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Sep 15, 2017

पर्व- संस्कृति

पितरों का तर्पण विष्णु की नगरी गया में
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष का 15 दिन पितरों के लिए समर्पित होता है। इस समय में पितरों को पिंडदान देना उनको मोक्ष प्राप्ति सहज बनाता है। वैसे तो पितरों को तर्पण आदि घर पर भी किया जा सकता है, लेकिन गया में पितरों को पिंड दान देने का ख़ास महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि गयासुर को भगवान विष्णु के वरदान के कारण यहाँ से पिंड दान पाकर पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। यहाँ पर स्वयं माता सीता ने अपने स्वसुर दशरथ जी को पिंड दान दिया था।
क्यों करते हैं गया में पितृ-पक्ष का पिंडदान
 गया की चर्चा मोक्ष की नगरी के रूप में विष्णु पुराण और वायु पुराण में की  गई  है। इसे विष्णु का नगर भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है की भगवान विष्णु यहाँ स्वय पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं इसलिए गया को पितृ तीर्थ भी कहा गया है। गया में फल्गु नदी और पुनपुन नदी में पिंड दान करने का विधान है।
एक कथा के अनुसार भस्मासुर के वंशज गयासुर ने कठोर तप कर ब्रम्हा जी को प्रसन्न कर लिया और ब्रम्हा जी से यह वरदान माँगा की मेरा शरीर देवताओं को तरह पवित्र हो जाये और मेरे दर्शन मात्र से जीव सभी पापों से मुक्त हो जाएँ और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो। इस वरदान से स्वर्ग की व्यवस्था विगड़  गई  और स्वर्ग में लोगों की संख्या बढऩे लगी। लोगों में पापों की प्रवृत्ति बढ़  गई  और लोग यह सोचकर कि गयासुर के दर्शन से सभी पाप नष्ट हो जाएँगे कहकर पाप कर्म करने से डरते नहीं थे।
इससे अव्यवस्था से बचने के लिए देवताओं ने गयासुर से यज्ञ के लिए पवित्र भूमि की याचना की। देवताओं को गयासुर ने अपना पवित्र शरीर ही दान कर दिया। उसने समझा मेरे शरीर से पवित्र कोई भूमि नहीं हो सकती। अत: वह ज़मीन पर लेट गया और उसके शरीर पर यज्ञ हुआ; लेकिन गयासुर के मन से लोगों को पवित्र करने की इच्छा नहीं गई। उसने देवताओं और विष्णु से वरदान माँगा की जो कोई इस पवित्र भूमि में पूजन करे उसको मोक्ष की प्राप्ति हो। जो भी लोग यहाँ किसी को पिंडदान करे उसे मोक्ष की प्राप्ति हो। देवताओं ने गयासुर को यह वरदान सहर्ष दे दिया। गयासुर जब धरती पर लेटा ,तो उसके शरीर ने पाँच कोस के क्षेत्रफल को ढक लिया। और इस प्रकार यह स्थान पवित्र पितृ तीर्थ गया के नाम से विख्यात हुआ। यही कारण है की पितरों को पिंडदान देने यहाँ देश विदेश से लोग आते हैं
विष्णुपद मंदिर की कथा और गयासुर
एक और कथा इस प्रकार है- एक बार दैत्य राज गयासुर ने कठोर तप कर वरदान प्राप्त कर लिया था की जो कोई उसको देखेगा उसको मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। मोक्ष की प्राप्ति  के लिए जीवन पर्यन्त सही कर्म करने होते हैं। गयासुर के इस वरदान के कारण लोग पाप कर्म करने लगे और गयासुर के दर्शन कर पापरहित होकर वैकुण्ठ पहुँच जाते थे। यमराज को इस बात की चिंता हुई। इस अव्यवस्था से बचने के लिए उन्होंने विष्णु की स्तुति की। भगवान विष्णु ने बुरे कर्म करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति रोकने के लिए गयासुर को पाताल लोक में जाने को कहा। इसके लिए विष्णु ने अपने चरण गयासुर के छाती पर रख दिया।  गयासुर धरती के अंदर चला गया। आज भी गया सुर के शरीर पर विष्णु पद चिह्न है। उस स्थान पर भव्य  विष्णु पद मंदिर बना है।  यह पद चिह्न 9 प्रतीकों से युक्त है जिसमे शंख चक्र और गदा शामिल हैं।
धरती के अंदर समाहित गयासुर ने भगवान विष्णु से अपने लिए आहार की याचना की और भविष्य में अपने लिए उपयुक्त कर्म भी पूछे। भगवन विष्णु ने उसे वरदान दिया कि प्रत्येक दिन कोई न कोई तुम्हें भोजन दे जाएगा। जो कोई तुम्हें भोजन कराएगा ,उसे स्वर्ग या मोक्ष की प्राप्ति होगी। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन गयासुर को भोजन नहीं मिलेगा ,वह धरती से बाहर निकल आएगा।
प्रत्येक दिन इस मंदिर में देश -विदेश से लोग आतें हैं और अपने पितरों की शान्ति के लिए विष्णुपद की पूजा करते हैं।

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