बच्चे स्कूल जाते हैं। उनके लिए एक ही शिक्षक है। सेन्दुरखार का आश्रित गाँव बाँगर है। यहाँ बलियादवबुधा बाईजयसिंह बैइगा तथा असरी बाई से भेंट हुई। सुक्रिय दस मानिकपुरी इस गाँव के आठवीं तक पढ़े शहरी विकास और कारोबार से परिचित कला साधक हैं।
इस गाँव में महेश वर्मा के नेतृत्त्व में लोकमय द्वारा शासकीय विकास गाथा की प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। संभवत: लोकमया परिवार इसीलिए इस क्षेत्र के गाँवों और वहाँ के कुद चुनिंदा ग्रामीणों से परिचित भी है।
कवर्धा क्षेत्र में भ्रमण के बाद हम अचानकमार अभयारण्य के करीबी गाँवों की ओर भी गए। अचानकमार टाइगर रिजर्व को अब नये सिरे से संरक्षित किया जा रहा है। वहाँ से लमनी रेस्ट हाउस को हटाया जा रहा है।  बाघों के मिजाज के अनुरूप अभयारण्य को अनुकूल के लिए संरक्षित किया जा रहा है।
लोरमी से होकर अगर अचानकमार जाना चाहें तो रास्तें में लगातार छत्तीसगढ़ के पारंपरिक गाँव और आगे बढऩे पर आदिवासी गाँव मिलेंगे।
घूमाकरगीकलालोकबंदकरगीखुर्दलिटियागाबरीपारापटैता फिर शिवतराई। आजकल शिवतराई में ही रेस्ट हाउस को स्थापित किया गया है। लमनी का सारा सामान शिवतराई में ला दिया गया है।
माननीय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जी के गृह जिले कवर्धा में लगातार बैइगा आदिवासीयों से उनके जीवन और जीवन के विविध रंगों के बारे में स्थानीय सम्पर्को के साथ मिलकर हमने जानकारी ली।
छत्तीसगढ़ शासन के कृषि विभाग के संयुक्त संचालक श्री सालिकराम वर्मा हमारे पारिवारिक सदस्य हैं। वे समाजसेवी एवं छत्तीसगढ़ी संस्कृति के जानकार अधिकारी हैं। उन्होंने कृषि विभाग के सहायक भूमि संरक्षण अधिकारी श्री रविशंकर गुप्ता जी से कहकर हमारे लिए यात्रा को सुगम बनवा दिया। संस्कृति मंत्री जी के निज सविक वन पठारिया जी ने बारनवापारा क्षेत्र में भ्रमण के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
यहाँ अचानकमार अभयारण्य क्षेत्र में हमें बिलासपुर के एडीशनल कमिश्नर श्री एस.एल. रात्रे जी से सम्बल मिला। मेरा अनुज महेश साल भर पहले अपने कला दल के साथ लमनी तक प्रदर्शन हेतु गाँव-गाँव गया था; तब उसे लमनी रेस्ट हाउस में शासकीय निर्देशनुसार सारी सुविधा मिली थी। उसी अनुभव के आधार पर हम लमनी पहुँच तो गये मगर वहाँ जाकर पता चला कि अब व्यवस्थाएँ बदल गई हैं।
अचानकमार में नई व्यवस्था
शिवतराई के बाद हम मानपुरबारीघाटअचानकमारछपरवातिलईडबरीलमनी अतरिया होते हुए केवची पहुँचे। केंवची में साहू परिवार का विशाल ढाबा है। केंवची वह स्थान है जहाँ से अमरकंटक एकदम करीब है। साहू ढाबे में भोजन करने के बाद हम पुन: वापस हुए।
शिवतराई विश्रामगृह भी अभी निर्माणधीन है। वहाँ रुकने की व्यवस्था नहीं हो पाई। श्रीरात्रे जी ने अपने सहपाठी राहुल वाजपेयी के प्रसिद्ध पाँच-सितारा होटल इस्टपार्क में हमारे दल को रात्रि -विश्राम हेतु स्थान दिलवाया।
ईस्ट पार्क में रुककर हमें ज्ञात हुआ कि यह होटल पूर्व विधायक यशस्वी कांग्रेसी नेता स्व. रोहिणी कुमार वाजपेयी के सुपुत्र श्री राहुल वाजपेयी का है।
छत्तीसगढ़ में नए और पुराने का संगम
इस यात्रा में हमें उसे कथन को नए सिरे से समझने का अवसर लगा कि छत्तीसगढ़ एक साथ पाषाण युग और इक्कीसवीं सदी में साँसे लेता है। यह विलक्षण क्षेत्र है जहाँ पौराणिकता और आधुनिकता के दोनों सिरे पूर्ण गरिमा और आत्माभिमान के साथ हमें अपने सूत्र से जोड़ते हैं।
एक तरफ जंगल में बसे लंगोटीधारी आदिवासियों का अपना संसार है तो दूसरी ओर आधुनिक संसार से कदम से कदम मिलाकर चलने हेतु संकल्पित विकास की ओर अग्रसर सेवाभावी लोग हैं। होटल इस्ट पार्क छत्तीसगढ़ के उन तीन-चार चुनिंदा पाँच सितारा होटलों में से एक है जिसकी अपनी प्रतिष्ठा है। छत्तीसगढ़ के यश को बढ़ाने और इसे हर तरह से प्रतिस्पर्धा पूर्ण संसार में अग्रगामी कहलाने योग्य बनाने में जो लोग जुटे हैं। उनमें राहुल वाजपेयी और बिलासपुर के श्री अटल श्रीवास्तव जैसे लोग भी हैं। अटल श्रीवास्तव ने आदिवासी क्षेत्र में भी अपना होटल खोलकर नई ऊँचाइयों को प्राप्त किया है। वे छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त कान्हा किसली क्षेत्र में भी अपना व्यवसाय संचालित करते हैं।
श्री राहुल वाजपेयी तथा श्री अटल श्रीवास्तव समाज सेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।
बारनवापाराजगदलपुरकवर्धा अचानकमारअंबिकापुर में छत्तीसगढ़ के वन-प्रांतर अपनी विशेषता के कारण पर्यटकों को आंतरिक समृद्धि देने हेतु आमंत्रित करते हैं। शायर ने ठीक ही कहा है...
फुर्सत मिले तो आओ कभी मेरे गाँव में,
महसूस होगा धूप से आए हो छाँव में।


सम्पर्क:  एल.आई.जी.-18, आमदीनगरहुडकोभिलाई-490009, छत्तीसगढ़मो. 9827993494

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