- डॉ. महिमा श्रीवास्तव
बसंत इस बार
अकेले मत आना
हो सके तो फिर से
मेरा लड़कपन ले आना।
पुरानी, गेंदे के
पीले फूलों से भरी
साँझें ले लाना।
तितली, भौंरों की
गुनगुन से भरी
झूलों को पींगे
देखने वाला ले आना
विस्मृत कर गये जो
उन्हें चाय पर ले आना।
पीली कुर्ती वाली
दर्पण में झांक स्वयं पर
विस्मित विमुग्ध होती
छवि लौटा लाना।
प्रिय को भेजी
नेह रची पाती
का उत्तर ले आना।
नहीं तो उनको
अपनी बयार पर सवार
ले करके आना।
ओ बसंत
इस बार अकेले
मत आना।
4 comments:
सुंदर कविता,बधाई डॉ.महिमा जी।
वाह !बहुत ही प्यारी सुन्दर आकांक्षा ! बधाई !
बहुत सुंदर सृजन💐👌💐
सुंदर रचना...बधाई।
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