तीन गीत:
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बादल... - डॉ. सरस्वती माथुर |
1. मृगछौने बादल!
घटा के मृगछौने
तैरें नभ के
कोने- कोने
दिवस प्यासे
धूप बीड़ी पी
खर्र- खर्र खांसे
भौंचक देखें
नयन -सलोने
निगोड़े बादल
गहराते जाएँ
हवा के आँचल
लहरा के गाए
बूँदों के भर दोने
मन भरमाएँ
मिल दामिनी संग
करें जादू- टोने
2. बादल
गमुआरे!
मेघ सलोने
हवा झकोरे
शोर मचाते
जल सिकोरे
भर- भर जाते
आ चौबारे
हरी धरा को
फिर चूनर ओढ़ाते
बादल गमुआरे
मन चौरे
ला
बूँदों के झारे
बन पाहुन
नदी धारे बरसाते
नभ –मुँडेर पे
इन्द्रधनुष के
फूल खिल जाते
3. धरती मुस्कराए!
वर्षा
की बूँदें
चंचल चपला -सी
नभ में नाचे
मधुर यादें
दामिनी-सी
चमक
रार मचाए
कोयल डाली पर
मल्हार गाए
हरी चूड़ियाँ डाल
प्रकृति झूमे
सावन मौसम में
मेघ पहने
सावन की पायल
मोर नचाए
श्यामल मौसम में
धरती मुस्कराए !
Labels: गीत, डॉ. सरस्वती माथुर
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