- लोकेन्द्र सिंह
मितावली का यह चौसठ योगिनी शिवमंदिर मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
यहां तक पहुँचने के लिए सिंगललेन सड़क है, कई जगह जिसकी हालत
खराब है। यहाँ तक पहुँचने में पर्यटकों को थोड़ी मुश्किल का सामना जरूर करना पड़ता
है;लेकिन यहाँ आने के बाद उन्हें महसूस होगा कि यदि वे इस मंदिर को न देखते तो
देखने के लिए बहुत कुछ छूट जाता। नौवीं सदी में शिवमंदिर का निर्माण तत्कालीन
प्रतिहार राजवंश ने कराया था। मंदिर गोलाकार है, ठीक भारतीय
संसद के भवन की तरह। मंदिर की गोलाई में चौसठ कमरे हैं। प्रत्येक कमरे में एक-एक
शिवलिंग है। कभी इन कमरों में भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियाँ भी थीं।
देवी योगिनी की चौसठ मूर्तियों के कारण ही इसका नाम चौसठ योगिनी शिवमंदिर पड़ा।
देवी योगिनी की काफी मूर्तियाँ ग्वालियर किले के संग्रहालय में रखी हैं। परिसर के
बीचों-बीच एक बड़ा गोलाकार शिवमंदिर भी है। मुख्य मंदिर में 101 खम्भे कतारबद्ध खड़े हैं, जो संसद भवन के गलियारे
की याद दिलाते हैं। मंदिर के निर्माण में लाल-भूरे बलुआ पत्थरों का उपयोग किया गया
है, जो मितावली और उसके आसपास के इलाके में पाए जाते हैं।
स्थानीय लोग कहते हैं कि प्राचीन समय में मंदिर में तांत्रिक साधना की जाती थीं।
यह तांत्रिक अनुष्ठान का बड़ा केन्द्र था।
भव्य शिवमंदिर को देखने के लिए जनवरी-फरवरी के माह में हम घुमक्कड़ मित्रों
की टोली ने योजना बनाई थी। इस टोली में मेरे साथ युवा पत्रकार हरेकृष्ण दुबोलिया, महेश यादव और गिरीश पाल भी
शामिल थे। हम ग्वालियर से किराए की टैक्सी से मितावली की ओर निकले। मितावली के
नजदीक पहुँचकर जब कुछ स्थानीय लोगों से हमने मंदिर तक पहुँचने के रास्ते के बारे
में पूछा ,तो उन्होंने कहा- चम्बल की संसद देखने जा रहे हो। इस कथन से स्पष्ट होता
है कि स्थानीय लोगों के लिए देश में दो संसद भवन हैं। एक दिल्ली में तो दूसरा उनके
गाँव मितावली में। वैसे रास्ता बताने में गूगल मैप ने भी हमारी खूब मदद की। आखिर
गूगल मैप और ग्रामवासियों की मदद से हम जल्द ही चौसठ योगिनी शिवमंदिर पहुँच गए।
टैक्सी नीचे छोड़कर पैदल ही करीब 200 सीढिय़ाँ चढ़कर पहाड़ी
के ऊपर मंदिर के सामने पहुँचे। पर्यटकों की ज्यादा संख्या नहीं थी। किसी दूसरे शहर
से आए करीब पांच-छह और लोग वहाँ मौजूद थे। मंदिर को लेकर उनसे काफी देर तक बातचीत
हुई। वे भी आश्चर्यचकित थे चम्बल में संसद भवन का प्रतिरूप देखकर। पर्यटकों के उस
समूह में एक बुजुर्ग धोती-कुर्ता पहने हुए थे। बातचीत में पता चला कि वे पंडित हैं
और मुम्बई से आए हैं। उनके साथ अप्रवासी भारतीय थे, जो उनके
यजमान थे। पंडितजी भारत के गौरव से रू-ब-रू कराने के लिए अपने यजमानों को कुछ
चिह्नित जगहों पर घुमाने निकले थे। उनकी भारत दर्शन की योजना में चम्बल का यह
हिस्सा भी शामिल था, यह जानकर सुखद अनुभव हुआ।
मितावली के आसपास बिखरा पड़ा है सांस्कृतिक इतिहास - मध्यप्रदेश सरकार और
केन्द्र सरकार चाहे तो चम्बल में पर्यटकों की संख्या को आसानी के साथ बढ़ाया जा
सकता है। इसका फायदा यहां के ग्रामवासियों को तो होगा ही साथ ही सरकारों के राजकोष
में भी इजाफा हो सकेगा। आगरा का ताजमहल और ग्वालियर का किला तो दुनिया के लोगों को
आकर्षित कर अपने पास बुलाता ही है। अगर सरकार थोड़े से प्रयास करे तो आगरा और
ग्वालियर आने वाले इन मेहमानों को डकैतों-बागियों के लिए कुख्यात चम्बल की खूबसूरत
और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध तस्वीर भी दिखाई जा सकेगी। ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र
पर्यटन के नजरिए से काफी समृद्ध है। मुरैना से सिहोनिया गाँव (ककनमठ), मितावली, पडावली, बटेश्वर होते हुए नूराबाद तक के बेल्ट में
गौरवशाली इतिहास के दर्शन होते हैं। मुरैना शहर से उत्तर-पूर्व दिशा में करीब 20 किलोमीटर दूर सिहोनिया गाँव में आठवीं सदी का ककनमठ मंदिर है। ककनमठ
मंदिर खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर से भी विशाल है। ककनमठ मंदिर से पश्चिम की
दिशा में करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर मितावली का चौसठ
योगिनी मंदिर स्थित है। मितावली से दक्षिण-पश्चिम दिशा में करीब चार किलोमीटर ही
आगे बढऩे पर पडावली आता है। पडावली में विशाल विष्णु मंदिर है। मंदिर के मण्डप की
चार दीवारों पर चार युगों, सतयुग, त्रेतायुग,
द्वापरयुग और कलयुग में मनुष्य की प्रवृत्ति को दिखाने का प्रयास
किया गया है। इसके लिए सेंड स्टोन पर खूबसूरती से सम्भोग से लेकर समाधि में लिप्त
आकृतियाँ उकेरी गई हैं। पडावली में शानदार नक्काशी को देखकर करीब एक किलोमीटर ही
आगे बढ़ना होगा कि शिवमंदिरों का खजाना हमारी प्रतीक्षा कर रहा होता है। कहते हैं
आठवीं शताब्दी में कभी यहाँ 300-400 शिवमंदिरों का समूह था।
एक समय में ये सभी मंदिर जमींदोज हो गए थे। पुरातत्व विभाग के प्रयासों से यहाँ
फिर से आधा सैकड़ा से अधिक मंदिर पुनर्जन्म ले चुके हैं। यहाँ आकर पर्यटकों को
अलौकिक शांति का अनुभव होता है। अब यहाँ से उत्तर-पूर्व की दिशा में करीब आठ
किलोमीटर आगे बढऩे पर शनिश्चरा मंदिर के दर्शन होते हैं। यह भारत का दूसरा
शनिमंदिर है। यह पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। यहाँ से
ग्वालियर की दूर 27 किमी रह जाती है। पर्यटन के नजरिए से इस
बेल्ट पर ध्यान दिया जाए तो ग्वालियर-चम्बल को डकैत, बीहड़,
बंदूक के अलावा उसकी खूबसूरती, सांस्कृतिक और
ऐतिहासिक समृद्धि के लिए भी पहचाना जाएगा।
सम्पर्क: गली-1, किरार कॉलोनी, कम्पू,
लश्कर, ग्वालियर (म. प्र.) 474001, मो. 09893072930,




सुन्दर और आकर्शिक जानकारी रोचक लगी ।
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