- डॉ. रत्ना वर्मा
सुबह की
चाय मैं अपने छोटे से गार्डन में बैठकर पीती हूँ। आस- पास आँखों को सुकून देने
वाली हरियाली है, पक्षियों की चहचआहट है। यहाँ गौरैया, मैना, बुलबुल, मुनिया आदि कई प्रकार के पक्षी नज़र आते हैं
जिनके लिए दाना और पानी का सकोरा रखा रहता है । भीड़ भरे शहर से कुछ दूर कालोनी
होने के कारण गाड़ियों की आवाजाही कम है तो शोर और प्रदूषण भी कुछ कम ही है। कुल
मिलाकर एक उम्र के बाद जैसा वातावरण, मानसिक शांति और आराम
चाहिए वह सब पिछले कुछ साल से इस कालोनी में आने के बाद से मिल रहा है। लेकिन फिर
भी चाय के साथ अखबार और मधुर संगीत सुनते हुए जब किसी पड़ोसी की कार, तेज हार्न बजाते हुए बगल से निकलती है तो सुबह- सुबह मन खट्टा हो जाता है।
ऐसा लगता है कि हॉर्न की तीखी आवाज कान के पर्दे फाड़ देगी। काश लोग कॉलोनी के
भीतर धीमी गाड़ी चलाने की आदत डाल लें, तो हार्न बजाने की
जरूरत ही नहीं पड़े।
एक और बात मेरे घर की, बिल्डर्स ने बहुत अच्छे से प्लान
करके कॉलोनी के प्रत्येक घर के सामने खूबसूरत गार्डन बनाया है। उस बगीचे का उपयोग
हम सभी किसी के जन्म दिन की पार्टी या गृह प्रवेश जैसे व्यक्तिगत कार्य के लिए
करते हैं और बाद में जब हम प्लास्टिक के डिस्पोजेबल खाली बॉटल, गिलास, चम्मच आदि वहीं छोड़ देते हैं और जहाँ- तहाँ
अपने घर की गंदगी वहाँ फेंक कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं तो दिल में
एक टीस सी उठती हैं कि हम अपने घर के भीतर थोड़ी सी भी गंदगी बर्दाश्त नहीं कर पाते
फिर क्यों अपने घर के बाहर गार्डन और सड़क की उपेक्षा क्यों करते हैं। अकसर यह
देखा गया है कि हम साफ- सफाई की पूरी जिम्मेदारी नगर निगम पर डाल देते हैं,
और गंदगी देखते ही उन्हें ही कोसने लगते है। कितना अच्छा हो कि आप
कचरा वहीं फेंकिए जहाँ से निगम की गाड़ी आसानी से उठाकर ले जा सके, तो कई मुसीबतों से आप हम बच सकते हैं।
इस व्यक्तिगत अनुभव को
साझा करने का तात्पर्य यही है कि हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ, साफ- सुथरा, हरा- भरा और शोर से मुक्त तभी रख सकते
हैं जब हम इन सबकी शुरूआत अपने घर से, अपने पास- पड़ोस से
करें। हम जब अपने लिए घर बनवाते हैं तो वास्तु का ध्यान रखते हैं कि रसोई किधर हो,
भगवान का कमरा कहाँ हो, पानी की टंकी किस दिशा
में हो आदि आदि... यदि इसके साथ साथ घर के
आस- पास हरियाली कितनी है या पेड़ पौधों के लिए पर्याप्त जगह है या नहीं इसका भी
ध्यान रखें तो कॉलोनी का नक्शा बनाने के पहले लोग आस- पास हरियाली की व्यवस्था
पहले करेंगे। यदि हम अपने घर की मजबूती पर ध्यान देने के साथ- साथ धरती की मजबूती
की ओर भी ध्यान देंगे तो आने वाले भयावह संकट को कम किया जा सकता है। वैसे भी हमने
गगनचुम्बी इमारते बनाकर शहरों को कांक्रीट के जंगल तो पहले ही बना दिए हैं। अब तो
घर तभी बनेगा जब आप वॉटर हॉरवेस्टिंग की व्यवस्था पूरी करेंगे यन्यथा आपका नक्शा
पास ही नहीं होगा। पर क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है? यदि
देश भर के प्रत्येक घर और इन आसमान को
छूती बिल्डिंग में वॉटर हारवेस्टिंग के पुख्ता इंतजाम होते तो प्रति वर्ष पीने के
पानी की कमी इतनी नहीं होती।
गर्मी आते ही पानी के
टेंकर प्रत्येक घर के सामने दिखाई देने लगता है । यदि वॉटर हार्वेस्टिंग की
व्यवस्था गंभीरता से की होती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। तो जाहिर है शुरूआत तो घर
से करनी होगी ना।
तो अब घर से निकल कर
अपने शहर और शहर से निकल कर देश फिर दुनिया की बात की जाए, क्योंकि इसका प्रभाव तो पूरी दुनिया पर पढ़ने वाला है। दुनिया भर को डर
सता रहा है कि अगर धरती का तापमान 1.5 से 2 डिग्री तक बढ़ा तो जीना असंभव हो
जाएगा। मगर विशेषज्ञ कहते हैं कि तापमान तो 2 डिग्री से ज्यादा बढ़ चुका है। और
इसका सबूत है कि सूरज से धरती पर प्रति वर्ग मीटर 2 वॉट एनर्जी बरस रही है। 10 साल
पहले मार्च- अप्रैल में हिमालय पर जहाँ बर्फ होती थी, वह भी
तेजी से पिघल रही हैं। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी कई गुना बढ़ेगा, और बेतहाशा गर्मी बढ़ेगी। ऐसे में अब ये जरूरी हो गया है कि धरती को ठंडा
रखें और छाया दें । धरती ठंडी तभी रहेगी जब हम धरती में पानी के स्रोत बढ़ाएँगे।
तो सबसे पहले भरपूर पेड़- पौधे लगाकर धरती को छाया देना जरूरी है। जो पेड़ों से ही
संभव है। पेड़ लगेंगे तो न सूखा होगा न बाढ़ आयेगी न धरती इतनी गरम होगी।
बरस पे बरस बीत गए पर्यावरणविद् चेतावनी देते रह गए कि चेत जाइए , धरती को बचा लीजिए , हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने से विनााशकारी असर होना तय है। हमने तो गलतियाँ कर लीं हैं पर आगे यह गलती युवा पीढ़ी न दोहराए उसके लिए जमीन तो तैयार करनी होगी ना। तो आइए पर्यावरण की रक्षा करना घर से शुरू करें। धरती को गरम होने से बचाएँ।
15 comments:
अत्यंत उत्कृष्ट आलेख... मानव जाति हृदयहीन है.... यह मैं मानती हूँ 🙏🌹
आपकी चिंता वाजिब है। सफ़ाई कोई एक व्यक्ति या संस्था नहीं कर सकती।सभी को मिलकर करना होता है।
आदरणीया,
अद्भुत सोच। प्रगति और पर्यावरण एक दूसरे के समानुपाति हैं, विलोमानुपाति नहीं, लेकिन पर्यावरण को परे रख प्रगति की अंधी दौड़ में इंसान हैवान हो गया। भूल ही गया कि उसने इसे आगत पीढ़ी से उधार लिया है। कलियुग के कालिदास, कर रहे प्रकृति का विनाश।
- इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
- ये आख़िरी दरख़्त बहुत याद आएगा 🌳
एक बहुत सामयिक विषय पर जन जागरण के संदेश हेतु हार्दिक बधाई। सादर
मार्मिक और सामयिक चिंतन। निश्चित रूप से इसके लिए पहल घर से होनी चाहिए लेकिन घर की गंदगी कालोनी में कहीं फेंकने के बजाय सीधे निगम की कचरा गाड़ी में डालें। घर को भी साफ रखें और कालोनी तथा अपने नगर को भी साफ रखें। प्रेरणादायक संदेश के लिए बधाई और साधुवाद।
पर्यावरण दिवस पर आपका लेख बहुत ही सामयिक है। आशा है यह कई पाठकों को प्रेरित करेगा।
शुक्रिया अनिमा जी 🙏 यही बदलाव तो लाना है हम सबको...
बिल्कुल सही कह रहीं हैं आप निर्देश जी l हम सबको मिलकर इस चिंता को दूर करना है l
शुक्रिया जोशी जी l आप बिल्कुल सही कह रहे हैं l हमने जितना बिगाड़ना था अपने पर्यावरण को बिगाड़ लिया है, अब आने वाली पीढ़ी यह बात समझ ले यही प्रयास करना है l
बहुत सुंदर सोच लिए सामयिक आलेख। हार्दिक बधाई रत्ना जी।
औद्योगिक विकास के अंधानुकरण में स्वयं ही अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मारी हैऔर यदि हम अब भी न चेते तो आने वाला कल हमें कभी क्षमा नहीं करेगा। पर्यावरण में सुधार हेतु व्यक्तिगत रूप से स्वयं से ही शुरू करना होगा। किसी आदेश की प्रतीक्षा क्यों? सुदर्शन रत्नाकर
आपका धन्यवाद और आभार अश्विनी जी l आपका कहना बिल्कुल सही है लोग जिस दिन यह बात समझ लेंगे उस दिन हमारा शहर साफ सुथरा हो जाएगा l हाँ तब नगर निगम को भी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी होगी l
आपने मेरे विचारों को सराहा इसके लिए आपका हार्दिक आभार और धन्यावाद जोशी जी
हार्दिक आभार और धन्यावाद l आपका कथन सौ प्रतिशत सत्य है सुदर्शन जी l अब भी न चेते तो बहुत देर हो जाएगी l
बहुत सुंदर,कितनी सहजता से आपने इस गंभीर मुद्दे को उठाया है
सुंदर आलेख पर लोग जब समझना ही न चाहें तो?उन्हें समझना होगा,जागरूक होना होगा।
बहुत संजीदा बात ! पर्यावरण के प्रति सचेत हर व्यक्ति को इसे बचाने की मुहिम जन जन तक पहुंचानी चाहिए ! हां पर तसल्ली है कि आप जैसे कुछ लोग तो जागरूक हैं !
Post a Comment