उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Aug 12, 2016

स्वतंत्रता आन्दोलन

रानी लक्ष्मी बाई
वीरांगनाओं की भी याद करो कुर्बानी 

बेगम हज़रत महल
 भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का एक लम्बा इतिहास रहा है। अपनी राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक पराधीनता से मुक्ति के लिए इस आन्दोलन में अनेक राष्ट्रभक्तों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। स्त्रियों की दुनिया घर के भीतर है, शासन-सूत्र का सहज स्वामी तो पुरूष ही हैअथवा शासन व समर से स्त्रियों का सरोकार नहींजैसी तमाम पुरूषवादी स्थापनाओं को ध्वस्त करती तमाम नारियांँ भी स्वाधीनता आन्दोलन की आलमबरदार बनीं। 1857 की क्रान्ति में जहाँ बेगम हजरत महल, बेगम जीनत महल, रानी लक्ष्मीबाई, रानी अवन्तीबाई, रानी राजेश्वरी देवी, झलकारी बाई, ऊदा देवी, अजीजनबाई जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिये, वहीं 1857 के बाद अनवरत चले स्वाधीनता आन्दोलन में भी नारियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। महात्मा गाँधी ने कहा था कि-भारत में ब्रिटिश राज मिनटों में समाप्त हो सकता है, बशर्ते भारत की महिलाएं ऐसा चाहें और इसकी आवश्यकता को समझें।
  इतिहास गवाह है कि 1905 के बंग-भंग आन्दोलन में पहली बार महिलाओं ने खुलकर सार्वजनिक रूप से भाग लिया था। स्वामी श्रद्धानन्द की पुत्री वेद कुमारी और आज्ञावती ने इस आन्दोलन के दौरान महिलाओं को संगठित किया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। कालान्तर में 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान वेद कुमारी की पुत्री सत्यवती ने भी सक्रिय भूमिका निभायी। सत्यवती ने 1928 में साइमन कमीशन के दिल्ली आगमन पर काले झण्डों से उसका विरोध किया था। 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ही अरूणा आसफ अली तेजी से उभरीं और इस दौरान अकेले दिल्ली से 1600 महिलाओं ने गिरफ्तारी दी। गाँधी इरविन समझौता के बाद जहाँ अन्य
अरूणा आसफ अली
आन्दोलनकारी नेता जेल से रिहा कर दिये गये थे वहीं अरूणा आसफ अली को बहुत दबाव पर बाद में छोड़ा गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जब सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये
, तो कलकत्ता के कांग्र्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता एक महिला नेली सेनगुप्त ने की। क्रान्तिकारी आन्दोलन में भी महिलाओं ने भागीदारी की। 1912-14 में बिहार में जतरा भगत ने जनजातियों को लेकर टाना आन्दोलन चलाया। उनकी गिरफ्तारी के बाद उसी गाँव की महिला देवमनियां उरांइन ने इस आन्दोलन की बागडोर सँभाली। 1931-32 के कोल आन्दोलन में भी आदिवासी महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभायी थी। स्वाधीनता की लड़ाई में बिरसा मुण्डा के सेनापति गया मुण्डा की पत्नी माकीबच्चे को गोद में लेकर फरसा-बलुआ से अंग्रेजों से अन्त तक लड़ती रहीं। 1930-32 में मणिपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व नागा रानी गुइंदाल्यू ने किया। इनसे भयभीत अंग्रेजों ने इनकी गिरफ्तारी पर
सरोजिनी नायडू
पुरस्कार की घोषणा की और कर माफ करने के आश्वासन भी दिये। 1930 में बंगाल में सूर्यसेन के नेतृत्व में हुये चटगाँव विद्रोह में युवा महिलाओं ने पहली बार क्रान्तिकारी आन्दोलनों में स्वयं भाग लिया। ये क्रान्तिकारी महिलायें क्रान्तिकारियों को शरण देने
, संदेश पहुँचाने और हथियारों की रक्षा करने से लेकर बन्दूक चलाने तक में माहिर थीं। इन्हीं में से एक प्रीतीलता वाडेयर ने एक यूरोपीय क्लब पर हमला किया और कैद से बचने हेतु आत्महत्या कर ली। कल्पनादत्त को सूर्यसेन के साथ ही गिरफ्तार कर 1933 में आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी और 5 साल के लिये अण्डमान की काल कोठरी में कैद कर दिया गया। दिसम्बर 1931 में कोमिल्ला की दो स्कूली छात्राओं-शान्ति घोष और सुनीति चौधरी ने जिला कलेक्टर को दिनदहाड़े गोली मार दिया और काला पानी की सजी हुई तो 6 फरवरी 1932 को बीना दास ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में उपाधि ग्रहण करने के समय गवर्नर पर बहुत नजदीक से गोली चलाकर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी। सुहासिनी अली तथा रेणुसेन ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों से 1930-34 के मध्य बंगाल में धूम मचा दी थी।
लक्ष्मी सहगल
चन्द्रशेखर आजाद के अनुरोध पर दि फिलॉसाफी ऑफ बमदस्तावेज तैयार करने वाले क्रान्तिकारी भगवतीचरण वोहरा की पत्नी दुर्गा भाभीनाम से मशहूर  दुर्गा देवी बोहरा ने भगत सिंह को लाहौर जिले से छुड़ाने का प्रयास किया। 1928 में जब अंग्रेज अफसर साण्डर्स को मारने के बाद भगत सिंह व राजगुरु लाहौर से कलकत्ता के लिए निकले, तो कोई उन्हें पहचान न सके इसलिए दुर्गा भाभी की सलाह पर एक सुनियोजित रणनीति के तहत भगत सिंह उनके पति, दुर्गा भाभी उनकी पत्नी और राजगुरु नौकर बनकर वहाँ से निकल लिये। 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की। बैठक में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जे0 ए0 स्कॉट को मारने का जिम्मा वे खुद लेना चाहती थीं, पर संगठन ने उन्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी। बम्बई के गर्वनर हेली को मारने की योजना में टेलर नामक एक अंग्रेज अफसर घायल हो गया, जिसपर गोली दुर्गा भाभी ने ही चलायी थी। इस केस
नागा रानी गुइंदाल्यू
में उनके विरुद्ध वारण्ट भी जारी हुआ और दो वर्ष से ज्यादा समय तक फरार रहने के बाद 12 सितम्बर 1931 को दुर्गा भाभी लाहौर में गिरफ्तार कर ली गयीं। यह संयोग ही कहा जायेगा कि भगत सिंह और दुर्गा भाभी
, दोनों की जन्म शताब्दी वर्ष 2007 में एक साथ मनाई गई। क्रान्तिकारी आन्दोलन के दौरान सुशीला दीदी ने भी प्रमुख भूमिका निभायी और काकोरी काण्ड के कैदियों के मुकदमे की पैरवी के लिए अपनी स्वर्गीय मॉंँ द्वारा शादी की खातिर रखा 10 तोला सोना उठाकर दान में दिया। यही नहीं उन्होंने क्रान्तिकारियों का केस लड़ने हेतु मेवाड़पतिनामक नाटक खेलकर चन्दा भी इकट्ठा किया। 1930 के सविनय अविज्ञा आन्दोलन में इन्दुमतिके छद्म नाम से सुशीला दीदी ने भाग लिया और गिरफ्तार हुयीं।  इसी प्रकार हसरत मोहानी को जब जेल की सजा मिली तो उनके कुछ दोस्तों ने जेल की चक्की पीसने के बजाय उनसे माफी मांगकर छूटने की सलाह दी। इसकी जानकारी जब बेगम हसरत मोहानी को हुई तो उन्होंने पति की जमकर हौसला आफजाई की और दोस्तों को नसीहत भी दी। मर्दाना वेष धारण कर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में खुलकर भाग लिया और बाल गंगाधर तिलक के गरम दल में शामिल होने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दी गयी, जहाँ उन्होंने चक्की भी पीसा। यही नहीं महिला मताधिकार को लेकर 1917 में सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में वायसराय से मिलने गये प्रतिनिधिमण्डल में वह भी शामिल थीं। 
मीरा बेन
कस्तूरबा गाँधी
1925 में कानपुर में हुये कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता कर भारत कोकिलाके नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू को कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास में कई पृष्ठ जोड़े। कमला देवी चट्टोपाध्याय ने 1921 में असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इन्होंने बर्लिंन में अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर तिरंगा झंडा फहराया। 1921 के दौर में अली बन्धुओं की माँ बाई अमन ने भी लाहौर से निकल तमाम महत्वपूर्ण नगरों का दौरा किया और जगह-जगह हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश फैलाया। सितम्बर 1922 में बाई अमन ने शिमला दौरे के समय वहाँ की फैशनपरस्त महिलाओं को खादी पहनने की प्रेरणा दी। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभायी। अरुणा आसफ अली व सुचेता कृपलानी ने अन्य आन्दोलनकारियों के साथ भूमिगत होकर आन्दोलन को आगे बढ़ाया तो ऊषा मेहता ने भूमिगत रहकर कांग्रेस-रेडियो से प्रसारण किया। अरुणा आसफ अली को तो 1942 में उनकी सक्रिय भूमिका के कारण दैनिक ट्रिब्यूनने 1942 की रानी झाँसीनाम दिया। अरुणा आसफ अली नमक कानून तोड़ो आन्दोलनके दौरान भी जेल गयीं। 1942 के अन्दोलन के दौरान ही दिल्ली में गर्ल गाइडकी 24 लड़कियां अपनी पोशाक पर विदेशी चिन्ह धारण करने तथा यूनियन जैक फहराने से इनकार करने के कारण अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गिरफ्तार हुईं और उनकी बेदर्दी से पिटाई की गयी। इसी आन्दोलन के दौरान तमलुक की 73 वर्षीया किसान विधवा मातंगिनी हाजरा गोली लग जाने के बावजूद राष्ट्रीय ध्वज को अन्त तक ऊँचा रखा।
विजयलक्ष्मी पंडित
  महिलाओं ने परोक्ष रूप से भी स्वतंत्रता संघर्ष में प्रभावी भूमिका निभा रहे लोगों को सराहा। सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदारकी उपाधि बारदोली सत्याग्रह के दौरान वहाँ की महिलाओं ने ही दी। महात्मा गाँधी को स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी ने पूरा समर्थन दिया। उनकी नियमित सेवा व अनुशासन के कारण ही महात्मा गाँधी आजीवन अपने लम्बे उपवासों और विदेशी चिकित्सा के पूर्ण निषेध के बावजूद स्वस्थ रहे। अपने व्यक्तिगत हितों को उन्होंने राष्ट्र की खातिर तिलांजलि दे दी। भारत छोड़ो आन्दोलन प्रस्ताव पारित होने के बाद महात्मा गाँधी को आगा खाँ पैलेस (पूना) में कैद कर लिया गया। कस्तूरबा
गाँधी भी उनके साथ जेल गयीं। डॉ0 सुशील नैयर, जो कि गाँधी जी की निजी डाक्टर भी थीं, भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 1942-44 तक महात्मा गाँधी के साथ जेल में रहीं।
  इन्दिरा गाँधी ने 6 अप्रैल 1930 को बच्चों को लेकर वानर सेनाका गठन किया, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपना अद्भुत योगदान दिया। यह सेना स्वतंत्रता सेनानियों को सूचना देने और सूचना लेने का कार्य करती व हर प्रकार से उनकी मदद करती। विजयलक्ष्मी पण्डित भी गाँधी जी से प्रभावित होकर जंग-ए-आजादी में कूद पड़ीं। वह हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं, और फिर आन्दोलन में जुट जातीं। 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में विजयलक्ष्मी पण्डित ने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। सुभाषचन्द्र बोस की ‘‘आरजी हुकूमते आजाद हिन्द सरकार’’ में महिला विभाग की मंत्री तथा आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजीमेण्ट की कमाण्ंिडग ऑफिसर रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने आजादी में प्रमुख भूमिका निभायी। सुभाष चन्द्र बोस के
आहवान पर उन्होंने सरकारी डॉक्टर की नौकरी छोड़ दी। कैप्टन सहगल के साथ आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजीमेण्ट में लेफ्टिनेण्ट रहीं ले0 मानवती आर्य्या ने भी सक्रिय भूमिका निभायी। अभी भी ये दोनों सेनानी कानपुर में तमाम रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय हैं।
इंदिरा गाँधी
  भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की गूँज भारत के बाहर भी सुनायी दी। विदेशों में रह रही तमाम महिलाओं ने भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भारत व अन्य देशों में स्वतंत्रता आन्दोलन की अलख जगायी। लन्दन में जन्मीं एनीबेसेन्ट ने न्यू इण्डियाऔर कामन वीलपत्रों का सम्पादन करते हुये आयरलैण्ड के स्वराज्य लीगकी तर्ज पर सितम्बर 1916 में भारतीय स्वराज्य लीग’ (होमरूल लीग) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य स्वशासन स्थापित करना था। एनीबेसेन्ट को कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव भी प्राप्त है। एनीबेसेन्ट ने ही 1898 में बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की नींव रखी, जिसे 1916 में महामना मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया। भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक मैडम भीकाजी कामा ने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित वन्देमातरम्पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1909 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने प्रस्ताव रखा कि- ‘‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।’’ उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया कि - ‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।’’ यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में वन्देमातरम्अंकित भारतीय ध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादाभाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रहीं।  आयरलैंड की मूल निवासी और स्वामी विवेकानन्द की शिष्या मारग्रेट नोबुल (भगिनी निवेदिता) ने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तमाम मौकों पर अपनी सक्रियता दिखायी। कलकत्ता विश्वविद्यालय में 11 फरवरी 1905 को आयोजित दीक्षान्त समारोह में वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा भारतीय युवकों के प्रति अपमानजनक शब्दों का उपयोग करने पर भगिनी निवेदिता ने खड़े होकर निर्भीकता के साथ प्रतिकार किया। इंग्लैण्ड के ब्रिटिश नौसेना के एडमिरल की पुत्री मैडेलिन ने भी गाँधी जी से प्रभावित होकर भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया। मीरा बहनके नाम से मशहूर मैडेलिन भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के साथ आगा खाँ महल में कैद रहीं। मीरा बहन ने अमेरिका व ब्रिटेन में भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। मीरा बहन के साथ-साथ ब्रिटिश महिला म्यूरियल लिस्टर भी गाँधी जी से प्रभावित होकर भारत आयीं और अपने देश इंग्लैण्ड में भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया। द्वितीय गोलमेज कांफ्रेन्स के दौरान गाँधी जी इंग्लैण्ड में म्यूरियल लिस्टर द्वारा स्थापित ‘किग्सवे हॉलमें ही ठहरे थे। इस दौरान म्यूरियल लिस्टर ने गाँधी जी के सम्मान में एक भव्य समारोह भी आयोजित किया था।
  इन वीरांगनाओं के अनन्य राष्ट्रप्रेम, अदम्य साहस, अटूट प्रतिबद्धता और उनमें से कईयों का गौरवमयी बलिदान भारतीय इतिहास की एक जीवन्त दास्तां है। हो सकता है उनमें से कईयों को इतिहास ने विस्मृत कर दिया हो, पर लोक चेतना में वे अभी भी मौजूद हैं। ये वीरांगनायें प्रेरणा स्रोत के रूप में राष्ट्रीय चेतना की संवाहक हैं और स्वतंत्रता संग्राम में इनका योगदान अमूल्य एवं अतुलनीय है।
                              
सम्पर्कः टाइप 5 निदेशक बंगलाजी.पी.ओ. कैम्पस, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद (उ.प्र.) 211001, मो. 08004928599, kk_akanksha@yahoo.com,  http://shabdshikhar.blogspot.in/  

No comments: