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Oct 1, 2022

प्रेरकः प्रकाश की एक किरण

 - ओशो

एक राजा था। वह एक दिन अपने वज़ीर से नाराज हो गया और उसे एक बहुत बड़ी मीनार के ऊपर कैद कर दिया। एक प्रकार से यह अत्यन्त कष्टप्रद मृत्युदण्ड ही था। न तो उसे कोई भोजन पहुँचा सकता था और न उस गगनचुम्बी मीनार से कूदकर उसके भागने की कोई संभावना थी।

जिस समय उसे पकड़कर मीनार पर ले जाया रहा था, लोगों ने देखा कि वह जरा भी चिंतित और दुखी नहीं है, उल्टे सदा की भांति आनंदित और प्रसन्न है। उसकी पत्नी ने रोते हुए उसे विदा दी और पूछा, "तुम इतने प्रसन्न क्यों हो?"

उसने कहा, "यदि रेशम का एक बहुत पतला सूत भी मेरे पास पहुँचाया जा सकता तो मैं स्वतंत्र हो जाऊँगा। क्या इतना-सा काम भी तुम नहीं कर सकोगी?"

उसकी पत्नी ने बहुत सोचा, लेकिन इतनी ऊँची मीनार पर रेशम का पतला धागा पहुँचाने का कोई उपाय उसकी समझ में न आया। तब उसने एक फकीर से पूछा। फकीर ने कहा, "भृंग नाम के कीड़े को पकड़ो। उसके पैर में रेशम के धागे को बाँध दो और उसकी मूँछों के बालों पर शहद की एक बूँद रखकर उसका मुँह चोटी की ओर करके मीनार पर छोड़ दो।"

उसी रात को ऐसा किया गया। वह कीड़ा सामने मधु की गंध पाकर, उसे पाने के लोभ में, धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा और आखिर उसने अपनी यात्रा पूरी कर ली। रेशम के धागे का एक छोर कैदी के हाथ में पहुँच गया। रेशम का यह पतला धागा उसकी मुक्ति और जीवन बन गया। उससे फिर सूत का धागा बाँधकर ऊपर पहुँचाया गया, फिर सूत के धागे से डोरी और डोरी से मोटा रस्सा। उस रस्से के सहारे वह कैद से बाहर हो गया।

सूर्य तक पहुँचने के लिए प्रकाश की एक किरण बहुत है। वह किरण किसी को पहुँचानी भी नहीं है। वह तो हर एक के पास मौजूद है।

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