- डॉ. रत्ना वर्मा
उदंती
का पिछला अंक छत्तीसगढ़ के लोक जीवन से जुड़े पर्व-संस्कृति विशेष पर केन्द्रित
था। यह अंक उसी कड़ी में दूसरा अंक है।
पर्व-
त्योहारों के इस मौसम में लोक जीवन में उल्लास और उत्साह का माहौल होता है, क्योंकि धान की फसल पक
चुकी होती है और किसान उनकी मिंजाई कर खलिहानों में रख चुका होता है। किसी भी
क्षेत्र की लोक संस्कृति उस क्षेत्र विशेष की पहचान होती है और हमारी संस्कृति को
जीवंत बनाए रखने में हमारे पर्व त्योहारों की विशेष भूमिका
होती है।
छत्तीसगढ़
कृषि प्रधान प्रदेश है , तो यहाँ के पर्व उत्सव भी अधिकांशत: कृषि से
जुड़े होते हैं। थके -हारे
किसान को तब अपने मेहनती जीवन को जीवंत बनाए रखने के लिए रोज की दिनचर्या से हट कर
बदलाव भी जरूरी है, फिरवह
बदलाव चाहे पर्व त्योहार के रूप में हो या नाच गाने के रूप में हो। छत्तीसगढ़में
मेले- मड़ई की अपनी एक अलग ही परम्परा है। लोक जीवन में इस मेले मड़ई का
इंतजार लोग साल भर करते हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में मेले मड़ई की धूम होती है, जिनका अपना एक विशिष्ट
महत्त्व होता है।
ऐसा ही एक मेला मेरे अपने गाँव पलारी के
सिद्धेश्वर मंदिर में भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन भरता है। आस- पास के गाँव के लोग
इस मेले में कार्तिक स्नान के बाद दिन भर मेले का आंनद लेते है। उदंती के सितम्बर 2015 के धरोहर अंक में
केन्द्र सरकार भारत द्वारा देश के बहुमूल्य सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण हेतु
आरंभ की गई हृदय नामक योजना का उल्लेख मैंने किया था। 'हृदय’नामक इस योजना में यह कहा
गया है कि हमारी धरोहरों की रक्षा का
दायित्व सिर्फ पुरातत्त्व विभाग के पास नहीं होगा, बल्कि धरोहरों से प्रेम करने वाले लोग भी
इन्हें बचाने में सक्रिय भागीदारी निभा सकेंगे। इस योजना ने सरकारी स्तर पर कितना
काम शुरू किया है, अभी इसकी जानकारी तो नहीं है परंतु इस योजना
के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पलारी के इस ऐतिहासिक धरोहर सिद्धेश्वर मंदिर
में मेले के अवसर पर माटी समाज सेवी संस्था ने मंदिर की सुरक्षा के साथ मंदिर परिसर
की स्वच्छता का अभियान चलाकर एक छोटा-सा प्रयास जरूर किया।
प्रति
वर्ष होता यह था कि मेले के दिन प्रात: काल से ही श्रद्धालु स्नान के बाद शिव
मंदिर में पूजा - अर्चना करने के बाद श्रद्धापूर्वक नारियल तो चढ़ाते थे, पर प्रसाद के रूप में
नारियल वहीं मंदिर परिसर में फोड़कर कच्चे नारियल का पानी और उसका छिलका जहाँ
-तहाँ बिखराकर चला जाते थे, इतना ही नहीं नारियल भगवान के पास ही तोडऩे की
होड़ में लोग मुख्य मंदिर के सामने बैठे नंदी के ऊपर ही नारियल तोड़ कर अपनी भक्ति
का परिचय देते नजऱ आते थे, और तो और मंदिर की परिक्रमा करतेसमय 9वीं सदी में ईंटों से बने
इस ऐतिहासिक धरोहर के ऊपर ही नारियल तोड़कर अपनी पूजा सम्पन्न करते थे।
मंदिर
परिसर के भीतर पॉलीथीन की थैलिया न फैलें, इसके
लिए नारियल बेचने वालों से भी अनुरोध किया गया कि वे नारियल, फूल और अगरबत्ती हाथ
में ही दें, और
भक्तों से भी निवेदन किया कि कृपया वे सिर्फ नारियल और और फूल ही चढ़ाएँ, पॉलीथीन कचरे के डब्बे
में डालें, पर
जब इसमें सफलता नहीं मिली, तो संस्था के सदस्य मंदिर के मुख्य द्वार के
पास खड़े हो गए और नारियल चढ़ाने वालों से वापसी में पॉलीथीन माँगकर स्वयं ही उसे
कचरे के डब्बे में डालने लगे। यह देख कर बहुतों ने पॉलीथीन इधर- उधर फेंकना बंद
किया।

2 comments:
Sunder ank...maati samaj sevi santha ko badhai.
Sarahaniya karya kiya maati samaj sevi santha ne.anukarniy hai
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