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Jun 1, 2022

किताबेंः बारह खिड़कियों से झाँकते अनुभव

- कामिनी रावत

पुस्तकः बंद कोठरी का दरवाजा ( कहानी-संग्रह), लेखिकाः रश्मि शर्मा, प्रथम संस्करण: 2022, पृष्ठ: 200, मूल्य: रु.260, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन, 305, प्रियदर्शिनी अपार्टमेण्ट, पटपटगंज, दिल्ली-110092

युवा कहानीकार रश्मि शर्मा के कहानी संग्रह 'बन्द कोठरी का दरवाजा' में संकलित 12 कहानियों में हमारे आस-पास की वास्तविकता के विविध रंग समाहित हैं।

मनिका का सचगाँव में प्रचलित अँधविश्वास की क्रूरता की चरम सीमा को दर्शाती है, किस तरह एक विधवा औरत को डायन बता कर उसका समाज से बहिष्कार किया जाता है, एक स्त्री के जीने के बुनियादी अधिकार तक की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं। वर्चस्वशाली समाज का कहा माने और दबे-ढके ढंग से पुरुषों की मर्जी पर चले, तो सब ठीक है। अपनी शर्तों पर अपने दम पर जीने लगे, तो वह चरित्रहीन या डायन कहलाती है । उसके इंसान होने पर, इंसानों के बीच रहने पर, इंसानों जैसी जिंदगी जीने पर प्रश्नचिह्न लगाए जाते हैं। वस्तुतः कौन दुश्चरित्र है और किसके मन में खोट है, इस सच का पर्दाफाश भी कहानी में किया गया है। मर्दवादी पाखंड और गाँव वालों की कूपमंडूक मानसिकता अंततः उसकी जान लेकर ही छोड़ती है।

निर्वसनकहानी कहने का अंदाज़ एकदम जुदा है। रामायण के मुख्य चरित्रों को आधार बनाकर आधुनिक समय के हिसाब से लिखी गई है, लेकिन परिस्थितियों में बहुत अंतर अब तक नहीं आया है। तब भी राम ने सीता पर अविश्वास किया और प्रजा की सोच को अधिक महत्त्व दिया और आज भी पत्नी की सोच को पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया जाता है। क्यों यह जरूरी माना जाता है कि एक स्त्री के आसपास परिवेश का जो तानाबाना बुना गया हो, उसके आधार पर ही उसकी पहचान हो? अपने सच की सामाजिक स्वीकृति के लिए स्त्री तब भी लड़ रही थी और आज भी संघर्षरत है। कहानी यह भी दिखाती है कि सूझ-बूझ और आत्मविश्वास की दीप्ति स्त्री में अधिक है। सीता बिना संसाधनों के भी अपनी समृद्ध संवेदना और विवेक के सहारे वह कर डालती है, जो राम-लक्षमण कदाचित् न कर पाते। प्रकृति का महाराग तो कहानी की शुरूआत से ही सीता के साथ था, पुरखों का आशीर्वाद भी अपने गुणों से वह अपनी ओर मोड़ लेती है। मिथकीय परिधि में आबद्ध यह कहानी इस सीमा के भीतर रहते हुए भी स्त्री के अस्तित्व की अनेक परतें खोलने में सक्षम है।

 नैहल छुटल जाएस्त्री के संपत्ति के अधिकार के महत्त्व को रेखांकित करती है। कहानी की मुख्य किरदार कोयलिया धीरे -धीरे सही-गलत को पहचानने की दृष्टि विकसित करती है। पिता की मृत्यु के बाद विवाहित कोयलिया को भाई-भाभियों द्वारा जब मायके में पर्याप्त प्रतिष्ठा और देखभाल नहीं मिलती, तब उसे अपने कानूनी अधिकार पहली बार ध्यान में आते हैं और अधिकार की बात पर घर वालों की प्रतिक्रिया से यह साबित हो जाता है कि अधिकारों को जीवन में लागू किए बिना, आत्मसम्मान भी नहीं बचाया जा सकता। परिणामस्वरूप संपत्ति पर अपने हक़ के लिए लड़ने की हिम्मत जुटा पाती है।

 घनिष्ठ परिचितमें पार्किंसन की बीमारी से जूझ रहे एक बुजुर्ग के कारण घर-गृहस्थी में रोजाना की होने वाली परेशानियों को दिखाया गया है । मगर बीमारी कहानी का मुख्य विषय नहीं है। अधिकारों और महत्त्व का जो बँटवारा एक आम भारतीय परिवार में पाया जाता है, उसकी खाइयाँ और चौड़ी होकर भीतर की बदसूरती बाहर आने लगती है। जब पार्किंसन बीमारी से बिगड़े मानसिक असंतुलन के कारण सभ्यता का लबादा गिरता है। बहू परिवार में बाहर से आई सदस्य होती है। वह कितनी ही संवेदनशील हो, उसके साथ परिवार उस आत्मीय ढंग से नहीं जुड़ पाता, जैसे अन्य सदस्यों से। इसलिए तो स्वस्थ पति के मन में भी इस आशंका का बीज पड़ जाता है कि बहू ससुर के साथ कोई बेजा हरकत करे, यह अस्वाभाविक बात नहीं।

कहानी जैबो झरिया लैबो सड़ियाँरोजगार की तलाश में, अपनी आर्थिक स्थिति को थोड़ा बेहतर बनाने की कोशिश में अपनी जन्मस्थली छोड़कर कोयला-खदानों में अपने जीवन को गिरवी रख काम करने के लिए मजबूर मजदूर वर्ग की दास्तान बयान करती है। एक ओर ऐसा जीवन है जिसमें कोई भी सपना पूरा नहीं हो सकता, दूसरी ओर छोटे-छोटे सपनों को साकार करने के लिए दाव पर लगी जिंदगी। दोनों ही स्थितियाँ भयावह हैं। समाधान कहीं भी नहीं है। कहानी कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूर परिवारों की स्थिति का मार्मिक चित्रण करती है। कोयला हो या कोई भी संसाधन, अमीर को और अमीर तो बना सकता है मगर जिन मजदूरों का श्रम इन चीजों को धरती के गर्भ से निकालता है, काम लायक बनाता है, उनकी किस्मत में तो वंचना में जीना या जोखिम में रहना या जान गँवा देना ही आता है।

‘हादसा’ कहानी में दहशत पैदा करने वाली खबरों के बीच में पलती हुई बच्ची के मनोविज्ञान को दिखाया गया है। कहानी मार्मिक और रोचक ढंग से असुरक्षा बोध के साथ रहने वाले अभिभावकों और कोमलमना लड़की की मनोदशा का चित्रण करती है। उसके सामने हुए एक लड़की के अपहरण और घटना के खौफ से बच्ची के जख्मी मन से पाठक पूरी संवेदना से खुद को जोड़ पाता है। अंत में पता चलता है- ऐसी कोई घटना बच्ची के सामने नहीं घटी थी। उस पर तारी खौफ से उसे ऐसा भ्रम हुआ करता है।

‘चार आने की खुशी’ में गाँव की विधवा स्त्री की बदहाल स्थिति का चित्रण है। अपने एकमात्र चाय के शौक को पूरा करने के लिए वह बच्चियों को उनका मनपसंद फल शरीफा चारआने में बेचा करती थी। अब युवा हो चुकी वह बच्ची कहानी की वाचक है। जब उसे पता चलता है कि शरीफे के प्रति उसका लालच ‘बड़ा’ के चाय के शौक को पूरा करने का माध्यम बना। चाय की चुस्की में उसके भीतर शरीफे का रस उतरने लगता है। छोटे से घटनाक्रम पर आधारित यह एक प्यारी -सी कहानी है।

‘बंद कोठरी का दरवाजा’ में समलैंगिक पुरुष सामाजिक बाध्यता के चलते शादी कर लेता है; मगर पत्नी को समागम का सुख नहीं देता। जब यह राज पत्नी को पता चलता है, तो वह उससे तलाक लेकर अलग हो जाना चाहती है; मगर पति के विनम्र आग्रह से कुछ समय के लिए रुक जाती है। इस बीच धारा 377 में सरकार द्वारा लाए गए बदलाव की खबर अखबार में पढ़कर वह तय करती है कि अब झूठी शान की खातिर अपने आप से लड़ने की और जरूरत नहीं है।

‘उसका जाना’ में माँ की बीमारी और देहांत का किशोर बेटे के मनोभावों पर पड़े असर को दिखाया गया है। वह चाहता है कि कम से कम अब तो माँ की रुचि के अनुसार हो। आजीवन तो माँ पिता की पसंद के हिसाब से कपड़े पहनती और सब कुछ करती रही।

‘महाश्मशान राग-विराग’ दो शहरों में छुटपन और युवावस्था में हुए प्रेम की कहानी है। एक कश्मीर की वादियों में शिकारे में हुआ बाल लगाव है, दूसरा बनारस के मणिकर्णिका घाट में हुआ युवा प्रेम। लड़की के लिए ये जीवन के दो स्वाभाविक चरण हैं, जो एक-दूसरे को नहीं काटते। मगर प्रेमी का ध्यान यहाँ अटका रहता है तो साथ रहते हुए भी साथ छूटने लगता है। स्त्री का प्रेम बड़ी से बड़ी बाधा को प्यार कर सकता है मगर संशय उसके मन को दुविधा में डाल देता है।

‘मैंग्रोव वन’ प्रेम की वर्तमानता और प्रेम के अनुभव के नैरंतर्य की कहानी है। ‘लाली’ इस संकलन की कमजोर कहानी है। जिसमें कहानीकार का आशय ठीक से संप्रेषित नहीं होता।

इन 12 कहानियों को जीवन जगत में देखने की 12 खिड़कियाँ माना जा सकता है। रश्मि शर्मा का यह पहला कहानी संग्रह है। इस हिसाब से देखें, तो कहानियों में विषय-वैविध्य है, अलग-अलग परिवेश और किरदारों के लिए अलग भाषा प्रयुक्त की गई है। सादगी से सहज ढंग से कहानीकार अपनी बात प्रामाणिक बोली में कह ले जाती हैं।

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