उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Aug 14, 2018

भारत माँ ने आँखें खोलीं

भारत माँ ने आँखें खोलीं (चौपाई)
-ज्योत्स्ना प्रदीप
भारत माँ ने आँखें खोलीं,
देखो वो भी कुछ तो बोली।
बालक मेरे  हैं अवसादित,
पथ ना जानें क्यों हैं बाधित।

वसुधा वीरों की मुनियों की,
ज्ञानकोश थामें गुनियों की।
कोई तो था प्रभु का साया,
कोई गंगा भू पर लाया।

संतानें अब बदल गई हैं,
माँ की आँखें सजल भई हैं।
निकलो अपनी हर पीड़ा से,
खुद को सुख दे हर क्रीड़ा से।

कुटिया चाहे ठौर बनाना ,
घी का चाहे कौर न खाना।
पावनता  को अपनाना है,
नवयुग सुख का फिर लाना है।

किरणें थामे नैन कोर हो,
सबकी अपनी सुखद भोर हो।
बनना  खुद के भाग्य विधाता,
आस लगाये भारत माता।

सम्पर्कः मकान न.-32, गली न.-9, न्यू गुरु नानक नगर, गुलाब देवी रोड, जालंधर, पंजाब- 144013

No comments: