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Jul 1, 2022

कविताः परिंदा

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स्वाति शर्मा     


बन जा परिंदों की तरह

भर ले कामयाबी की उड़ान

जो दिखे सबसे बड़ा पर्वत

लगा दे उस से छलांग

 

डरना नहीं गर विश्वास हो खुद पर

और अपने उस रब पर

वो साथ ज़रूर देगा

हर मुसीबत में थाम लेगा

 

थकना नहीं रुकना नहीं

बाधाएँ तो आएँगी

बाधाओं को लाँघकर ही तो

तुझे मंज़िल मिल जाएगी

 

कोशिश तू करता चल

अंजाम तक वो पहुँचाएगा

मंजिल तो चुनकर देख

वो तेरी सीढ़ी बन जाएगा

 

बन जा परिंदों की तरह

भर ले कामयाबी की उड़ान

जो दिखे सबसे बड़ा पर्वत

लगा दे उस से छलांग

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