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Jun 1, 2023

किताबें- समय के चाक पर: संवेदनशीलता का सफ़रनामा

- विजय जोशी

पुस्तक : समय के चाक पर (काव्य संग्रह) माण्डवी सिंह, पृष्ठ संख्या 152, मूल्य – रू. 250/-, वर्ष : मई, 2023, प्रकाशक : संदर्भ प्रकाशन, भोपाल, मो. 9424469015

भोगना हर एक की नियति है। पर भोगे हुए सुख या दुख को कलमबद्ध कर कागज पर उकेर पाने की कला बहुत कम लोगों में होती है। और इसके लिए आवश्यक है अंतस की संवेदनशीलता को सहेजते हुए सतत अभ्यास से कलम की धार पैनी रखना। यह तो हुई पहली बात।

- दूसरी यह कि लेखन की प्रासंगिकता भी तभी तक सार्थक है जब तक कि वह अंतर्मुखी या आत्ममुग्धता से परे जाकर सर्वजन हिताय: सर्वजन सुखाय न हो सके।

 - तीसरी यह कि कोई भी सृजन अंतस की वेदना से रहित हो यह असंभव है। सृजन का सुख भी इसी में समाहित है। और इस मामले में पौराणिक काल से आज तक भाव प्रवीणता में नारी पुरुष के मुक़ाबले कई गुना ऊँची पायदान पर प्रतिष्ठित है।

 -साहित्य तो दरअसल संवेदनशीलता, सृजन, स्नेह, समर्पण का सफ़रनामा है। अगर यह पूरी आभा के साथ किसी कवियित्री की रचनाधर्मिता में प्रस्फुटित हो तो बात अपने आप में अद्भुत हो जाती है और यह स्पष्ट तौर पर उभरी है माण्डवी सिंह के कविता संग्रह ‘समय के चाक पर’ में जिसमें पृथ्वी, प्रकृति, पर्यावरण, पावस, पाहुन, पक्षी इत्यादि के प्रति समर्पित कोमल भाव यूं उभरते हैं।

जब सोनचिरैया उम्मीदों के तिनके चुनकर बुनती हो

मोर पपीहे की बोली कोयल  संग रिश्ता गुनती हो

-  प्रकृति के प्रति यही प्रेम और सशक्त होकर प्रकटित है आगे यूँ:

पावन वसुधा समृद्ध हुई पा पाहुन पग पावस के

हरियाली से संपन्न हुई पा पाहुन पग पावस के

 - आगे अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति सजग कवयित्री का सामाजिक सरोकार समाहित संदेश समाया हुआ है:

हृदय नहीं गर बदल सको तो / हाल बदलकर क्या होगा

 - जीवन की विद्रुपताओं से पाठकों का परिचय भी कुछ यूँ होता है आगे चलकर:

हवान कुंड पर आंच सेंकते हाथ जला कर बैठे हम

छाँव खोजते गाँव आ गए पाँव गला कर बैठे हम

- पर कवियित्री इस दौर तथा परिवेश से निराश भी कतई नहीं है:

विपदाओं में जो मुस्काए / ऐसा अचल प्रदीप बनो

- अगले पृष्ठों में मन के स्नेहिल उर्फ़ श्रृंगार पक्ष की कोमलतम बानगी यूँ मुखरित होती है:

जिन अधरों में मौन छुपा है / वहीं प्यार के गीत पले

 - और आगे भी इसी भाव की व्याख्या समाहित है: 

अपने आँचल, लट, श्वास, गंध में मुझे बसाए रखना

द्वार, देहरी, आँगन में नेह का दीप जलाए रखना

   - और तो और शृंगार की यही धारा हमें याद दिला देती है राधा कृष्ण के निर्मल प्रेम की भी  :  

कान्हा कहाँ इतनी देर लगाई / राधा पथ निरखे पलक बिछाई

 -इंसानी रिश्तों की रवायत से भी कवयित्री भली भांति परिचित है तभी तो लिख पाईं माँ, पिताजी, भाई, बेटी पर:

सृजन की रचना बेटी से/ मिट्टी की महिमा बेटी से

   - भावपूर्ण यात्रा का क्रम निरंतर जारी रहा है पूरे संग्रह में जैसे ‘सावन गीत’, ‘ब्रह्मनाद’। सामाजिक सरोकार मुखरित है कविता हिन्दी, सुख की तलाश, कलम के सिपाही, नारी, अमर शहीद, एकता के सुर, क्षत्राणी इत्यादि में।

 - उत्तरार्ध मुक्त छंद प्रवाहित है किसी अलबेली, अल्हड़, आह्लादकारी नवयौवना नदिया के समान, जहाँ बगैर किसी व्याकरणीय विवशता के निर्मल मन से जो जी में समाया है वह प्रखरता के साथ प्रस्तुत हुआ है।  

- कुल मिलाकर संग्रह में काव्य रस की सारी विधाएँ खुलकर मुखरित हुई हैं कवयित्री के निर्मल मन और मानस के साथ सुरुचिपूर्ण तरीके से। आरंभ से अंत तक उत्सुकता समाहित सुमधुर प्रवाह। उत्तम मुद्रण तथा कवर पृष्ठ।

19 comments:

देवेन्द्र जोशी said...
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विजय जोशी said...
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विजय जोशी said...

आदरणीय, आपकी सद्भावना हेतु सादर प्रणाम। कथ्य और तथ्य दोनों सारगर्भित, सहज और सुंदर हों तो शब्द स्वयमेव आकार ले प्रस्तुत हो जाते हैं। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं। मैं तो इन पलों में केवल यही समर्पित करना चाहूंगा कि :
- सो सब तव प्रताप रघुराई
- नाथ न कछू मोरि प्रभुताई
हार्दिक आभार सहित सादर

Mahesh Manker said...
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Mahesh Manker said...

आदरणीय सर,
अति उत्तम समीक्षा.

Anonymous said...

The book about various poems seems to be very interesting, on reading the review. Hopefully I will get to read this book.
Vandana Vohra

Anonymous said...

Ati uttam sameeksha

प्रेम चंद गुप्ता said...

पुस्तक के गुण, धर्म और मर्म को उद्घाटित करती हुई सार्थक समीक्षा।कविता का प्रथम गुण रसात्मकता है, और उद्धृत पंक्तियों को पढ़ कर लगने लगता है कि पूरी कविता रसात्मक ही होगी।
सामाजिक सरोकार कविता का धर्म पक्ष है। बेटी की रचना इस विषय में आश्वस्त करती है, परन्तु कुछ और उद्धरण आने चाहिए थे।
मर्म का संबंध केवल संवेदनशीलता से ही नहीं है अपितु वर्तमान की दिशा और भविष्य की दशा से भी है। कदाचित इसका प्रकटन मुक्त-छन्द की कविताओं में हुआ हो।
कुल मिलाकर समीक्षा पुस्तक के रुचि जाग्रत करती है। और यही समीक्षा की सार्थकता है। माण्डवी जी को सुकीर्ति मिले। शुभकामनाएं, बधाई।

Hemant Borkar said...

पिताश्री आपके द्वारा पुस्तक कि गई समीक्षा अप्रतिम है। कोई तोड़ नहीं आपका पिताश्री। सादर प्रणाम व चरण स्पर्श।

Anonymous said...

Bahut Sundar badhai ho

Anonymous said...

बहुत सुन्दर समीक्षा

Anonymous said...

Great book

Anonymous said...

अमूल्य पुस्तक जीवन का सार सहेजे हुए यह अदभुद कृति श्री मांडवी सिंह द्वारा बहुत सरल कविताओं में हम सब तक पहुंची है।

Anonymous said...

बधाई मांडवी जी को 💐
बहुत ही बढ़िया समीक्षा की है आदरणीय जोशी सर ने 🙏🏼💐

Anonymous said...

अति सुंदर समीक्षा
मुकेश श्रीवास्तव

वर्तुल सिंह said...

शब्दों का चयन , विवेचना और गांभीर्य इस समालोचना और पुस्तक दोनों को उत्कृष्टता की श्रेणी में लाती है । बधाई 💐

Ashwini said...

Presentation of the viewpoint shows that the author has clear thoughts on what she wants to communicate. Very nice book.

Sharad Jaiswal said...

आदरणीय सर,
अदभुत, बहुत ही सुंदर समीक्षा ।
आपके द्वारा की गई समीक्षा आपके गहन अध्यन , विषय के गूढ़ ज्ञान तथा विषय में रुचि को दर्शाती है । संग्रह का बोध कराती है तथा रुचि जगाती है ।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद और लेखिका को साधुवाद ।

Er Vijay Jain Ex Addl GM BHEL said...

*"समय के चाक पर" - सुश्री मांडवी सिंह जी के काव्य संग्रह पर श्री विजय जोशी जी की "पुस्तक समीक्षा" पढ़ने के बाद पाठक के रूप में नए ज्ञान का उदय हुआ. उनकी समीक्षा से ज्ञात हुआ कि समीक्षक को किन- किन मानदंडों को देखना है, जिनमें समाहित हो - अंतस की संवेदनशीलता, भावपूर्ण या उद्देशयपूर्ण प्रासंगिकता तथा लेखन - अंत:करण की अनुभूतियों से परे ना हो..*
*साथ ही सृजन में स्नेह , संवेदना, समर्पण और स्वानुभूति का मिश्रन होना आवश्यक है, यह श्री जोशी जी की समीक्षा से उद्घाटित हुआ. लेखीका नै भी इतनी बारिकी से करुणा भाव, प्रकृति प्रेम, वसुधा की हरियiली, कोयल की मधुर आवाज आदि, एक-एक भाव को लेखंiकित किया है और श्री जोशी जी ने भी उतनी ही सुंदरता से एक- एक प्रष्ठ का क्रमबद्ध तरिके से अतिसुंदर भाव- विशलेषण समाहित किया है. यथा - बेटी की महतता को मिट्टी की उपमा, कावियत्री के कोमल मन और जीवन के एक-एक तंतु का बृहद चित्रन आदि, मन को आनंदित करता है. साथ ही नवयोवना नदिया जैसी अलहड, अलबेली उपमा और पुलकित करने वाली सहज व्याख्या मन को रोमांचित किए बिना नहीं रहती.*

*संक्षेप में कहें तो पुस्तक समीक्षा में एक-एक भाव का, एक एक रस का अति बारिकी से और व्याकरण के सभी व्यंजन को Sri Joshi jee ne समाहित किया है, यथा - स्नेहल मौन में छिपी है प्यार की गंध, नेह का दीप जलाये रखना और आगे श्वंiस गंध में मुझे बसiये रखना.. आदि आदी ..!*

*सारांश -- श्री जोशी जी नै पुस्तक समीक्षा में "गागर में सागर" समाहित कर अद्भुत कार्य किया है..!!*

इंजी विजय जैन, भोपाल