कुछ ऐसी कशिश है
- प्रीति अग्रवाल ( कैनेडा)
1.
ऐ दोस्त तेरे काँधे में कुछ ऐसी कशिश है
दिखते ही जी चाहे, मैं जी भर के रो लूँ!
2.
तुम तो ऐसे न थे, जो सताते मुझको
पर यादें तुम्हारी,
बड़ी बैरी निकलीं!
3.
हमराज़ चुना है, हमने तुम्हीं को
ये राज़ किसी से कह तो न दोगे?
4.
गुमनामी से अभी तो यारी हुई थी
तुमने वो भी छीनी, मशहूर करके!
5.
आँखों में लाल डोरे,
बोझिल- सा तन है
बीमार नहीं हूँ, बस रोने का मन है।
6.
ऐ टूटते तारे, तेरी खामोशी से याद आया
टूट था मेरा दिल भी,
कुछ तेरी तरह ही!
7.
एक प्यार- भरा दिल,
और वो भी टूटा हुआ,
अब गीत और गज़़लों के काफिले बढ़ेंगें!
8.
क़ुर्बानी सारी, औरत के हिस्से आईं
और शोहरत, 'कुर्बानी के बकरे' ने पाई!!
9.
खुद को समझा सुनार,
और दाता को लुहार
अब देख! सौ सुनार की,
सिर्फ एक लुहार की।
10.
आज़ादी पे कुछ दिन से पाबन्दी क्या लगी है
न चाहकर, परिंदों से, जलन हो रही है।
11.
बुझ चुकी थी आग, धुआँ तक नहीं था
अंगारे मनचले थे, सुलगने की ठानी!
12.
न जाने क्यों मंजि़ल की परवाह नहीं है
हसीं है सफर, हम चले जा रहे हैं!
13.
ऐसा भी नहीं कि बिन तेरे,
मर मिटेंगें
बस जीने की कोई खास,
वजह न रहेगी।
14.
सोचती हूँ, बस हुआ, ये रूठना मनाना
मैं मना मना थकी, तुम रूठके न हारे।
15.
तू जानता है सब, फिर भी बुत बना खड़ा है
नाइंसाफ़ी करने वालों की, फिर ऐसी क्या ख़ता है।
7 comments:
मेरी अनुभूतियों को पत्रिका में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार!!
विरही हृदय की वेदना को स्वर देती भावपूर्ण अनुभूतियाँ।प्रीति जी को बधाई
आभार शिवजी भैया, आपकी सराहना मेरा मनोबल बढ़ाती है!!
सभी अनुभूतियाँ भावपूर्ण,मन को गहरे में छूती हुई जिन्हें पढ़ने को बार-बार मन करता है।बधाई प्रीति जी
आपका बहुत बहुत आभार सुदर्शन दी!!मुझे बहुत खुशी हुई कि आपको पसंद आईं!
बहुत ही सुन्दर भाव हैं प्रीति | हार्दिक बधाई |
सविता जी मनोबल बढ़ाने के लिए धन्यवाद!
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