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Jun 1, 2023

लेखकों की अजब गज़ब दुनियाः गिनकर शब्‍द लिखने वाले लेखक

-- सूरज प्रकाश

 • एँथनी ट्रोलोप सुबह ठीक 5:30 बजे घड़ी ले कर बैठ जाते और हर पंद्रह मिनट में 250 शब्‍द की सीमा बाँध कर लिखते। 

• एच जी वेल्स का एक हज़ार शब्द प्रति दिन लिखने का औसत आता था।

• चार्ली चैप्‍लिन लगभग एक हज़ार शब्द प्रतिदिन की डिक्टेशन देते थे। इनसे उनकी फिल्मों के लिए तैयार संवादों का लगभग तीन सौ शब्दों का औसत आता था। 

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
• जॉर्ज बर्नार्ड शॉ गिनकर पाँच पेज प्रतिदिन लिखते थे। पांचवें पेज का आखिरी वाक्‍य अगर अधूरा रह गया, तो वे उसे अधूरा ही छोड़ देते थे और अगले दिन पूरा करते थे। किसी वजह से अगर किसी दिन अगर साढ़े चार पेज लिखे, तो अगले दिन साढ़े पाँच पेज लिख कर कोटा पूरा कर लेते थे।।

• जैक लंडन ने अपने पूरे लेखकीय कैरियर में प्रतिदिन 1000 शब्‍द लिखे। 

• विलियम गोल्‍डिंग, नॉर्मन मेलर और आर्थर कानन डायल 3000 शब्‍द प्रतिदिन वाले लेखक थे। 

• लेखन कला में सिद्धहस्‍त माने जाने वाले रॉयमंड का रोज़ाना के शब्‍दों का कोई कोटा तो तय नहीं था; लेकिन वे एक दिन में 5000 शब्‍द लिख कर दिखा चुके थे।

• थॉमस मान दिन में औसतन चार सौ शब्द लिखा करते थे। 

• थॉम्‍स वूल्‍फ जब तक 1800 शब्‍द न लिख लें, रुकने का नाम नहीं लेते थे।

• लायन फ्यूशवेंगर दो हज़ार शब्दों की डिक्टेशन दिया करते थे जिनसे छह सौ लिखे हुए शब्दों का प्रतिदिन का औसत आता था। 

• सामरसेट मॉम चार सौ शब्द प्रतिदिन लिखा करते थे ताकि लिखने का अभ्यास बना रहे। 

• स्‍टीफेन किंग ने अपने लिए 2000 शब्‍द की सीमा बाँध रखी थी, चाहे कुछ भी हो जाये। 

• जेम्‍स जॉयस ने खुद को शब्‍दों या पन्‍नों की सीमा से नहीं बाँधा था। वे गिनकर वाक्‍य लिखते और खुश होते। पूरा समय लगाते उसमें। एक बार उनसे मिलने वाले किसी दोस्‍त ने पू्छा – आज का दिन कैसा रहा तो जायस ने गर्व से बताया - बहुत ही अच्‍छा। पूरे तीन वाक्‍य लिखे हैं आज। 

वहमी लेखक

• दी वार ऑफ़ आर्ट जैसी अनेक प्रेरणादायी किताबों के लेखक कुछ भी टाइप करने से पहले महान यूनानी कवि होमर द्वारा रचित देवी के आह्वान का पाठ करते थे।

• चार्ल्स डिकेंस अपने साथ हमेशा एक कम्पास रखते थे। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि यदि वह उत्तर दिशा में सिर रखकर नहीं सोएँगे तो उन्हें मौत उठा ले जाएगी। वह जहाँ कहीं भी गए हमेशा उस कम्पास की सहायता से उत्तर की ओर सिर करके सोते रहे।

फ्लैनेरी ओ’कोनोर
• फ्रेडरिक शिल्‍लर अपनी मेज की दराज में सड़े हुए सेब रखते थे। सड़े हुए सेबों की तीखी गंध ही उनके जीवन और लेखन की प्रेरणा स्रोत थी। इसके बिना वे काम नहीं कर पाते थे। 

• फ्लैनेरी ओ’ कोनोर महोदया ने अपने घर में ही मुर्गी खाना बना रखा था जिसमें मुर्गे, बत्‍तखें, चूजे वगैरह भरे रहते। उनका एक मुर्गा तो उलटे चलने में माहिर था। ये सारे पक्षी उनकी रचनाओं में भी आते थे। फ्लैनेरी ओ’कोनोर सोचते समय वनीला वेफर्स कुतरती रहती थीं।

• लियो टॉलस्टाय को न जाने कैसे वहम हो गया था कि वे पक्षियों की तरह हवा में उड़ सकते हैं। उनकी इस अजीब सनक का यह हाल था कि एक दिन उन्होंने अपने दुमंजिले मकान की खिड़की से पक्षियों की तरह हाथ फड़फड़ाते हुए छलांग लगा दी। हाथ पैर टूटने ही थे। 

• सामरसेट अपने को अंधविश्वासी तो नहीं मानते थे; लेकिन फिर भी वे अपने लिखने के कागजों, पुस्तकों की जिल्दों, घर के प्रवेश द्वारों, यहाँ तक कि ताश की अपनी गड्डियों के सारे पत्तों पर भी दुष्ट नेत्र का चिह्न अंकित करवाते थे। लिखते समय वे सदैव अपने पास एक ताबीज रखते थे, ताकि दुष्ट प्रकृति वाली वस्तुओं का उनके मस्तिष्क पर प्रभाव न पड़े। 

लियो टॉलस्टाय 
सुबह वाले लेखक, रात वाले लेखक

• अमृतलाल नागर सुबह के वक्‍त लखनऊ में अपने घर के अन्दर तख़्त पर बैठ कर लेखन कार्य करते थे। इस तख्‍त का नाम कानपुर था।

• अमृता प्रीतम रात के समय लिखती थीं। जब न कोई आवाज़ होती हो, न टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और न कोई आता-जाता हो। अलबत्‍ता बीच-बीच में चाय की तलब लगती।

• चेखव लिखने का काम आधी रात को या अल सुबह करते।

• जॉन ओ हरा आधी रात को शुरू करके सुबह सात बजे तक लिखते थे। 

• तालस्‍ताय सुबह लिखते थे, जबकि दोस्‍तोवस्‍की रात को लिखते थे। 

• बालजाक रात को लिखते थे। रात को जागने के लिए वे गाढ़ी, काली कॉफी पीते थे। वे 50 बरस की उम्र में कॉफी कोकीन की वजह से मरे थे।

• फ्योदोर दोस्‍तोवस्‍की रात के समय लिखा करते थे। 

• मार्सेल प्राउस्‍ट भी रात को लिखते थे; क्‍योंकि उस वक्‍त उन्‍हें दमे के कारण कम तकलीफ होती थी।

छद्म नाम वाले लेखक

दुनिया भर में हर समय में और हर भाषा में ऐसे अनेक लेखक मिल जायेंगे जो अलग-अलग कारणों से छद्म नाम से लिखते रहे।

• ओ हेनरी बेटी को पालने के मकसद से वे जेल में 14 अलग-अलग छद्म नाम से कहानियाँ लिखते रहे। 

• फर्नांदो पेसोआ आजीवन 75 छद्म नामों से लेखन करते रहे।

• तंगी के दिनों में जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने भी घोस्‍ट राइटिंग की थी। 

• भुवनेश्वर ने कई बार हाडा, वीपी, आरडी आदि छद्म नामों से भी लिखा।

• मोपासां कई छद्म नामों से लिखते रहे।

• अमृतलाल नागर ने अनेक छद्म नामों से लेखन किया। पहले मेघराज इंद्र के नाम से कविताएँ लिखते रहे। बाद में तस्लीम लखनवी के नाम से व्यंग्यपूर्ण स्केच व निबंध लिखने लगे।

• अपने लेखन के शुरुआती दिनों में राही मासूम रज़ा ने शाहिद अख्तर के छद्म नाम से भी लिखना शुरू किया था।

• गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर आठ बरस की उम्र में वे कविता लिखने लगे थे और सोलह बरस की वय में भानुसिंह के छद्मनाम कविता संग्रह दे चुके थे। 

 उपेन्‍द्रनाथ अश्‍क
खूब लिखने वाले लेखक 

इस सूची में कुछ ऐसे लेखकों का जिक्र है, जिन्‍होंने अपने जीवन में सिर्फ लिखा, लिखा और भरपूर लिखा। इतनी किताबें लिख डालीं कि सिर्फ उन्‍हीं की किताबों के बल पर लाइब्रेरी तैयार हो जाए। उपेन्‍द्रनाथ अश्‍क चाहते थे कि वे इतना लिखें कि हर लाइब्रेरी में उनकी किताबों के लिए एक अलग अलमारी हो। वे हिंदी उर्दू पंजाबी में लिखने के बावजूद 50 का आँकड़ा पार नहीं कर पाए। ओशो रजनीश के नाम पर कुल 650 किताबें बतायी जाती हैं। ये वस्‍तुत: मूल किताबें न होकर उनके भाषण हैं, जो किताबों के रूप में रूपांतरित किए गये। वैसे कई बांग्‍ला उपन्‍यासकार 150 किताबों का आंकड़ा पार करते हैं; लेकिन जासूसी उपन्‍यास लेखक सुरेन्‍द्र मोहन पाठक 250 से अधिक उपन्‍यास लिखकर इस सूची में मौजूद हैं। वैसे गुणात्‍मकता की दृष्‍टि से देखें तो राहुल सांकृत्‍यायन की 150 किताबें अच्‍छे-अच्‍छे लेखकों की सैकड़ों किताबों पर भारी पड़ती हैं। (क्रमशः)  

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