साँवरी घटा
- कृष्णा वर्मा
साँवरिया बदरा घिरे
नाची तडि़ता हूर
साज बजाया बूँदों ने
सड़क बनी संतूर।
घाटी सर पर दौड़ते
कजरारे पुरज़ोर
हवा बजाए सीटियाँ
घटा मचाए शोर
नदिया की गुल्लक भरी
मिला मेह अनुदान
किलकारी कानन भरें
पर्वत गाएँ गान।
राँझे जोगी हो गए
हुई नटी-
सी हीर
प्रेम कसक बौरा गई
बेबस हिय की पीर।
पीतपात –सी
याद के
सब्ज़ हुए फिर पात
सुलग-सुलग कुछ कह रहे
मन में सीले ख़्वाब।
आँखें जुगनू-
सी बनीं
पथ पे करें उजास
पी से मिलने की ललक
बड़ी तड़पती प्यास।
मेघ करे अठखेलियाँ
छिटके तिरछा मेह
तेरी सुधियों में जले
नम पलकों की देह।
छपक-छपक के नाद में
लेती याद हिलोर
आँखों के चलचित्र में
देखूँ पी चितचोर।
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