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Nov 1, 2021

लघुकथाः फिर से तैयारी

-डॉ. कविता भट्ट

अंदर से ठहाकों की गूँज के साथ चाय-पकोड़े की खुशबू भी आ रही थीजब एक शालीनमेहनती और लगभग अधेड़ उम्र की महिला लम्बा इंटरव्यू देकर वातानुकूलित कक्ष से बाहर निकली।

वहीं बाहर बैठी एक युवती ने पूछा, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’ 

डिग्रियों और पुस्तकों का भारी बैग सँभालते हुए बाहर निकलने वाली महिला बोली, ‘शिक्षा।

बाहर बैठी बनी-ठनी सी युवती बोली, ‘मैं व्यवस्था हूँयहीं नौकरी पाना चाहती हूँ। तुम्हारे पास तो इतना कुछ है । मेरे पास तो बस एक फोल्डर में दो-चार कागज ही हैं। देखती हूँ इस इंटरव्यू को दे आती हूँ।

पूरे आत्मविश्वास और आँखों में चमक लेकर वह भीतर गई।

वह चंद मिनटों में ही बाहर आ गई।

दोनों घर को निकलने लगीतो व्यवस्था बोली , ‘सुनो मैं बाज़ार में ही रहती हूँ और तुम?’

शिक्षा बोली, ‘मंदिर के पास।

व्यवस्था अपनी महँगी कार में बैठने लगीतो शिक्षा ने तरसी निगाहों से देखा। आँखें नचाते हुए व्यवस्था बोली, ‘आओ तुम्हें भी तुम्हारे घर छोड़ते हुए निकल जाऊँगी।

शिक्षा बोली, ‘सॉरी बहिनआदत नहीं महँगी कार की। पैदल ही चली जाऊँगी।

व्यवस्था सर्र से कार से निकल गई। शिक्षा को बहुत देर बाद ऑटो मिला। हिचकोले खाते हुए घर पहुँची।

रात को शिक्षा ने मोबाइल खोलापदों पर भर्त्ती की लिस्ट शिक्षण संस्थान की वेबसाइट पर डाल दी गई थी। व्यवस्था का नाम सबसे पहले था।

शिक्षा ने दो तीन बार चेक किया। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था;  क्योंकि पूरा जीवन पढ़ते-लिखते हुए खपा दिया था उसनेमगर नौकरी की लिस्ट में उसका नाम कहीं नहीं था। वह चुपचाप पुरानी खाट पर बैठ गई। थोड़ी देर औंधे मुँह लेटकर वह फूट -फूटकर रोती रही।

शिक्षा भीतर से टूट चुकी थीलेकिन थोड़ी देर बाद उसने उठकर ठंडे पानी से मुँह धोया और कॉपी-पेन लेकर फिर से तैयारी करने लगी।

3 comments:

rameshwar kamboj said...

व्यवस्था से सदा जूझना एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व की विवशता है। हार न मानना संघर्ष चेता की शक्ति है। कविता भट्ट जी ने बड़ी कुशलता से प्रतीकों का प्रयोग किया है। हार्दिक शुभेच्छाएँ!

Sushila Sheel Rana said...

सटीक प्रतीकों के माध्यम से व्यवस्था या यूँ कहें कुव्यवस्था पर कड़ा प्रहार। बधाई डॉ कविता💐

Sudershan Ratnakar said...

प्रतीकों के माध्यम से सामयिक समस्या का सटीक विश्लेषण। हार्दिक बधाई