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Sep 1, 2025

व्यंग्यः हर व्यक्ति अब महाज्ञानी !..

  - गिरीश पंकज

सुबह- सुबह जैसे ही लिखने का मूड बनाया, तभी पांडुरंगम का फोन आ गया - "मैंने एक वीडियो व्हाट्सएप किया है।  कुछ ही देर का है, उसको जरूर देखें, बहुत अच्छा लगेगा।" 

मैंने मन-ही-मन में चिढ़ते हुए कहा, ''जरूर। इसी काम के लिए तो हम इस धरा पर अवतरित हुए हैं।"

लेकिन प्रकट में कहा, ''भेज दीजिए ! मेरे पास तो फालतू समय है।"

 उन्होंने मेरे व्यंग्य-बाण की अनदेखी करते हुए धन्यवाद कहा और फोन रख दिया। मैंने सोचा, चलो, अब लेख पूरा कर लूँ, फिर पांडुरंग का वीडियो देख लूँगा। मगर लैपटॉप खोला ही था कि रंगास्वामी का फोन आ गया ;

" बंधुवर !! अभी मैंने विश्व की एक बड़ी समस्या पर बहुत बड़ा लेख लिखा है। अपने ब्लॉग में डाला है। उसे समय निकालकर पढ़ें, तो आनंद आ जाएगा। देर न करें ।फौरन पढ़ें।"

रंगास्वामी पुराने मित्र थे।

मैंने कहा, "जरूर देख लूँगा। कुछ समय दो।"

लेकिन मैं चक्कर में पड़ गया। पहले पांडुरंगम का फोन, अब रंगास्वामी का । देखना और पढ़ना ही पड़ेगा, वरना फिर इनका फोन आ जाएगा।  मैंने पहले पांडुरंगम का वीडियो देखा। पन्द्रह-बीस मिनट उसमें निकल गए, तो रंगास्वामी का फोन आ गया। "बंधु !आपने अब तक नहीं पढ़ा क्या?.. यह तो गलत बात है !"

मैंने कहा," पढ़ते ही वाला हूँ। अभी पांडुरंगम का वीडियो देख रहा था।"

रंगास्वामी ने चिढ़ते हुए कहा, "अरे,पांडुरंगम कुछ भी बनाता है। उसे देखना बेकार है। मैं दमदार लिखता हूँ। मेरा लेख पढ़ो और बताओ कैसा लिखा है। फोन करना। मैं इंतजार करूँगा।"

हद हो गई! अब तो पढ़ना ही पड़ेगा। मैंने उसका लेख पढ़ना शुरू किया। इतना लंबा लेख कि पढ़ते-पढ़ते ऊब गया। बीस मिनट लग गए। खोपड़िया ही घूम गई । समझ में नहीं आया कि बंदा लेख में कहना क्या चाहता है। तनाव से मुक्ति के लिए मैंने पानी का गिलास उठाया और गटागट पी गया। तभी रंगास्वामी का दुबारा फोन आ गया।

ज़नाब हँसते हुए पूछ रहे थे, "आपने मेरा लेख पढ़ लिया न? मैं व्हाट्सएप में आपका स्टेटस देख रहा था.. मुझे समझ में आ रहा था कि आप मेरा लेख पढ़ रहे हैं.. हाँ... हाँ... हाँ... कैसा लगा लेख?"

मन तो हुआ कह दूँ कि बेहद घटिया था; लेकिन पुराने संबंधों का लिहाज करते हुए कहा, ‘‘कमाल कर दिया। आपने जो मुद्दे अपने उठाए हैं, उन मुद्दों पर मैंने गंभीरतापूर्वक विचार किया है।"

यह अच्छा हुआ कि रंगास्वामी ने यह पूछा नहीं कि मैंने कौन-से मुद्दे उठाए हैं। अगर वह पूछ लेते तो मैं ठीक से बता नहीं पाता। पकड़ा जाता। मेरी बात सुनकर रंगास्वामी बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे, "आप बहुत अच्छे आदमी हैं। कल भी आपको एक लेख भेजूँगा। परसों भी भेजूँगा।"

मैंने कहा, "स्वागत है, आपका !" 

मन-ही-मन कहा, प्राण ले लो हमारे! फिर सोच लिया कि अब इस बंदे को ब्लॉक करना पड़ेगा।  इस वार्तालाप से मुक्त हुआ ही था कि  घुसपैठ कुमार का फोन आ गया, "भाई साहब ! आपको मैंने व्हाट्सएप किया है। बड़ा ही धाँसू लेख मिला है। आपको फॉरवर्ड किया है। आप इसे पढ़िए और कुछ सोचिए। हम ईंट-से-ईंट बजा देंगे।"

मैंने कहा, " ज़रूर। ईंट-से-ईंट बजा लेंगे, लेकिन पहले पढ़ तो लूँ। फिर वहीं टिप्पणी करता हूँ।"

घुसपैठ कुमार ने कहा, ''टिप्पणी से काम नहीं चलेगा। इस पर अपन चर्चा करेंगे कि हम आगे क्या कर सकते हैं। देश को हम कहाँ ले जा सकते हैं।"

मैंने सिर पीट लिया। सोचने लगा, पढ़ो भी और इनसे चर्चा भी करो। खैर,  मैंने उनका लेख पढ़ा और कुछ टिप्पणी भी कर दी, तो मुक्ति का एहसास हुआ। अब मैं विचार करने लगा कि मुझे किस विषय पर लेख लिखना था।  कुछ समझ ही नहीं आया। जो लिखना चाहता था, वह विषय आउट ऑफ माइंड हो गया।  कुछ देर सोचने के बाद अचानक विषय कौंधा : अरे हाँ, मैं तो समय पकाऊ लोगों पर लिखने वाला था। ऐसे लोगों पर जो आपका समय खा जाते हैं। मैंने अपनी डायरी में लिख लिया, 'समयखोरों से त्रस्त लेखक'।  फिर लिखना शुरू ही  किया था, तभी लपेटोराम का फोन आ गया। मैं जानता था कि यह बंदा भी बहुत बड़ा वाला पकाऊ है। फिर भी दुनिया में हम आए हैं, तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा, यही सोच कर फोन उठाना पड़ा। उन्होंने हैलो भी नहीं कहा और शुरू हो गए:

"बंधुवर! एक भयंकर धाँसू लेख आपको व्हाट्सएप किया है। बहुत बड़ा नहीं है। दो-तीन घंटा नहीं लगेगा। आधे घंटे में पढ़ लेंगे। आधे घंटे बाद में आपको फोन करूँगा।"

मेरा दिमाग भन्ना रहा था। कड़े शब्दों में बोल तो सकता था; लेकिन सिधवा मनुष्य की जो छवि बनी हुई है, उसे तोड़ना नहीं चाहता था; इसलिए विनम्र-भाव से कहा, "ज़रूर.. ज़रूर! स्वागत है।" फिर मैंने उनका लेख पढ़ना शुरू किया। उनका अपना नहीं था। आज से पचास साल पहले किसी लेखक ने कुछ भविष्यवाणी की थी। पढ़ते-पढ़ते एक घंटा हो गया। लेख खत्म नहीं हुआ, तो मैंने पढ़ना बंद कर दिया। पूरे एक डेढ़ घंटे बाद पकाऊराम जी का फोन आ गया।

"अरे, लेख पढ़ा ?.. कैसा लगा?.. मजा आ गया न?.. देखो, क्या भविष्यवाणी की थी अगले ने.. बिल्कुल सही उतर रही है.. ऐसे ग्रेट लोग हो चुके हैं दुनिया में..  कमाल है,धन्य है.. इसे कुछ और लोगों को फॉरवर्ड कर देना भाई। मज़ा आ जाएगा।"

अपनी ओर से वे नॉन स्टॉप बोलते रहे।  मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया। अंत में उन्होंने कहा,"अच्छा, फोन रखता हूँ।"

और सचमुच उन्होंने फोन रख भी दिया। वरना उनकी पुरानी आदत है; रखता हूँ, तो कहते हैं मगर फिर लगातार बात करते रहते हैं।  मैं समझ गया कि आज मैं कुछ लिख-पढ़ नहीं पाऊँगा। आज सिर्फ मुझे पढ़ना है और देखना है। लिखना स्थगित! और मैंने यह आजमाया भी। गुस्से में सोच लिया कि आज कुछ लिखना ही नहीं है। आज सिर्फ व्हाट्सएप से ही नज़रें चार करनी हैं। और एक-एक का व्हाट्सएप स्टेटस देखना शुरू। देखते-ही-देखते दोपहर के एक बज गए। भोजन किया और लौट करके आने के बाद फिर व्हाट्सएप देखने लगा। रामलाल का, श्यामलाल का, लल्लू का, कल्लू का। बस, शाम हो गई। चाय-नाश्ता करने के बाद फिर बचे हुए व्हाट्सएप संदेशों को देखना शुरू किया। आज हर व्यक्ति मुझे ज्ञानी लगा। ज्ञान के भंडार से भरपूर। रात को नौ बजे के बाद भूख लगी तो भोजन कर लिया। तभी पकाऊ राम का फिर फोन आ गया :

" भाई साहब! फिर एक लेख मैंने भेजा है। जरूर पढ़ना। आपके ज्ञान-चक्षु खुल जाएँगे।"

मेरा दिमाग बुरी तरह से भन्ना गया था। मन तो हुआ कि मैं उनसे कहूँ कि पहले आप अपने ज्ञान-चक्षु खोलिए। किसी को इतना भी परेशान मत कीजिए कि वह तनाव में आ जाए; लेकिन शिष्टाचार के मारे कुछ कहा नहीं। फिर मन में आया कि व्हाट्सएप ही स्थायी रूप से बंद कर दूँ। चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद यह जो मनुष्य योनि मिली है, उसे सुख-चैन से जी लूँ, यही बहुत है। व्हाट्सएप के कारण जीना कठिन हो रहा है। पहले सोचा कि व्हाट्सएप बंद ही कर दूँ। फिर विचार किया कि मुझे भी तो अपना लेख लिखना है। अब तो मैं भी बदले की कार्रवाई करूँगा और जो-जो लोग मुझे अपना-अपना ज्ञान व्हाट्सएप करते हैं, उन सबको अपने ज्ञान का भी ओवरडोज जरूर दूँगा। हाँ नहीं तो!! इतना सोच कर मैं मुस्कुराया। अब मेरा तनाव धीरे-धीरे दूर होने लगा। फिर यूट्यूब में देशभक्ति वाले पुराने गाने सुनने लगा। फिर कुछ देर बाद तनावमुक्त हुआ तो नींद आने लगी और मैं निंदिया रानी की गोद में चैन से सो गया। ■

सम्पर्कः सेक़्टर -3, एचआईजी - 2 , घर नंबर- 2 , दीनदयाल उपाध्याय नगर, रायपुर- 492010, मोबाइल : 9425212720,  ई मेल - girishpankaj1@gmail।com


2 comments:

  1. वाह, समय पकाऊ लोग.. बहुत बढ़िया कटाक्ष, हर कोई इस बीमारी से त्रस्त है। हार्दिक बधाई 🌷🌷

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  2. Anonymous02 September

    समसामयिक समस्या। हर कोई ग्रस्त है, पर समाधान नहीं । बहुत सुंदर कटाक्ष। सुदर्शन रत्नाकर

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