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May 15, 2018

टुकड़ा-टुकड़ा इन्द्रधनुष

टुकड़ा-टुकड़ा इन्द्रधनुष 

- आशा शर्मा

संवेदनाओं की शाब्दिक, रोचक, कलात्मक अभिव्यक्ति ही कहानी है, जिसमें जीवन के यथार्थ का समन्वय कल्पनाओं के सुन्दर संयोजन के साथ होता है। ऐसा ही कुछ मानवीय संवेदनाओं रूपी अनगढ़ मुक्तामाणिकों को सधे हुए  शिल्प की खूबसूरत तराश के साथ प्रस्तुत करती हैं लेखिका आभा सिंह। आभा सिंह की ये विविध रंगी दस कहानियाँ- टुकड़ा टुकड़ा इन्द्रधनुष- शीर्षक से संगृहीत हैं। 136 पृष्ठों में सिमटा यह कहानी संग्रह दस सार्थक व भावपूर्ण कथा- सुमनों का एक ऐसा खूबसूरत गुलदस्ता है, जिसका हर कथा-पुष्प संवेदनाओं की भीनी- भीनी महक बिखेर रहा है। ये कहानियाँ शिल्पगत कौशल के साथ संवेदनाओं को रूपायित करते हुए  सहज ही मानव मूल्यों को सहेजती- पोसती और पल्लवित करती चलती हैं। संग्रह की प्रथम कहानी- चक्रवात- में विदेश की धरती पर जा कर अजनबीपन और अपमान- उपेक्षा झेलने की विवशता का अंकन है। कहानी की मुख्य पात्र संयुक्ता है जिसके बेटे- बहू कैलीफोर्निया में रहते हैं। उनके पास आई संयुक्ता विदेशी धरती पर कभी बच्चों के साथ रह पाने- हँसने- खिलखिलाने का सुख महसूस करती है तो कभी वहाँ के वातावरण, भाषा, पहनावे, दिनचर्या और तौर- तरीकों से तालमेल न बैठा पाने के कारण दुख व अपमान महसूस करती है। हद तो तब हो जाती है जब भारत लौटते समय विमान में संदिग्ध समझ लिये जाने के कारण संयुक्ता को बेहद अमानवीय व्यवहार सहना पड़ता है। अपमानजनक सवालों, जाँचों और क्रूर व्यवहार के लम्बे सिलसिले को पार करने के बाद असीम दुख और दुविधा से छुटकारा पाकर संयुक्ता का यह कथन मानों हर प्रवासी एशियाई के उच्छवास की अभिव्यक्ति बन जाता है- उस जैसे कितने ही लोग होंगे जो विदेशी धरती पर उससे भी अधिक दुख- दुविधा सहते होंगे, फिर क्यों ललक- ललक कर एशियाई हरदम विदेश जाना चाहते हैं, शायद वहाँ बसे बच्चे....उनके साथ को तरसता मन...,कभी उनकी ज़रूरतों की पुकार.....कभी विदेशी धरती के आकर्षण में बँधे- गुँथे.... ऐसे ही दिन- रात अवज्ञा सहने को.... कितना कठिन होता है अपमान सहना... चेहरे- मोहरे व रंग-रूप का अपमान...बोली-कपड़ों का अपमान...एशियाई होने का अपमान...मुस्लिम होते ही यह अपमान दुगुना- चौगुना...ये विदेशी न आदमी परखते, न उनके गुण -ओहदे, न काबलियत....बस अपने भय के चलते क्रूरता, अवहेलना...-इस कहानी का कथानक जहाँ एक समसामयिक मुद्दे पर आधारित है वहीं कथ्य को शैली ने अत्यन्त  सम्प्रेषणीय बना दिया है। छोटे- छोटे कथन प्रभाव को बढ़ाते हैं, जैसे विदेश के अकेलेपन को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया गया है इस कथन में- वही दिनचर्या, वही सन्नाटा, आरी लेकर काटो तो भी ख़ामोशी न कटे....।
आभा जी की कहानियों के कथानक हर वर्ग और हर स्तर से उठाए  गए  हैं। कुछ कहानियों में इनके पात्र अभिजात्य स्तर के हैं तो कुछ नितांत अंतिम पंक्ति स्तर के। हर स्तर के पात्रों, उनके संवादों और भावाभिव्यक्ति में जीवन्तता मुखर होती है। कहानी- वृत के गुम सिरे- का पुरुष पात्र जो एक घरेलू नौकर है, वह पत्नी और बच्चों से दूर रह कर अकेलापन भोगते हुए  महरी का काम करने वाली- बदली- के आकर्षण में खिंचता है और शाकाहारी होते हुए  भी सामिष भोजन और अफीम की चटनी खा लेता है, पर संस्कारों से बँधा तन- मन अपनी लक्ष्मण रेखायें पार करने का खामियाजा भुगतता है और अंत में अपराधबोध से भर उठता है। कहानी निम्नवर्गीय जीवन शैली और मानसिकताओं के सजीव चित्रण में पूर्णरूपेण सफल रही है।
- अब तो सुलग गए  गुलमोहर- मखमली सी भाषा- शैली से अहसासों की उष्मा के बिम्ब उकेरती यह कहानी एक खूबसूरत कविता सा प्रभाव मन पर थोड़ती है। कहानी में एक ओर जहाँ अविवाहित रहने की जिद  पाले बैठी शीला के व्यक्तित्व की दृढ़ता, स्वाभिमान, आत्मसम्मान व अपनी अस्मिता के प्रति सजगता को उजागर किया गया है, वहीं दूसरी ओर नवविवाहिता सहेली इंदु और उसके पति विनय की नज़दीकी से शीला की सूक्ष्म व कोमल संवेदनाओं तथा सहज आकांक्षाओं के सुलग उठने को रूपायित करती है। कहानी में अविवाहित रहने को प्रतिबद्ध नारी हृदय का अपने जग उठे कुँवारे सपनों के समक्ष अवश सा होते चले जाने का यथार्थ चित्रण है। भावों को जिस ख़ूबसूरती के साथ शिल्प में बुना गया है, उसी ख़ूबसूरती से लेखिका ने नैनीताल की प्रकृति के चित्र भी जीवन्त किए  हैं।
कहानी - एक था वीरेन्द्र- चुनावों में पोलिंग पार्टी के रूप में जाने वाले कर्मचारियों की परेशानियों व मन:स्थितियों का यथार्थ चित्रण है। कहानी में वीरेन्द्र के रूप में एक झक्की, शक्की, गुस्सैल, चिड़चिड़े, अति सावधान तथा कंजूस प्रकृति के प्रैसाइडिंग ऑफि़सर का चित्रण हुआ है।
-हार जाने तक- कहानी में एक एसी ब्याहता के अभिशप्त जीवन की दुखद गाथा अभिव्यक्त हुई है, जिसका पति ब्याह की रात ही अपनी रखैल को घर ले आता है। आजीवन सौतन के साथ पति की उपेक्षाओं व यन्त्रणाओं का विष पीने वाली वह अशिक्षित लाचार स्त्री मूक रह कर अपनी सेवा- चाकरी के बल पर उन बच्चों की श्रद्धा- स्नेह और इज़ाज़त  पा जाती है, जो उसकी सौतन की कोख से जन्मे हैं। प्रतिशोध लेने का यह उसका अपना अनूठा तरीका है जिसमें उसके जीवन को नष्ट करने वाली स्त्री की संतानें अपनी जन्मदात्री को नहीं, बल्कि उसे प्यार करती हैं। कहानी का एक संवाद उस हारी हुई स्त्री की जीत का एलान सा करता हुआ प्रतीत होता है जब वह कहती है- बहन जी झूठ नहीं कहूँगी, मैंने उससे पूरा बदला ले लिया। उसने मेरी जवानी छीन ली तो मैंने भी उसका बुढ़ापा छीन लिया। कहानी का संवाद शैली में विकसित होते चले जाना भी अनूठा है।
कठोर सैन्य जीवन के कष्टों और सैनिकों की संघर्षपूर्ण दिनचर्या का जीवन्त चित्रण है कहानी -दंश- में। अत्यन्त कठिन परिस्थितियों, कष्टों, व्यथाओं, आशंकाओ के बीच सियाचिन की दुर्गम सीमाओं पर तैनात सैनिकों के प्रति एक भावपूर्ण आदरांजलि है कहानी- दंश-।
-अम्मा जी- कहानी शिथिल होते चले जाते तन- मन और आयु की चुनौतियों से जूझते वृद्ध जीवन का यथार्थ चित्रण है। जीवन के कटु यथार्थों को झेलते- सहते फिर से सहज होना ही नियति है। यही जीवन का प्रवाह है।
-अँधेरी आँखों के उजाले- नेत्रहीनों के संघर्ष, चुनौतीपूर्ण जीवन एवं उनके मनोभावों को समझने का सार्थक प्रयास है कहानी नेत्रहीनता झेल रहे लोगों को मुख्य धारा में जोडऩे के लिए  समाज को संवेदनायुक्त प्रयासों हेतु संदेश भी देती है। विनोद जी के रूप में एक एसे व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है जो नेत्रहीनता के बावजूद जि़ंदगी को जि़ंदादिली से जीते हुए  संधर्षों से जूझता है।
-संग्रह की शीर्षक कहानी- टुकड़ा टुकड़ा इन्द्रधनुष- में रिटायरमेंट के बाद की ज़िन्दगी  में आ जाने वाले  ख़ालीपन और उद्देश्यहीनता के प्रश्नों व उनके समाधानों को प्रस्तुत किया गया है। कहानी के प्रमुख पात्र  सुधाकर जी एसे सेवानिवृत व्यक्ति हैं जिनके व्यक्तित्व पर उनकी रौबीली, ठाठ-बाट वाली नौकरियों का साया रिटायरमेंट के बाद भी मंडराता रहता है और वही उन्हें अभिजात्य के साथ- साथ एक तरह की बेरुख़ी व असंपृक्तता भी दे डालता है जिसे ओढ़े वे उच्चता ग्रंथि के शिकार हो कर सहज जीवनधारा से जुडऩे में कठिनाई का अनुभव करते हैं। सुधाकर जी इस यथार्थ को पहचान कर उसका सामना करते हैं और ख़ुद की सोच के साथ ही अपने व्यक्तित्व में परिवर्तन ले आते हैं। वे समझ लेते हैं कि समय की अंधी सुरंग में अकेलेपन की यंत्रणा भोगने और घुट- घुट कर मर जाने से तो सोच के खुले आसमान में प्रयत्नों का इन्द्रधनुष पा लेना ही सुखकर होगा, चाहे टुकड़ा- टुकड़ा ही सही।
संग्रह की अतिम कहानी -मायावी मन- स्वप्न कथा जैसा शिल्प लिए  हुए  बेहद खूबसूरत कहानी है, जो है तो फ़ैंटैसी -सी लेकिन वर्तमान युग में नौकरी और काम की अतिव्यस्तताओं में उलझे युवाओं को उम्र के सही दौर में दाम्पत्य जीवन के ख्वाब बुन कर व्यस्त जीवन से सुखों का तालमेल बिठाने का संदेश देती है। कहानी इस बात का खुलासा भी करती है कि आज के दौर में विवाह सम्बन्ध पारम्परिक सोच के आधार पर नहीं निभाए  जा सकते बल्कि अब युवक- युवतियों द्वारा एक दूसरे की परिस्थिति और मानसिकता को समझ व सुलझा कर परस्पर सहयोगात्मक  रूप अपना कर ही वैवाहिक जीवन  निभाया जा सकता है। फंतासी शैली के प्रयोग ने शिल्प को रोचक बना दिया है।
इन सभी कहानियों में लेखिका आभा सिंह की एक विशिष्टता है- बेहद समृद्ध भाषा एवं खूबसूरत शिल्प के प्रयोग द्वारा वातावरण का सजीव चित्रण। भाषा- शैली की इस प्रवाहशीलता ने कहानियों की जीवन्तता और सम्प्रेषणीयता को और भी बढ़ा दिया है।
विविध रंगों के संयोजन से बना पुस्तक का आवरण पृष्ठ शीर्षक के अनुरूप है, आकर्षक है। संवेदनाओं को छूने में समर्थ एवं चेतना को मथ सकने वाली ये संवेदनशील कहानियाँ आश्वस्त करती हैं कि भविष्य में लेखिका की कलम सशक्त अभिव्यक्ति का यह क्रम जारी रखेंगी। 


कहानी संग्रह- टुकड़ा-टुकड़ा इन्द्रधनुष, लेखिका- आभा सिंह, मूल्य-280/-, प्रथम संस्करण-2017, अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली110030

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