पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
शब्द व्याकरण आधारित
गणित नहीं, अपितु अंतस में उपजे भावों की अभिव्यक्ति का
साधन हैं जो शब्द विन्यास से भले ही परिपूर्ण न हों पर अंतर्मन को कागज पर उकेर
पाने का सरल संसाधन है। इसीलिए तो कहा भी गया है: वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।
नारद तो विश्व विख्यात
अलौकिक आलोचक हैं। एक बार जब वाल्मीकि ने स्वलिखित रामायण पूरी कर उन्हें अवलोकन
हेतु प्रस्तुत की तो वे कतई प्रभावित न हुए और अपनी चिर परिचित व्यंग्य विधा में
कहा- अच्छी तो है’ पर हनुमान लिखित रामायण अधिक अच्छी है।
अरे हनुमान ने भी लिखी
है - वाल्मीकि अचरज से बोले तथा हनुमान की खोज में निकल पड़े। और जब कदली वन में
उनसे भेंट हुई तो देखने को मिली केले के चौड़े पत्तों पर उकेरी गई उनके द्वारा
लिखित रामायण। गौर से पढ़ा तो पाया कि यह तो व्याकरण, शब्दावली,
मीटर तथा माधुर्य चारों कसौटी पर न केवल श्रेष्ठ वरन सर्वोत्तम है।
वाल्मीकि उदास हो गए। उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली।
हनुमान ने जब यह
मार्मिक दृश्य देखा तो अपनी रामायण को यह कहते हुए नदी में प्रवाहित कर दिया- अब
मेरी रामायण कोई नहीं पढ़ पायेगा।
वाल्मीकि अचंभित हो गए
और पूछा- ऐसा क्यों किया।
हनुमान बोले - मुझसे
अधिक तो समाज को आपकी रामायण की आवश्यकता है ताकि संसार वाल्मीकि के भक्ति मार्ग
पर पुनर्जन्म के प्रसंग को समझ सके। और यह कहते हुए अपनी बात जारी रखी- आपने
रामायण इसलिये लिखी ताकि संसार आपके माध्यम से राम को जान सके और मैंने इसलिये
ताकि मुझे राम याद रहें।
बात स्पष्ट थी कि
हनुमान की रामायण स्नेह की उपज थी और वाल्मीकि की भक्ति भाव से सराबोर। वाल्मीकि
ने भी उसी पल अनुभव किया - राम से बड़ा तो राम का नाम है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।
मंतव्य यह है कि जीवन
में हर कोई प्रसिद्धि चाहता है। सामाजिक मान्यता की अभिलाषा रखता है। पर फल की
चाहत से रहित निष्काम कर्म का फल सकाम कर्म से कई गुना ऊपर होता है।
बात का सार कुल मिलाकर
केवल यह है कि हनुमान जैसे लोग प्रसिद्धि की चाह से सर्वथा परे अपना कर्म समर्पित
भाव से करते हुए उद्देश्य प्राप्ति तक निर्मल मन से संलग्न रहते हैं। देखिये हमारे
अपने जीवन में भी हमारे आस पास कितने ही प्रचार कामना रहित (unsung)
साथी हैं जैसे हमारा परिवार, पति, पत्नी, बच्चे, मित्र, नाते रिश्तेदार, साथी इत्यादि। हमें इन सबका आभारी
होना चाहिये जिनके योगदान से हमारा जीवन संवरा है। जिस दिन यह सत्य तथा तथ्य हमारी
समझ में आ जाएगा उसी पल से हमारी जीवन में सार्थक यात्रा का श्रीगणेश भी हो जाएगा।
दौर- ए- गर्दिश में भी जीने का मज़ा देते हैं,
चंद अपने हैं जो वीरानों में भी महफ़िल सजा देते हैं।
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सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com
46 comments:
आपने एक अति महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाला है। अनेक ऐसे लोग हैं जो हमारे लिए काम करते हैं। लेकिन हम उनकी सेवा का जिक्र तो दूर, उनकी ओर ध्यान भी नहीं देते हैं। वे भले ही हनुमान जी जैसे निस्पृह न हों, लेकिन निष्काम कर्म तो करते ही हैं। आशा है आपका लेख लोगों को इस ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करेगा। साधुवाद।
अच्छे उदाहरण के साथ स्नेह और भक्ति की व्याख्या की है!
अति सुन्दर लेख. हृदय को छूने वाला.
स्वयं राम के सम्बन्ध में भी यही बात है। तुलसीदास जी कहते हैं "रहति न प्रभु चित चूक किए की। करति सुरति सय बार हिये की।"
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रसंग। साधुवाद।
अप्रतीम व संशिप्त शब्दो में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय के बारे में लेख लिखा गया है। जोशी साहेब उर्फ पिताश्री को धन्यवाद व सादर चरण स्पर्श
आदरणीय, ये unsung हीरो ही तो हमारे जीवन को संवारते और सजाते है। हर बार तरह इस बार भी आपने मेरे मनोबल में अभिवृद्धि की है। दो हार्दिक आभार। सादर
भाई राजीव, हार्दिक आभार।
प्रिय हेमंत, सादर साभार। हार्दिक आभार
हनुमान जी द्वारा वाल्मीकि रामायण की व्याख्या एवम उत्साहबर्धक की भूमिका उनको इस चौपाई से सार्थक करती है, "विद्यायावन गुनी अति चातुर राम काज करिये को आतुर।" आप के लेख और शब्द की परिभाषा ने मुझे निशब्द कर दिया। आगे भी आपकी लेखनी के माध्यम से सीखने को बहुत कुछ मिलेगा। दवे।
आदरणीय गुप्ताजी,
आप तो बहुत विद्वान हैं। कई नये संदर्भ आप से ही मिले। सो हार्दिक आभार सहित। सादर
प्रिय बंधु, हार्दिक आभार
हार्दिक आभार मित्र
परम आदरणीय,
सत्य तो यह है कि आपके आलेख मुझे लिखने की प्रेरणा और सामग्री दोनो ही देते रहते हैं। तथापि आपने मान दिया यह आपकी उदारता है।
सादर आभार।
अद्भुत हम अपने आसपास के नायकों को पहचान ही नही पाते जबकि जिन्दगी उन्ही के कारण गुलजार होती है
प्रसिद्धि की चाह के बिना समाज और देश की सेवा करने वाले लोग हमेशा से आम जनमानस के हृदय में रहकर चिरंजीवी हो गए
सर,
भक्ति और स्नेह को सरलता से समझाने के लिए धन्यवाद🙏
प्रिय महेश, हार्दिक धन्यवाद। सस्नेह
प्रिय बंधु अनिल, बिल्कुल सही कहा। हार्दिक धन्यवाद।
आ. गुप्ताजी, यह विचार आपके बड़प्पन को दर्शाता है। सादर
हार्दिक आभार मित्र
धन्यवाद सर
इतने सरल तो बजरंगबली ही हो सकते हैं !
आज सरलता मिलना ही कठिन है
कठिन लोग तो हर तरफ मिल जाते हैं
आदरणीय सर,
अति सुंदर लेख । वास्तव में हमे अपने हनुमान जी जैसे लोगो की पहचान होनी चाहिए और कद्र होनी चाहिए क्योंकि यही वो नींव के पत्थर है जो दिखते नही हैं लेकिन हमारे खड़े होने में इन्ही का सर्वाधिक योगदान होता है ।
🙏
प्रिय विजेंद्र, सही कहा। ऐसे तो हनुमान और एकमात्र केवल हनुमानजी ही हैं इतिहास में। सस्नेह
प्रिय शरद, शाश्वत सत्य। जिस व्यक्ति या संस्था ने हनुमान सदृश्य व्यक्तित्वों की कद्र व सम्मान किया केवल वे ही वास्तविक अर्थों में सफल हो सके हैं। सस्नेह
Respected Sir,
Thanks for sharing an awesome story in a very concise manner, differentiating clearly between love and worship, as well as importance/role of critics in life.
अति अति उत्तम सच में मुझे हनुमान द्वारा लिखी गई रामचरितमानस की जानकारी बिल्कुल नहीं थी यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आज मुझे इसके बारे में जानकारी प्राप्त हुई और सबसे बड़ी बात जो हमने सीखी वह है है हनुमान की निस्वार्थ भक्ति
ना सिर्फ परिवार में अपितु संस्थानों में भी कई हनुमान होते हैं जो निस्वार्थ अपने कार्य को पूरा करते रहते हैं और ऐसे ही हनुमानों के योगदान से संस्थान ऊंचाइयों को प्राप्त करते हैं
धन्यवाद सर
किशोर भाई,
पूरी रामायण हनुमान योगदान आधारित है। इसी तर्ज पर संस्था में भी ऐसे ही निष्कामकर्मी उसकी सफलता के मूल में होते हैं। यह बात दीगर है कि राग दरबारी सफलता का सेहरा अपने सिर बांध फसल का अपहरण कर लेते हैं। पर अंततः इतिहास केवल हनुमानी व्यक्तित्वों को समर्पित होता है। आपकी पसंदगी मेरा सौभाग्य। हार्दिक आभार सहित। सादर
Thanks Dear Sorabh, selfless sincere contribution is supreme. Lust kills our personality. I'm happy You liked it. So nice.
,🙏🙏🙏🙏
बहुत ही प्रासंगिक लेख है आदरणीय सर.. लेकिन इस जग में हनुमान जैसे लोग विरले हैं.. हनुमान जी का चरित्र तो सर्वथा अनुकरणीय हैं पर ना यह त्रेतायुग है ना ही हनुमान की कद्र करने वाले राम है🙏🏼 आज के इस कलयुग में लोग एक दूसरे की रचना चुराने में माहिर हो गए हैं..उसकी किताब सफल ना हो यह सोचने में लगे हैं.... उससे पहले इसी विषय पर मेरी किताब आ जाए.. ऐसी मानसिकता है 🙏🏼 यह आदर्श व्यक्तित्व के लिए आदर्श चरित्र हैं
समाज में स्वार्थ रहित योगदान आपका सर्वविदित है सर.. आप स्वयं एक उदाहरण हैं 🙏🏼
लेख हेतु बधाई सर.. 💐💐
बहुत ही प्रासंगिक लेख है आदरणीय सर.. लेकिन इस जग में हनुमान जैसे लोग विरले हैं.. हनुमान जी का चरित्र तो सर्वथा अनुकरणीय हैं पर ना यह त्रेतायुग है ना ही हनुमान की कद्र करने वाले राम है🙏🏼 आज के इस कलयुग में लोग एक दूसरे की रचना चुराने में माहिर हो गए हैं..उसकी किताब सफल ना हो यह सोचने में लगे हैं.... उससे पहले इसी विषय पर मेरी किताब आ जाए.. ऐसी मानसिकता है.. ऐसे में रामायण लिख कर समुद्र में बहाना कल्पना से परे की बात हो जाती है🙏🏼 हनुमान जी आदर्श व्यक्तित्व के लिए आदर्श चरित्र हैं
समाज में स्वार्थ रहित योगदान आपका सर्वविदित है सर.. आप स्वयं एक उदाहरण हैं सर 🙏🏼
लेख हेतु बधाई सर.. 💐💐
यह आदि काल से चला आरहा है। भारत का स्वतन्त्रता संगाम हो या युद्ध ।अनगिनित लोगो का योगदान कोई याद नही करताभढढ
प्रिय रजनीकांत,
बात तो सही कही है। पर ये भी तो सत्य है कि भलो भलाई पर लहहि। हर एक अपने कार्य कलाप के लिये उत्तरदायी है। आवश्यकता तो विवेक के सदुपयोग की है। फिर हम क्यों हतोत्साहित हों।
- कबीरा तेरी कोठरी गलकटियों के पास
- जो करेगा सो भरेगा तू क्यों भया उदास
तुम्हारा स्नेह अनुराग मेरे लिये अच्छा सोचता है, पर करवाने वाला तो कोई और है।
आभार सहित सस्नेह
आभार मित्र। सादर
ये भी सही है.. हम सुधरेंगे युग सुधरेगा 🙏🏼😊
धन्यवाद सर
वाल्मीकि, हनुमान जी जैसे महात्माओं के साथ मित्र परिजनो का भी व्यक्ति के जीवन में योगदान को अपने रेखांकित किया है। व्यापक अर्थों में समाज के हर छोटे बड़े व्यक्ति भी पूरे मानव समाज के निरंतर विकास में सहभागी होते हैं। इस आलेख में आपने यह नया दृष्टिकोन दिया है जो सराहनीय है।
आदरणीय कासलीवाल जी,
दोनों निष्कामकर्मी थे सो आज भी जीवंत हैं। स्वार्थरहित कर्म सदा कायम रहते हैं। हार्दिक आभार सहित सादर
मर्म समझा, अभिव्यक्ति आसान शब्दों में है, सन्देश साफ है, सीख उपयोगी है, जय (वि) जय जोश ( जी)
सर बहुत ही सुंदर लेख
प्रिय डॉ. श्रीकृष्ण अग्रवाल, वाह क्या सुंदर compliment दिया आपने आगे के लिये। How is the Josh : High Janab। हार्दिक आभार
हार्दिक आभार मित्र
बहुत ही सुंदर रचना
अशोक भाई,
आलेख आपको पसंद आया. मेरा सौभाग्य. वैसे भी आपकी सादगी, सरलता व विद्वत्ता मन को छूती है.
एक बार फिर से प्रयास करें.
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Learnig new things is life
हार्दिक आभार सहित सादर
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