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Apr 20, 2010

गोल्फ कोर्स पर महिलाएं

- रेनू राकेश
21 वर्षीय निकिता जडेजा, जयपुर के क्रिकेटरों के घराने से है। वंश-परंपरा होने के बावजूद, मनोविज्ञान की इस छात्रा के लिए क्रिकेट पहली पसंद नहीं था।
जब बैंगलोर स्थित, 27 वर्षीय साहसी एम.बी.ए., निकी पोनप्पा ने गोल्फ के लिए, बीमा कैरियर और उससे मिलने वाले महीने के वेतन चैक को छोडऩे का फैसला किया तो कई लोग दंग रह गए। 'क्या यह करना उचित है?' यह स्वाभाविक प्रश्न था, क्योंकि भारत में महिलाओं को व्यवसायिक (प्रोफेशनल) गोल्फ अभी शैशवकाल में है। लेकिन निकी ने अपना रास्ता चुन लिया और अब वह अपने क्लब को छोडऩे वाली नहीं थी।
निकी, जो पिछले 2 सालों से प्रो. गोल्फ खेल रही है, महिलाओं के व्यवसायिक गोल्फ टुअर 2009-2010 के (जयपुर के रामबाग गोल्फ क्लब में) दूसरे दौर में खेल रही नौ महिला गोल्फ खिलाडि़यों में से एक थी।
महिलाओं का गोल्फ भारत में कुछ वर्षों पुराना है लेकिन फिर भी विभिन्न पृष्ठभूमियों से कई सारी युवा महिलाएं इसमें शामिल हो रही हैं। वर्ष 2004 में, भारत के महिला गोल्फ असोसिएशन में केवल तीन व्यवसायियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। आज, देश में व्यवसायिक महिला गोल्फरों की कुल संख्या 20 से कुछ अधिक है।
21 वर्षीय निकिता जडेजा, जयपुर के क्रिकेटरों के घराने से है। वे कहती हैं, 'मेरे पिता, प्रहलाद सिंह जडेजा ने राजस्थान से रणजी खेला, और मेरे दादा जी रणवीर सिंह जडेजा ने टेस्ट क्रिकेट खेला। वास्तव में, वे ऑस्ट्रेलिया जाने वाली भारत की पहली टीम का हिस्सा थे। और अधिक प्रसिद्घ, अजय जडेजा मेरे चचेरे भाई हैं।' लेकिन वंश-परंपरा होने के बावजूद, मनोविज्ञान की इस छात्रा के लिए क्रिकेट पहली पसंद नहीं था। निकिता ने प्रो. सर्किट में प्रवेश से पहले, पांच वर्षों तक शौकिया गोल्फ खेला।
शर्मिला निकोलेट के जीवन में खेल हमेशा रहा है। बैंगलोर स्थित नवीं कक्षा की 18 वर्षीय किशोरी घर से ही पढ़ाई करती रही है और अपना बाकी समय विभिन्न खेलों को समर्पित करती रही है। वर्तमान में पत्राचार के माध्यम से बी.ए. प्रथम वर्ष कार्यक्रम में पंजीकृत, शर्मिला ने जल्द ही अपना उद्देश्य खोज लिया। गत वर्ष वे देश की सबसे युवा महिला गोल्फ व्यवसायी बन गईं।
फिर, जाहिर है, अनुभवी महिला खिलाड़ी भी हैं जैसे चंपिका सान्याल, एक स्थापित महिला गोल्फर, और 1999 से 2002 तक भारतीय गोल्फ यूनियन के महिला भाग की अध्यक्ष; और स्मृति मेहरा, भारत की पहली और इकलौती महिला व्यवयायी गोल्फ असोसिएशन की व्यवसायी थी। डब्ल्यू.जी.ए.आई. को आंरभ करने वाले इस युगल को विश्वास है कि किसी दिन और भी भारतीय महिलाएं एल.पी.जी.ए. और यूरोपियन टुअर का हिस्सा होंगीं। स्मृति, सिम्मी के नाम से भी जानी जाती हैं, 1997 - अपने रंगरूट वर्ष - में यू.एस. गईं थी, क्योंकि उस समय भारत में महिलाओं के लिए कोई प्रो. गोल्फ था ही नहीं।
शर्मिला और स्मृति मेहरा को छोड़ कर, भारत में सभी महिला गोल्फर अपने 20वें वर्ष में हैं और उसमें से अधिकांश के परिवार में एक गोल्फर है। 21 वर्षीय दुबली-पतली प्रीतेंदर कौर के लिए प्रेरणा हरियाणा सरकार के मुलाजिम, उनके पिता, पाल सिंह से आई, जो स्वयं व्यवसायी हैं। तो, 2007 में शौकिया सर्किट में अपनी उपस्थिति महसूस कराने के बाद, यह जाहिर था कि प्रीतेंदर भी प्रों बनेंगीं।
निकी ने पहले गोल्फ अपने पिता, सेना में कर्नल को कोर्स पर साथ देते हुए, तब खेला जब वे मैसूर कालेज में थीं। स्मृति के लिए, गोल्फ हमेशा से खाने की मेज पर होने वाली सामान्य बातचीत का हिस्सा रहा। उसके भाई, संजीव मेहरा, अभी कुछ वर्षों तक भारत के लिए व्यवसायिक गोल्फ खेलते थे। जहां पिता सामाजिक गोल्फर थे, वहीं उनकी मां, बिली मेहरा, प्रसिद्घ हुई जब उन्होंने शौकिया सर्किट में भारत का प्रतिनिधत्व किया। जाहिर है, पिता के जयपुर में गिने चुने प्रमाणित गोल्फ कोच होने के साथ, निकिता के पास परिवार में क्रिकेट और गोल्फ दोनों ही थे।
दिल्ली की नलिनी सिंह, जो चार वर्ष पहले व्यवसायी बनीं, लेकिन अपना पहला टुअर इस साल खेल रही हैं, बताती हैं कि 'जब किसी को खेलते हुए देखते हो, वो आपके लिए शुरुआत बन जाती है।' कईयों का मानना है, प्रो. बनने के लिए बहुत लगन चाहिए लेकिन बहुत लाभकारी हो सकता है। निकी को लगता है कि गोल्फ कोर्स पर बहुत कुछ हो सकता है क्योंकि जब वे आई.एन.जी. वैश्या जीवन बीमे के साथ थीं, उन्होंने कोर्स पर अपने हाई-नेट ग्राहकों के साथ काफी अच्छा बिजनेस किया।
एक गोल्फर के कैरियर में वित्तीय दर्शनीयता की बात करते हुए, स्मृति कहती हैं, 'यू.एस. में, विजेता को 2.5 से 3 मिलियन यू.एस.डी. डॉलर के बीच कुछ भी प्राप्त होता है। अंतिम आने वाले गोल्फर को भी करीब 35-40,000 यू.एस. डॉलर मिल जाते हैं। खर्च जो अधिकतर आने-जाने, रहने और कैडी लेने पर होता है, वह करीब 60-70,000यू.एस. डॉलर होता है। यूरोपियन टुअर पर, आप एक साल में लगभग आधा मिलियन यूरोस कमा लेते हैं जबकि खर्चा करीब 20,000 यूरोस के करीब होता है। भारत में, पुरस्कार राशि काफी कम होती है, वार्षिक लगभग 4-4,50,000। अच्छी बात यह है कि यह खेल इतना महंगा नहीं है........क्योंकि अधिकांश खिलाड़ी, सेना पृष्ठभूमि से आते हैं, उन्हें रहने की जगह सेना मेस में मिल जाती है। केवल खेल के सामान पर खर्चा होता है। यू.एस. की तरह नहीं, जहां प्रो. गोल्फरों को खेल सामान मुफ्त मिलता है, भारत में, एक साल में, खेल के सामान पर 30-50,000 रूपये खर्च करने पड़ते हैं।'
आगे स्मृति कहती हैं, भारत में, अंतिम स्थान का चैक से भी खर्च निकल जाता है। रुचिकर है कि जहां महिला गोल्फरों के लिए निवेश अधिक है, सभी जीवन भर केवल गोल्फ व्यवसायी नहीं बने रहना चाहतीं। निकिता, जो मनोविज्ञान की छात्रा हैं, रुचिकर केरियर मिश्रण बनाना चाहती हैं। दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज की इस छात्रा का कहना है, 'मैं कैरियर के लिए खेल मनोविज्ञान को लेना चाहती हूं। सचिन तेंदुलकर के पास खेल मनोचिकित्सक हैं जो विदेशी हैं; ऐसा ही सानिया के साथ है। मैं इस अंतर को भरना चाहती हूं।'
ये प्रतिभाशाली युवा महिलाएं बिल्कुल जानती हैं कि कोर्स पर अपना बेहतरीन कैसे देना है और महान खेल कैरियर पर कैसे आगे बढऩा है। (विमेन्स फीचर सर्विस)

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