‘‘सुनो, छत पर जा रहे हो?’’
सुबह-सुबह मुझे जीने की तरफ जाते देख किचन में काम कर रही पत्नी ने
टोका।
‘‘नहीं यार! मैं तो सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने की
एक्सरसाइज करने जा रहा हूँ।’’
‘‘जीने पर चढ़ ही रहे हो, तो दरवाजा खोलकर दो मिनट पौधों को भी देखते आना।’’
‘‘पौधों का क्या देखना? पानी
तो तुमने कल ही दिया था, इतनी सर्दी में रोज-रोज तो पानी
दिया नहीं जाता।’’ मैं आधी से अधिक सीढ़ियाँ चढ़ चुका था।
‘‘कोई मेहनत का काम नहीं बता रही हूँ। पौधों
को देखने-भर के लिए कहा है मैंने।’’
‘‘भई, जब गमलों में कुछ
काम नहीं करवाना है, तो पौधों को देखने के लिए कहने का क्या
मतलब?’’ छत में खुलने वाले दरवाजे के पास पहुँचते हुए मैंने
सवाल किया।
‘‘तुम तो ऐसे सवाल कर रहे हो, जैसे मैंने सवा सौ किलो वजन उठाने को कह दिया हो!’’ अब तक पत्नी के स्वर
में थोड़ा गुस्सा, थोड़ी नाराजगी का भाव आ चुका था।
‘‘बात सवा सौ या सवा किलो वजन की नहीं है। बात
का लॉजिक भी तो होना चाहिए।’’ छत का दरवाजा खोलने के बाद नीचे की ओर लॉबी में
झाँकते हुए मैंने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया।
‘‘हाँ, हाँ! मैं तो
हमेशा बिना लॉजिक की बातें ही करती रहती हूँ! लोग तो हरे-भरे पौधों को, फूलों को देखने के लिए तरसते हैं और एक तुम हो…! मैंने मरे पौधों को जिला
दिया, आज छत पर हरियाली ही हरियाली दिख रही है, सुन्दर-सुन्दर फूल खिल रहे हैं, तुम्हें उन्हें
देखने के लिए भी लॉजिक चाहिए?’’ पत्नी भी अब तक सीढ़ियों के
पास आकर मैदान सँभाल चुकी थी।
‘‘भाई साहब, भाभी जी ठीक
कह रही हैं। सुबह-सुबह इन गमलों की हरियाली देखोगे, तो आपका
मन तो प्रसन्न होगा ही, भाभी जी के साथ गमलों में लगे इन
पौधों को भी अच्छा लगेगा।’’ ये हमारे पड़ोस
वाली भाभी जी थीं, जो धुले कपड़े सूखने के लिए अपनी छत पर
डालने आई थीं और हमारी बातें बड़े चाव से सुन रही थीं।
‘‘बाकी तो सब ठीक है भाभी जी, पर ये पौधों को अच्छा लगने वाली बात आपने खूब कही।’’ मेरा ध्यान अब भाभी
जी की ओर था।
‘‘भाई साहब, आप इसे मजाक
मत समझिए। जैसे हमारे बच्चे हमें अपने साथ इन्वॉल्व होते देख खुश होते हैं,
वैसे ही पौधे भी खुश होते हैं। आप लोग जब एक माह के लिए यहाँ नहीं
थे, तो मेरे द्वारा पानी देने के बावजूद इनमें से अधिकतर
सूख-से गए थे। केवल पानी और निराई-गुड़ाई से कुछ नहीं होता, भाभीजी
के हाथों का प्यार-भरा स्पर्श पाकर ये फिर से हरे-भरे हुए हैं। देखिए न, कैसे खिल रहे हैं! आप इनकी सुन्दरता को निहारेंगे, इनके
बारे में कुछ कहेंगे तो ये भी खुश होंगे। भाभीजी इनके साथ बहुत मेहनत करती हैं,
आप एकाध बार दो-चार मिनट के लिए इन्हें देख जाया करेंगे तो इन्हें
भी लगेगा कि इनके सिर पर हाथ रखने वाला इनका भी कोई पिता है।’’
‘‘अरे छोड़िए भी भाभीजी, इनकी
समझ में कहाँ आएँगी ये बातें!’’ छत पर आ चुकी पत्नी का चेहरा लॉजिकल समर्थन पाकर
प्रसन्नता से दमक रहा था।
मैं कभी पौधों को तो कभी भाभी जी को देख रहा था।
सम्पर्कः 121, इन्द्रापुरम,
बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र., मो. 09458929004
1 comment:
हार्दिक आभार।
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