-डॉ. रत्ना वर्मा
संस्कृति किसी भी मानव सभ्यता की
पहचान होती है, उसकी अमूल्य निधि होती है।
जाहिर है यदि मनुष्य को बेहतर सांस्कृतिक पर्यावरण नहीं मिलेगा, तो वह एक अच्छा इंसान नहीं बन पाएगा।
जिस प्रकार मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए शुद्ध हवा पानी और स्वच्छ
वातारवरण चाहिए बिल्कुल उसी तरह संस्कृति एक ऐसा पर्यावरण है जिसके बीच रहकर मानव
एक सामाजिक प्राणी बनता है।
संस्कृति को लेकर उपरोक्त भूमिका
बांधने के पीछे मेरा आशय विश्व की सबसे प्राचीनतम भारतीय संस्कृति पर चर्चा करना
नहीं है,
बल्कि इन दिनों देश भर में लाल बत्ती संस्कृति को लेकर हो रही चर्चा
के बारे में है। केन्द्र सरकार ने वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने के उद्देश्य से
मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों की गाड़ियों पर लाल बत्ती लगाने की व्यवस्था को एक
मई 2017 से समाप्त दिया है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी थी कि लाल बत्ती वाले
वाहनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार को उचित कदम उठाना चाहिए। उस समय सुनवाई
कर रहे जज जीएससिंघवी और जस्टिस सी नगप्पन ने सुनवाई के दौरान सबसे पहले अपनी
गाड़ी से लाल बत्ती हटा दी थी। तब कोर्ट की इस सलाह पर सरकार ने कोई निर्णय नहीं
लिया था।
कुछ देर से ही सही परंतु अब केन्द्र
सरकार के इस फैसले के बाद कोई मंत्री या वरिष्ठ अधिकारी लाल बत्ती का उपयोग नहीं
कर सकेगा। सरकार का यह फैसला देश से पूरी
तरह से वीआईपी और वीवीआईपी संस्कृति को खत्म करने के लिए चलाया गया कदम है। इस
ऐतिहासिक फैसले के पीछे जो प्रमुख कारण बताए गए हैं उसमें लाल बत्ती लगे वाहनों के
गुजरने से आम रास्तों का बंद किया जाना है, जिसके
चलते आम लोगों को आने जाने में होने वाली परेशानी है। बंद रास्तों के दौरान बीमार
लोगों को अस्पताल पहुँचाने में देरी और रुके मार्ग के कारण गम्भीर रूप से बीमार
लोगों के मरने तक की खबरें सामने आती रही हैं।
फैसले के बाद अब लाल बत्ती वाली गाडिय़ों का
उपयोग सिर्फ देश के पाँच वीवीआईपी के लिए होगा। राष्ट्रपति,
उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और लोकसभा स्पीकर। सिर्फ आपातकालीन
वाहनों एम्बुलेंस, पुलिस और अग्निशामक वाहनों पर नीली बत्ती
का उपयोग किया जा सकेगा।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7wKJqTP8QmEAd2HP5Yr6I7EUsHibVF2AmTT8_aw5jNZUeBmLiel1P-Ymq9VA-SnwL36CtaEy5AAFKN9N9mgc4XFz9auZRGYPHqf3-lerLAOPg5NURNQe-H1wQWcNSAxyiduIcRbm9U-g/s200/red-baecon-vip-2.jpg)
किसी बड़े,
सम्मानित, ज्ञानी, देश
का गौरव कहलाने वाले व्यक्ति का सम्मान करना हमारी संस्कृति है, और उनके लिए हर भारतीय पलकें बिछाने को भी तैयार रहता है, परंतु उन्हीं के द्वारा एक चुना हुआ प्रतिनिधि या उन्हीं की सेवा के लिए
नियुक्त एक अधिकारी अपनी गाड़ी में लाल बत्ती लगा कर अपने लिए मार्ग छोड़ने को कहते
हुए शान से यूँ गुजरता है, मानों जनता उनके रहमो-करम पर जीती
है । इस परिस्थिति में एक लोकतांत्रिक देश में ऐसे प्रतिनिधियों ऐसे प्रशासनिक
अधिकारियों के लिए सम्मान से नहीं ; बल्कि मजबूरी में उनके
लिए रास्ता बनाता है। किसी वीवीआईपी के आने से शहर के विभिन्न मार्गों में जब
बैरीकेट लगा कर मार्ग अवरुद्ध किया जाता है और तब आम जनता इस गली से उस गली भटकती
रहती है और उसके बाद भी अपने निर्धारित स्थान तक नहीं पहुँच पाती , तो वह वीवीआईपी के आने पर कभी खुश नहीं होता; उल्टे
नाराज होता हुआ उन्हें गाली ही देता है।
अब देखना ये है कि सरकार के इस लाल बत्ती हटाने
के फैसले के बाद खुद को वीआईपी कहने वाले लोग अपनी सोच में भी बदलाव ला पाएँगे या
लालबत्ती की जगह एक और नई संस्कृति चला देंगे। हम अब तक तो यही देखते आ रहे हैं कि
इस देश में राजनैतिक पार्टी की सदस्यता पाते ही हर छोटा-बड़ा नेता अपने आपको
वीआईपी समझने लगता है। यही नहीं पद के हटने के बाद भी अपनी गाड़ियों में पूर्व
सांसद,
पूर्व विधायक पूर्व जिला अध्यक्ष के नेमप्लेट का तमगा लगाए बहुत से
नेता घूमते नज़र आते हैं। जब बिना सुविधा के ही लोग यहाँ फायदा उठाते नज़र आते है तो
ऐसे में बाकी मिलने वाली बेवजह की वीआईपी सुविधाओं के लिए तो वे एड़ी- चोटी का जोर लगाएँगे ही। एक बार विधायक बन जाओ एक बार सांसद बन जाओ और
जिंदगी भर मिलने वाली सुविधाओं का लाभ उठाओ।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEht5iL4CWNIDzuZeGKNwA1I-QYxTpqjIGI8vy4c7hZABG_nbOZs08XS3wHYR4HegJaTzVXIatHTtgqktxqusATy76TvbvsVGJEvvNVN8_Tyg1-TGB4N5p8gxbl7wRfdt35P2NsndZ9v6QE/s200/red-baecon-vip-edt.jpg)
लालबत्ती गाड़ी पर प्रतिबंध लगाकर
एक शुरूआत तो हो गई है; पर अभी और भी बहुत
सारी वीआईपी संस्कृति का चलन बाकी है; जिन पर प्रतिबंध लगाया
जाना जरूरी है। कैबिनेट में फैसला लेने के
बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा तो है कि सभी भारतीय स्पेशल
और सभी वीआईपी है। ऐसे में अपने कथन के अनुसार या तो वे उपर्युक्त सभी सुविधाएँ आम
जनता को भी उपलब्ध कराएँ या फिर ये सब विशेष सुविधा तुरंत बंद करें। जनता ने जिस
उम्मीद और काम के लिए उन्हें कुर्सी पर बिठाया है, वे वही
काम करें और लोगों के दिलों में वीआईपी का दर्जा पाएँ। तभी भारत सही में
लोकतांत्रिक भारतीय संस्कृति के रूप में पहचाना जाएगा, अन्यथा
आने वाली पीढ़ी सिर्फ इतिहास की पुस्तकों में भारतीय संस्कृति की प्राचीनता के
बारे में ही पढ़ती रह जाएगी और वर्तमान संस्कृति में वह भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, जालसाजी,
घूसखोरी, करचोरी जैसी बातें ही पढ़ेगी।
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