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Aug 15, 2017

दो लघुकथाएँ

1. लड़ाई
- ख़लील जिब्रान, अनुवाद: सुकेश साहनी

उस रात महल में दावत थी। तभी एक आदमी वहाँ आया और राजा के सम्मुख दण्डवत् हो गया। दावत में उपस्थित सभी लोग उसकी ओर देखने लगे- उसकी एक आँख फूटी हुई थी और रिक्त स्थान से खून बह रहा था।
राजा ने पूछा, 'यह सब कैसे हुआ?’
उसने उत्तर दिया, 'राजन मैं पेशेवर चोर हूँ। पिछली अँधेरी रात को मैं चोरी के इरादे से एक साहूकार की दुकान में गया था। खिड़की  पर चढ़कर भीतर कूदते समय मुझसे भूल हो गई और मैं जुलाहे की दुकान में कूद पड़ा और लूम से टकराकर मेरी आँख निकल गई। राजन मैं आपसे न्याय की अपेक्षा रखता हूँ।
यह सुनकर राजा ने जुलाहे को पकड़  मँगवाया और उसकी एक आँख निकाल देने का आदेश दिया।
'राजन!जुलाहे ने कहा, 'आपका फैसला उचित है। मेरी एक आँख निकाल ली जानी चाहिए। लेकिन अफसोस! मुझे अपने हाथ से बुने कपड़े को दोनों ओर से देखने के लिए दोनों आँखों की जरुरत होती है। हुजूर, मेरे पड़ोस में एक मोची है, उसकी दो आँखें हैं उसे अपने काम के लिए दोनों आँखों की जरूरत नहीं पड़ती है।
सुनकर राजा ने मोची को तलब किया और उसके आते ही उसकी एक आँख निकालवा दी।

2. हरेक में

एक बार मैंने धुंध को मुट्ठी में भर लिया।
जब मुट्ठी खोली तो देखा, धुंध एक कीड़े में तब्दील हो गई थी।
मैंने मुट्ठी को बंद कर फिर खोला, इस बार वहां एक चिडिय़ा थी।
मैंने फिर मुट्ठी को बंद किया और खोला, इस बार वहाँ उदास चेहरे से ऊपर ताकता आदमी खड़ा था।
मैंने यह क्रिया फिर दोहराई तो इस बार मुट्ठी में धुंध के सिवा कुछ नहीं थापर अब मैं बहुत मीठा गीत सुनने लगा था। इससे पहले मैं खुद को इस धरती पर रेंगने वाला निरीह प्राणी समझता था। उस दिन मुझे पता चला कि पूरी पृथ्वी और उस पर का जीवन मेरे भीतर ही धड़कता है।

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