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Apr 1, 2023

पर्यावरणः सुधर रही है गंगा की सेहत

  -  प्रमोद भार्गव

‘नमामि गंगे’ परियोजना की सरहाना संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम (सीओपी 15) के दौरान एक रिपोर्ट में की गई। यह सम्मेलन कनाडा में संयुक्त राष्ट्र का पन्द्रहवाँ जैव विविधता सम्मेलन है। यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि गंगा केवल एक पानी की नदी भर नहीं है, बल्कि उसके किनारों पर 52 करोड़ लोग रहते हैं, भारत की कुल जीडीपी का 40 प्रतिशत हिस्सा इसी गंगा के पानी से उपजने वाली फसल और पर्यटन से चलती हैस;  क्योंकि गंगा के किनारे बसे प्रत्येक प्रमुख शहर से भारतीय संस्कृति की एक ऐसी कहानी जुड़ी हुई है, जो सनातन संस्कृति और धर्म को मूल्यवान बनाती है। वाराणसी का अभूतपूर्व कायाकल्प हो जाने से इस धर्मनगरी का महत्व विश्व पर्यटन में स्वीकार हुआ है, नतीजतन यहाँ देश के साथ-साथ दुनिया से आने वाले पर्यटकों की उम्मीद से कहीं ज्यादा संख्या बढ़ी है। जैव विविधता की दृष्टि से भी इस जीवनदायी नदी की सफाई जरूरी थी, जिससे 52 करोड़ लोग नीरोग रहते हुए जीवन-यापन कर सकें। 

संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन में जारी हुई रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक 2,525 किमी की लंबाई में बहने वाली इस नदी को जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण और औद्योगिकरण से बड़ा नुकसान हुआ है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘नमामि गंगे’ परियोजना ने नदी के 1500 किमी के हिस्से को प्रदूषण मुक्त कर इसे पूनर्जीवित किया है। इस क्षेत्र में नदी के जलग्रहण क्षेत्र की सफाई के साथ-साथ इसके किनारों पर तीस हजार एकड़ में नए वन लगाने के साथ, पुराने जंगल का भी उचित संरक्षण किया गया। ऐसा यूएन का अनुमान है कि यदि इस जंगल की बहाली नहीं होती तो 2030 तक 25 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ती, जो इस क्षेत्र की आबादी, जल-जीवों और पशु-पक्षियों के लिए बड़े संकट का सबब बन सकती थी। लेकिन  कॉर्बन उत्सर्जन की मात्रा अब निरंतर घट रही है। इस परियोजना के लक्ष्यों में वन्यजीव प्रजातियों का संरक्षण एवं उन्हें पुनर्जीवित करना भी था। इनमें डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुए, ऊदबिलाव और हिल्सा मछली मिल हैं। पर्यावरण सुधरेगा तो अन्य पशु-पक्षियों को भी जीवनदान मिलेगा। इसीलिए इसे संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के दस प्रमुख प्रयासों में से एक माना है।

केंद्र सरकार की इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण योजना के अंतर्गत गंगा में गिरने वाले जल को रोकने के साथ-साथ इसके दोनों किनारों पर वन क्षेत्र विकसित करने का अभियान अभी भी चल रहा है। हालांकि यह परियोजना करीब 35 साल पहले गंगा कार्ययोजना के रूप में शुरू हुई थी। तबसे इस पर सैंकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए हैं। नरेंद्र मोदी ने गंगा की चिंता वाराणसी से 1914 में लोकसभा का प्रत्याशी बनने के साथ जताई थी। इसीलिए उन्होंने सत्तारूढ़ होने के बाद इस परियोजना को नमामि गंगे नाम देते हुए इसकी सफाई के लिए एक अलग मंत्रालय भी बना दिया। इसके बाद ही इसके कारगर परिणाम देखने में आए हैं। इसके किनारों पर जो हरित पट्टी विकसित की गई है। उससे न केवल इन इलाकों की खेती की सेहत सुधरेगी, बल्कि मनुष्य और दुधारू पशुओं की भी सेहत सुधरेगी। लोगों को पीने के लिए भी स्वच्छ जल मिलेगा।      

केंद्र के वित्त पोषण से शुरू हुई इस योजना से भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आजीविका की जीवन रेखा कहलाने वाली गंगा का न केवल कायाकल्प हो रहा है, बल्कि इसका सनातन स्वरूप भी बहाल हो रहा है। वाराणसी का कायाकल्प इसका साक्षात उदाहरण है। अब तक गंगोत्री से गंगासागर तक के सफर में गंगा जल को औद्योगिक हितों के लिए निचोड़कर प्रदूषित करने में चमड़ा, चीनी, रसायन, शराब और जल विद्युत परियोजनाएँ सहभागी बन रही थीं। इनमें से अनेक को या तो बंद कर दिया गया है या फिर दूषित जल के शुद्धिकरण के संयंत्र स्थापित करा दिए गए हैं। 

गंगा सफाई की पहली बड़ी पहल राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में हुई थी, लेकिन गंगा नाममात्र भी शुद्ध नहीं हुई। इसके बाद गंगा को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति के लिए संप्रग सरकार ने इसे राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए, गंगा बेसिन प्राधिकरण का गठन किया, लेकिन हालत जस के तस रहे। भ्रष्टाचार, अनियमितता, अमल में शिथिलता और जवाबदेही की कमी ने इन योजनाओं को दीमक की तरह चट कर दिया। भाजपा ने गंगा को 2014 के आम चुनाव में चुनावी मुद्दा तो बनाया ही, वाराणसी घोषणा-पत्र में भी इसकी अहमियत को रेखांकित किया। सरकार बनने पर कद्दावर, तेजतर्रार और संकल्प की धनी उमा भारती को गंगा मंत्रालय का प्रभार देकर इसके जीर्णोद्वार का भगीरथी दायित्व सौंपा गया। जापान के नदी सरंक्षण से जुड़े विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया गया। 

‘नमामि गंगे’ की शुरूआत गंगा किनारे वाले पाँच राज्यों में 231 परियोजनाओं की आधारशिला, सरकार ने 1500 करोड़ के बजट प्रावधान के साथ 104 स्थानों पर 2016 में रखी थी। इतनी बड़ी परियोजना इससे पहले देश या दुनिया में कहीं शुरू हुई हो, इसकी जानकारी मिलना असंभव है। इनमें उत्तराखंड में 47, उत्तर-प्रदेश 112, बिहार में 26, झारखंड में 19 और पश्चिम बंगाल में 20 परियोजनाएँ आरंभ हुई जिनके परिणाम संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में सामने आए हैं।  हरियाणा व दिल्ली में भी 7 योजनाएँ गंगा की सहायक नदियों पर भी शुरू हुई हैं। अभियान में शामिल परियोजनाओं को सरसरी निगाह से दो भागों में बांट सकते हैं। पहली, गंगा को प्रदूषण मुक्त करने व बचाने की। दूसरी गंगा से जुड़े विकास कार्यों की। गंगा को प्रदूषित करने के कारणों में मुख्य रूप से जल-मल और औद्योगिक ठोस व तरल अपशिष्टों को गिराया जाना था। अब जल-मल से छुटकारे के लिए अधिकतम क्षमता वाले जगह-जगह सीवेज संयंत्र लगाए गए हैं। गंगा के किनारे आबाद 400 ग्रामों में ‘गंगा-ग्राम’ नाम से उत्तम प्रबंधन योजना शुरू हुई हैं। इन सभी गाँवों में गड्ढे युक्त शौचालय बनाए गए हैं। सभी ग्रामों के शमशान घाटों पर ऐसी व्यवस्था को अंजाम दिया गया है, जिससे जले या अधजले शवों को गंगा में बहाने से छुटकारा मिले। शमशान घाटों की मरम्मत के साथ उनका अधुनीकीकरण हुआ है। अनेक विद्युत शवदाह गृह बनाए गए हैं, जिससे लकड़ी-कंडों का उपयोग न्यूनतम हो गया है। साफ है, ये उपाय संभव होने से ही गंगा सफाई अभियान को यूएन ने सराहा है। 

 विकास कार्यों की दृष्टि से ग्रामों में 30,000 हेक्टेयर भूमि पर पेड़-पौधे लगाए जाने हैं। जिससे उद्योगों से उत्सर्जित होने वाले कॉर्बन का शेषण कर वायु शुद्ध होती रहे। ये पेड़ गंगा किनारे की भूमि की नमी बनाए रखने का काम भी कर रहे हैं। गंगा किनारे आठ जैव विविधता संरक्षण केंद्र भी विकसित किए गए हैं। वाराणसी से हल्दिया के बीच 1620 किमी के गंगा जल मार्ग में बड़े-छोटे सवारी व मालवाहक जहाज चलाने की असंभव परिकल्पना की गई थी, जिस पर अमल हो गया है और अब इस बीच मालवाहक जहाज चलने लगे हैं। इस हेतु गंगा के तटों पर बंदरगाह भी बनाए गए हैं। इस नजर से देखें तो नमामि गंगे परियोजना केवल प्रदूषण मुक्ति का अभियान मात्र न होकर विकास व रोजगार का भी एक बड़ा पर्याय बना है। 

सम्पर्कः शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224, 09981061100


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