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Oct 29, 2011

विश्वसनीयता का अंधकार


विश्वसनीयता का अंधकार

-डॉ. रत्ना वर्मा
मानवीय समाज में प्रगति के जो मुख्य कारण हैं उनमें से एक है मनुष्यों के बीच में आपसी विश्वसनीयता। जब यह दो मनुष्यों के बीच में होती है तो इसे गहरी मित्रता कहा जाता है। परिवार की ओर हम ध्यान दें तो परिवार के सदस्यों के बीच में विश्वास पारिवारिक संगठन का मूलमंत्र होता है। इस आपसी विश्वसनीयता के चलते परिवार के सदस्य निजी तथा एक दूसरे की प्रगति के लिए सतत प्रयत्न करते रहते हैं।
वास्तव में तो विश्वसनीयता मानवीय समाज की प्राणवायु है और समाज इसी विश्वसनीयता के चलते सुचारू रुप से चलता रहता है। समाज में यह अनिवार्य है कि हमें विश्वास हो कि चौकीदार हमारे जान-माल की रक्षा के लिए है। अभिभावकों को यह विश्वास होना चाहिए कि शिक्षक उनके बच्चों को सही तरीके से पढ़ायेगा और उचित मार्गदर्शन देगा। जनता को यह विश्वास होना चाहिए कि न्यायाधीश निष्पक्ष भाव से न्याय करेगा और डॉक्टर मरीज का सहानुभूति पूर्वक इलाज करेगा। इसी प्रकार से समाज के कई अन्य कार्यकलाप हैं जिनमें विश्वसनीयता का होना अनिवार्य है।
परंतु क्या वास्तव में ऐसा है? आज के मानवीय समाज में यह स्पष्ट दिख रहा है कि विश्वसनीयता का बड़ा संकट उपस्थित हो गया है। जनता में गरीबों की संख्या बढ़ती चली जा रही है और सरकार कह रही है कि शहर में जो व्यक्ति प्रतिदिन 32 रूपए कमाता है या गांव में 26 रूपए उसे गरीबी रेखा से ऊपर अर्थात समृद्ध माना जाए। दिन-प्रति-दिन सरकार द्वारा जनता के टैक्स की राशि में बड़ी-बड़ी रकम के घोटालों के प्रमाण आ रहे हैं। कहीं मोबाइल टेलीफोन लाइसेंस में, कहीं कॉमनवेल्थ खेलों में तो कहीं एयरइंडिया के परिचालन में... इत्यादि इत्यादि। और तब भी सरकार के कर्णधार चाहते हैं कि जनता इस बात का विश्वास रखे कि वह बड़ी इमानदारी से काम कर रहे हैं। इस माहौल में क्या यह संभव है कि ऐसे प्रशासन तंत्र के प्रति जनता में तनिक भी विश्वास होगा। जबकि किसी भी सरकार की सबसे बड़ी शक्ति होती है जनता का उस पर विश्वास। इसे बोलचाल की भाषा में कहते हैं सरकार का इकबाल। वास्तविकता तो ये है कि आज के भारत में जो प्रशासन तंत्र है वह जनता की निगाह में अपनी विश्वसनीयता पूर्णतया खो चुका है। इसका प्रमाण ये है कि जहां कहीं भी सरकारी तंत्र द्वारा जनता के पैसे की लूट-खसोट के बारे में आवाज उठाई जाती है, प्रशासन तंत्र जनता की आवाज को कुचलने का पूर्ण प्रयत्न करता है। भ्रष्टाचार और दूराचार के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों को, जब वे थके-मांदे सो रहे हों तो मध्य रात्रि में उन पर बर्बर हमला करता है और अंदोलन को छिन्न-भिन्न कर देता है। अहिंसात्मक एवं पूर्णतया शांतिमय प्रदर्शन करने वाले एक सम्मानित वृद्ध को जेल में ठूंस देता है। तो स्पष्ट है कि आज मानवीय समाज में विश्वसनीयता का अंधकार छाया हुआ है।
जिस प्रकार से भारत के अंदर समाज और सरकार के बीच में विश्वसनीयता का अंधकार छाया है उसी प्रकार भारत से बाहर भी कई देशों में विश्वसनीयता के अंधकार से त्रसित जनता द्वारा मजबूर होकर क्रंातिकारी अंदोलन करने पड़े। मिस्र में, लीबिया में और यमन इत्यादि में जो कुछ हुआ वह सरकार द्वारा विश्वसनीयता खो देने के कारण हुआ है। आज के दिन अमेरिका और यूरोप में भी जनता आंदोलित है क्योंकि वहां भी जनता का विश्वास उठता जा रहा है। न्यूयार्क, रोम और ग्रीस में छाई अशांति इसका प्रमाण है।
सरकारों का रवैया ऐसा है कि वह जनता से सिर्फ चुनाव के समय ही मात्र चुनाव जीतने के लिए ही संबंध रखना चाहते हैं। शेष बीच के समय में सरकारी तंत्र जनता को अड़चन या रोड़ा मानता है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। दुनिया भर में इसके खिलाफ जनता आवाज उठा रही है। अत: अब समय आ गया है कि सरकारों और प्रशासन तंत्र को अपना रवैया बदलना होगा तथा हर समय जनता की आवाज को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, तभी वह जनता के हृदय में अपने प्रति विश्वसनीयता पूनस्र्थापित कर पाएंगे।
उजालों के त्यौहार दीपावली पर इस बार जनता के सेवकों को यही संकल्प लेना होगा कि हम विश्वसनीयता के इस घनघोर अंधकार से मुक्ति पाएंगे और जनता का मन जीतकर उनके दिलों में विश्वास की ज्योति जलाएंगे।
उदंती के सुधी पाठकों को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

3 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

सचमुच विश्वास लुप्त होता जा कहा है

सहज साहित्य said...

आज की राजनीति का दु:खद पहलू यही है कि कुर्सी पर कुण्डली मारकर बैठा हर नेता चाहता है कि उसके कारनामों पर कोई नज़र न रखे । सेवाभाव का स्थान लूट-खसोट ने ले लिया है ।यदि यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब जनता ऐसे बिना रीढ़ के सेवकों को सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटेगी।इन पर चरित्रहीनता और बेशर्मी इतनी हावी हो गई है कि ये लोग पूँजीपतियों के हित की चिन्ता में तो दुबले हुए जा रहे हैं ; लेकिन जन सामान्य की व्यथा इन्हें आन्दोलित नहीं करती।आपका यह लेख विश्वसनीयता के अन्धकार की सही व्याख्या करता है ।

Sorabh Khurana said...

Interesting, practical & a must to imbibe in oneself